गोशाला प्रबंधन ने कहा सरकारी सहायता न मिली तो मजबूरन छोड़ना पड़ेगा पशुओं को
राज्य सरकार की ओर से कैटल पाउंड को पीपीपी (सार्वजनिक निजी हिस्सेदारी) के तहत चलाने के फैसले का स्वयंसेवी संस्थाओं ने विरोध करना शुरू कर दिया है।
जागरण संवाददाता, पठानकोट :
राज्य सरकार की ओर से कैटल पाउंड को पीपीपी (सार्वजनिक निजी हिस्सेदारी) के तहत चलाने के फैसले का स्वयंसेवी संस्थाओं ने विरोध करना शुरू कर दिया है। शहर में बेसहारा पशुओं के रख रखाव के लिए वैसे तो तीन गोशाला है, लेकिन सरकार की ओर से केवल डेयरीवाल को ही फंड मुहैया करवाए जाते हैं। नतीजतन बाकी दोनों गोशालाओं की तुलना में यहां दोगुना से भी ज्यादा पशु हैं।
डेयरीवाल में पशुओं की देखभाल के लिए सरकार की ओर से हर दिन 40 रुपये पशु के हिसाब से ही सहायता दी जा रही है। हालांकि यह भी नाकाफी है। मजबूरन प्रबंधन को स्वयंसेवी संस्थाओं से मदद लेनी पड़ती है। अगर यह राशि मिलनी बंद हो जाए तो पशुओं की देखभाल कर रही गोसेवा संगठन के लिए भी इसका संचालन कर पाना मुश्किल हो जाएगा। संस्था के पदाधिकारियों का कहना है कि सरकारी सहायता बंद होने के बाद उनके लिए भारी परेशानियां पैदा हो जाएंगी।
यह आएगी समस्याएं
-सरकार द्वारा मिलने वाली पांच से सात लाख रुपये की सहायता राशि न आने के बाद लोगों से इतना चंदा इकट्ठा कर पाना मुश्किल हो जाएगा।
- इससे उनका सारा बजट पूरी तरह से डगमगा जाएगा।
-यदि संस्थाएं पीछे हटने लगेगी तो पशु धन का सड़कों पर आना स्वभाविक है।
-गोधन के सड़कों पर आने से यहां उसकी बेकदरी हो जाएगी
-सड़कों पर लगने वाले जम घट के कारण दुर्घटनाओं का ग्राफ भी बढ़ेगा। ....
पूर्व सरकार ने शुरू की थी कैटल पाउंड को सहायता देने का काम
पूर्व की अकाली-भाजपा सरकार द्वारा प्रदेश में बेसहारा पशुओं से निपटने के लिए कैटल पाउंड बनाए गए थे। उक्त कैटल पाउंड में बेसहारा पशुओं को रखा गया था, ताकि गोधन सड़कों पर न रहे। इसके अलावा बेसहारा पशुओं के कारण होने वाली दुर्घटनाओं पर अंकुश लगाया जा सके।
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सड़कों पर उतरने के लिए मजबूर हो जाएंगे गो भक्त
गोसेवा संगठन के प्रधान मनमहेश बिल्ला व चेयरमैन वैष्णो बब्बर के नेतृत्व में आयोजित मीटिग में सरकार के फैसले पर विरोध जताया गया। मनमहेश बिल्ला व वैष्णो बब्बर ने संयुक्त रुप से कहा कि सरकार का यह फैसला लोकहित में नहीं है। कैटल पाउंड को पीपीपी के तहत चलाने का फैसला सरकार के लिए भारी पड़ने वाला है। इससे यहां गो धन सड़कों पर रहने के लिए मजबूर हो जाएगी। डेयरीवाल स्थित गोशाला में सरकार द्वारा एक पशु के रख रखाव के लिए 40 रुपये मिलते हैं। उसी में उनका चारा, बिजली व अन्य खर्चे निकलते हैं। लेकिन, गो सेवा संगठन शहर के दानी सज्जनों की सहायता से उक्त डेयरीवाल को चला रही है। आने वाले दिनों में फैसले के खिलाफ गो भक्त सड़कों पर उतरने के लिए मजबूर हो जाएंगे, जिसका सरकार को खामियाजा भी भुगतना पड़ेगा। इस दौरान पूर्व मंत्री मास्टर मोहन लाल, गौ सेवा संगठन महिला विग की प्रधान अनुपम पुरी,एडवोकेट आरती ततियाल, मनमोहन काला, भाजपा प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य विपिन महाजन, पवन अग्रवाल, डाक्टर राज ठुकराल आदि विशेष तौर पर मौजूद थे।
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शहर की गोशाला
-डेयरीवाल गौशाला में 610 पशु।
-गोपाल धाम गौशाला में 305 पशु।
-कामधेनु गौशाला में 120 पशु।
-जिला में बेसहारा 3500 से ज्यादा। .................
स्वयं सेवी संस्थाओं की प्रतिक्रिया
गोशाला का संचालन करना हो जाएगा मुश्किल : मनमहेश
गो सेवा संगठन के प्रधान मनमहेश बिल्ला ने कहा कि सरकार द्वारा सरकारी तौर पर मिलने वाली सहायता से हाथ पीछे खींच लेने के बाद पठानकोट ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश में गौशाला का संचालन कर रहे प्रतिनिधियों के लिए भारी मुश्किलें पैदा हो जाएंगी। उनके लिए पशुओं की सेवा कर पाना मुश्किल हो जाएगा। सरकार का फैसला समझ से परे: अनुपमा
गो सेवा संगठन महिला विग की प्रधान अनुपम पुरी का कहना है कि सरकार का फैसला समझ से परे हैं। ऐसा करके सरकार गौ धन की बेकद्री करेगी। संस्थाओं के पास इतना धन नहीं है कि वह पशुओं का सही प्रकार से संचालन कर सके। फैसला वापिस न हुआ तो मुश्किल हो जाएगी। गो सेवा कर का क्या करेगी सरकार : अश्वनी सैनी
कारोबारी अश्वनी सैनी का कहना है कि सरकार शहरी आबादी में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति से गो सेवा के नाम पर कर वसूल रही है। प्रत्येक माह निगम के खाते में लाखों रुपये आते हैं। उक्त पैसों से ही पशुओं की देखभाल हो रही है।अगर सहायता बंद की है तो गौ सेवा कर का क्या करेगी सरकार।