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Agriculture Laws: पंजाब के प्रगतिशील किसान बोले- नए कृ्षि कानूनों ने उम्मीद जगाई तो अपनाने में हर्ज कैसा

Agriculture Laws पंजाब में कृषि कानूनों के विरोध काफी संख्‍या में किसान हरियाणा-दिल्‍ली सीमा पर आंदोलन में भाग ले रहे हैं। दूसरी ओर काफी संख्‍या में पंजाब के प्र‍गतिशील किसानों का कहना है कि नए कृषि कानूनों ने उम्‍मीद जगाई है तो उसे अपनाने में हर्ज क्‍या है।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Mon, 07 Dec 2020 11:06 AM (IST)Updated: Mon, 07 Dec 2020 11:06 AM (IST)
Agriculture Laws: पंजाब के प्रगतिशील किसान बोले- नए कृ्षि कानूनों ने उम्मीद जगाई तो अपनाने में हर्ज कैसा
पंजाब के प्रगतिशील किसानों का कहना है कि कृषि कानूनों को अपनाने में हर्ज नहीं है। (फाइल फोटो)

पठानकोट, [विनोद कुमार]। Agriculture Laws: पंजाब में केंद्र सरकार के नए कृषि कानूनों पर सियासी घमासान मचा हुआ है। इसके विरोध में काफी संख्‍या में पंजाब के किसान किसान हरियाणा-पंजाब सीमा पर चल रहे आंदोलन (Farmers Protest) में भाग ले रहे हैं। दूसरी ओर, राज्‍य के प्रगतिशील किसानों का कहना है कि नए कृषि सुधार कानूनों ने किसानों में नई उम्‍मीद जगाई है। ऐसे में इन कानूनों काे अपनाने में हर्ज नहीं हैं। इन प्रगतिशील किसानों में पठानकोट के कई किसान भी शामिल हैं।

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पठानकोट के किसानों ने कहा, अब तक कृषि कानूनों को जितना जाना, उसमें कोई कमी नहीं दिखी

पठानकोट जिला जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश की सीमाओं से सटा है। भले ही शेष पंजाब के मुकाबले यहां खेती कम होती है और किसानों की संख्या भी कम है, परंतु जितने किसान यहां है वह प्रगतिशील सोच के साथ नए कृषि सुधार कानूनों के साथ भविष्य संवारने की बात कर रहे हैैं। यही कारण है कि यहां के किसान रहते हैं कि कृषि सुधार कानून किसानों के खिलाफ नहीं बल्कि उनके हक में है। उनका कहना है कि नए कानूनों ने एक उम्मीद जगाई है तो वह इन्हें अपना भी लेंगे। इससे उनका फायदा ही होगा।

गांव भीमपुर के 35 एकड़ भूमि पर खेती करने वाले किसान शाम लाल ने कहा कि वह हर साल गेहूं और धान के चक्र में फंसे रहते हैं। नए कानूनों को अब तक जितना जाना, उससे एक नई उम्मीद जागी है। इस बार तरबूज व दालें लगाने की सोची है। गेहूं व धान लगाने में ज्यादा मेहनत लगती है लेकिन दाल व तरबूज लगाने से मेहनत भी कम लगेगी और दाम भी अधिक मिलेगा।

शाम लाल का कहना है कि इससे अपनी फसल किसी भी मंडी में ले जाने का मौका भी मिलेगा, वह भी बिना किसी टैक्स या बिचौलिए के। जहां फसल को अच्छा दाम मिलेगा वहीं फसल बेचूंगा। समय के साथ सभी को बदलना होगा। जो जल्दी बदल जाएगा उसको जल्द फायदा होगा। एक दिन तो सब बदलेगा ही। फसली चक्र से बाहर निकल साल में दो की बजाय चार फसलें पैदा कर सकता हूं। जब फसलें चार होंगी तो मुनाफा भी तो डबल होगा।

मामून और धार में खेती करने वाले गांव मनवाल के किसान रणदीप सिंह डढ़वाल भी ऐसी ही सोच के मालिक हैैं। उन्होंने कहा कि उन्हें तो कांट्रैक्ट फार्मिंग में भी कोई बुराई नजर नहीं आती। इससे तो हमारी आय बढ़ाने का विकल्प मिल जाएगा। उन्होंने कहा, 'हर साल 70 एकड़ रकबे में खेती करता हूं। मेरे खेतों में दर्जनों लोग काम करते हैैं। यह कानून हमें आजादी देंगे और किसान से व्यापारी बनाएंगे। भविष्य की दिक्कतें तो 'शायद' पर टिकी हैं, लेकिन क्या अब दिक्कतें नहीं हैं। जब पूरी की पूरी फसल खराब हो जाती है तब कौन सी सरकार आकर हमारी सुनती है। मुआवजे के नाम पर जलील किया जाता है।'

बागवानी को बढ़ावा दिया तो आर्थिक मजबूती मिली : रोमी सैनी

गांव सरीफ चक्क के किसान रोमी सैनी के पास 290 कनाल जमीन हैं। उन्होंने कहा कि कुछ साल पहले ही गेहूं व धान के साथ बागवानी को बढ़ावा दिया तो उनकी आर्थिक स्थिति भी मजूबत हो गई। उनका मानना है कि कांट्रैक्ट फार्मिंग किसानों के लिए गुलामी नहीं बल्कि फायदे वाला सौदा है। इससे वह फसल का रेट खेत में ही तय हो जाता है, वह भी इस गारंटी के साथ कि अगर फसल खराब हुई तो भी पूरा दाम मिलेगा। अगर फसल का रेट बढ़ता है तो उससे अतिरिक्त मुनाफा होना भी तय है।

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