तंत्र के गण: 21 की उम्र से शिव अनुसूचित जाति के लोगों के हक के लिए कर रहे लड़ाई, जेल की हवा भी खाई
उन्होंने बताया कि अनुसूचित जाति के लोगों को लामबंद करने तथा उनके हक की लड़ाई के लिए उन्हें पठानकोट अमृतसर तथा फरीदकोट की जेलें भी काटनी पड़ी हैं। भाईचारे के परिवारों को जबभी किसी सरमाएदार ने दबाने का प्रयास किया है तो वह उनके हकों की लड़ाई के लिए वे लड़ते हैं।
विनोद कुमार, पठानकोट: पठानकोट के शिव कुमार अनुसूचित जाति के परिवारों को उनके हकों के प्रति जागरूक करने की लड़ाई पिछले 38 वर्षो से लड़ रहे हैं। हकों की जंग तब शुरू हुई जब वह मात्र 21 साल के थे। वह अपने घर से बाहर सैर करने निकले थे। इसी दौरान उन्होंने देखा कि गांव दोस्तपुर से गुरदासपुर तक बन रही लिक सड़क का निर्माण करवा रहे ठेकेदार के पास काम करने वाले अनुसूचित जाति के लोगों ने ठेकेदार से पैसे मांगे तो उसने अपशब्द कहने शुरू कर दिए। यह दृश्य देखकर शिव कुमार से रहा नहीं गया। वह ठेकेदार से भिड़ गए। उन्होंने मजदूरों के इस रवैये के प्रति ठेकेदार को सबक सिखाने तथा मजदूरों को उनके हक के लिए अपनी लड़ाई जारी रखने की बात कही।आखिरकार ठेकेदार को अपनी गलती का एहसास हुआ।
शिव कुमार बताते हैं कि यह बात 1982 की है। कहा कि भले ही मौके पर ठेकेदार ने जात-पात के नाम पर मजदूरों को दबाने का प्रयास किया हो परंतु उनके मन में यह बात घर कर गई कि आखिरकार आज भी समाज इस कद्र फटा हुआ क्यों है? आखिरकार कई सालों बाद इसी चिगारी ने आग पकड़ी तथा आज यह आग का गोला बन गई। शिव कुमार आज जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश तथा पंजाब में जहां कहीं भी किसी जगह अनुसूचित जाति के लोगों के साथ गलत होते हुए देखते हैं तो वहां पहुंच जाते हैं।
उन्होंने बताया कि अनुसूचित जाति के लोगों को लामबंद करने तथा उनके हक की लड़ाई के लिए उन्हें पठानकोट, अमृतसर तथा फरीदकोट की जेलें भी काटनी पड़ी हैं। भाईचारे के परिवारों को जबभी किसी सरमाएदार ने दबाने का प्रयास किया है तो वह उनके हकों की लड़ाई के लिए वे लड़ते हैं।
ऐसे ही एक मामले में अक्टूबर 2005 में पुलिस ने उन पर ही लाठीचार्ज कर दिया था। पेशे से शटरिग का काम करने वाले शिव कुमार पर 2009 में एक बार विरोधी पार्टी ने 2009 में गोली तक चला दी थी, जिसमें एक युवक घायल हो गया। शिव कुमार बताते हैं कि 2014 में हिमाचल प्रदेश के ज्वाली तथा 2018 में जेएंडके के नौशहरा में भट्टा मालिक ने अपनी लेबर को बंधुआ बनाया हुआ था। उनसे लगातार काम करवाकर उनका बनता वेतन नहीं दे रहा था। किसी प्रकार वह लोग उनके संपर्क में आए। उन्होंने जेएंडके में फंसे 11 तथा ज्वाली में फंसे पड़े 17 परिवारों को उनसे आजाद करवाया। इतना ही नहीं भट्टा मालिकों से उनका बनता पूरा वेतन भी दिलाया। उन्होंने कहा कि समाज में आज भी आज भी जात-पात तथा ऊंच-नीच की हो रही घटनाओं के खिलाफ वकालत करें ताकि लोगों को इंसाफ मिल सके।