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आठ साल से लटके सौर ऊर्जा प्रोजेक्ट पर फिर होगी माथापच्ची

बिजली बचत के लिए रेलवे ने आठ वर्ष पहले पठानकोट-जोगिद्र नगर रेल ट्रैक को सौर ऊर्जा युक्त करने का फैसला लिया था।

By JagranEdited By: Published: Tue, 01 Dec 2020 07:00 AM (IST)Updated: Tue, 01 Dec 2020 07:00 AM (IST)
आठ साल से लटके सौर ऊर्जा प्रोजेक्ट पर फिर होगी माथापच्ची
आठ साल से लटके सौर ऊर्जा प्रोजेक्ट पर फिर होगी माथापच्ची

विनोद कुमार, पठानकोट : बिजली बचत के लिए रेलवे ने आठ वर्ष पहले पठानकोट-जोगिद्र नगर

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रेल ट्रैक को सौर ऊर्जा युक्त करने का फैसला लिया था। ट्रेनों की छत पर सौर ऊर्जा की प्लेट लगाकर इसका परिचालन किया जाना था। प्रोजेक्ट के अनुसार रेल सेक्शन पर चलने वाली सभी 82 डिब्बों को सौर ऊर्जा युक्त बनाना था, लेकिन तीन डिब्बों को ही सौर ऊर्जा से लैस करने के बाद इसपर ब्रेक लग गई। इसका कारण फंड न होना बताया जा रहा है। अब रेलवे ने दस डिब्बों को सौर ऊर्जा युक्त बनाने का प्रोजेक्ट तैयार कर लिया है। दिसंबर में प्रोजेक्ट शुरू होने का कार्यक्रम तैयार कर लिया गया है जिस पर हायर अथारिटी की मुहर लगने का काम शेष रह गया है। डिब्बों को सौर ऊर्जा बनाने के बाद यहां बिजली की बचत होगी वहीं विभाग इलेक्ट्रिक इंजन की तर्ज पर वर्ष 2011 में रेलवे ने सौर ऊर्जा से रेल डिब्बे की बिजली सप्लाई को चार्ज करने का कारनामा किया था। इससे पहले विश्व में केवल रूस ने यह उपल्बधि हासिल की थी। सीनियर सेक्शन इंजीनियर रवि कुमार के नेतृत्व में तीन डिब्बों को सौर ऊर्जा से तैयार किया गया था। अप्रैल महीने में हायर अथारिटी के नेतृत्व में इसका ट्रायल लिया गया जो सफल रहा। तीन महीने के बाद रेल सेक्शन पर इन्हें भेजना शुरू कर दिया गया।

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तीन दिन का है बैकअप

एक बार चार्ज होने होने के बाद दोबारा चार्ज हुए तीन दिन का समय निकाल सकता है। इसकी क्षमता 72 घंटा की है। प्रत्येक कोच पर 24 वाट की 20 प्लेटें लगाई गई है, जिसे 24 घंटा तक सूर्य की किरणों से चार्ज किया जाता है।

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सौर ऊर्जा डिब्बों से विभाग को हो रहा लाभ

पठानकोट से जोगिद्रनगर तक 164.7 किलोमीटर सफय तय करने में रेलगाड़ी औसतन साड़े छह से सात घंटा लगाती है। रेल डिब्बों की छत लगी सौर ऊर्जा सफर के दौरान भी अपने आप चार्जिंग होती रहती है। इससे यहां बिजली की बचत हो रही है, वहीं विभाग को भी आर्थिक तौर पर लाभ मिल रहा है। रेलवे की मानें तो सिस्टम को ब्राडगेज सेक्शन पर शुरु नहीं किया जा सकता, क्योंकि देश के 80 फीसद से ज्यादा ब्राडगेज सेक्शन पर इलेक्ट्रिक रेल इंजन चल रहे हैं। हालांकि, तीन वर्ष पूर्व ब्राडगेज के डिब्बों को भी सौर ऊर्जा युक्त बनाने की योजना बनी थी जिस पर विराम लग गया।

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