भूमिहीनों को मालिकाना हक दिला रहे एडवोकेट ज्योति
लोगों को समाज में समानता दिलाने के उद्देश्य से काम कर रहे एडवोकेट ज्योति पाल लोगों को इंसाफ दिला चुके हैं।
जासं, पठानकोट : लोगों को समाज में समानता दिलाने के उद्देश्य से काम कर रहे एडवोकेट ज्योति पाल न्यायपालिका के माध्यम से कई लोगों को इंसाफ दिला चुके हैं। वह साधनहीन लोगों की आवाज बनकर उनके केस नि:शुल्क लड़ते हैं। अपने प्रयास में वह पचास से अधिक लोगों की मदद कर चुके हैं। यह बात कुछ साल पहले की है कि जब जिला प्रशासन की ओर से खड्डी-खड्ड के साथ-साथ शहर को एक वैकल्पिक मार्ग देने की योजना बनाई गई। योजना के अनुसार उक्त प्रोजेक्ट में 20 परिवार और एक गोशाला समस्या पैदा कर रहे थी। सरकार की और से गौशाला को तो लीज पर साथ वाली जमीन पर एडजस्ट करने का काम तो कर दिया परंतु 1971 में बसे परिवारों को वहां से हटाया जा रहा था। पीड़ित परिवारों ने उन तक अप्रोच की जिसके बाद उक्त परिवारों को साथ लेकर माननीय कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। कोर्ट में भारतीय संविधान के अनुछेद 39ए, अनुछेद 14, अनुछेद 19 व अनुछेद 21 का हवाला दिया गया कि राज्य सरकार जब भी कोई नया प्रोजेक्ट बनाती है तो उसे अमलीजामा पहनाने से पहले पब्लिक वेल्फेयर को देखा जाता है की दलील दी गई। इसके बाद माननीय कोर्ट ने भी उक्त परिवारों को रोड़ के समीप ही रहने का आदेश जारी कर दिया। जिला प्रशासन की ओर से उजाड़े जाने वाले सभी परिवार आज वहां पर अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं। इसके बाद 1974 से गांव दशोपुर में राज्य सरकार की और से हरिजनों को दी गई पांच-पांच मरले प्लाट में रहने वालों को ऊंची पहुंच रखने वाले लोगों ने दबाया हुआ था। वह लोग जब भी सरकार की और से दी गई जमीन पर कुछ करने के लिए जाते तो उन्हें रोक दिया जाता। पीड़ित 6-7 परिवारों ने उनसे संपर्क किया तो उन्हें माननीय कोर्ट के जरिए उनका बनता हक दिलाया गया।
सभी को आजादी से जीने का अधिकार
एडवोकेट ज्योति पाल ने बताया कि भारतीय संविधान के अनुछेद 19 व 21 में बताया गया है कि भारत में किसी भी व्यक्ति को अपना जीवन आजादी से जीने का अधिकार है। किसी भी धर्म पर कोई बंदिश नहीं है और न ही किसी इंसान के पहरावे और खाने पीने पर। लेकिन, दुख की बात है कि आज भी कई क्षेत्रों में इंसान को अपना जीवन जीने का पूरा अधिकार नहीं हैं। कई स्थानों पर दबंगई निम्न वर्ग के लोगों को समानता का अधिकार न देकर उनका शोषण करते हैं जिसके खिलाफ आवाज बुलंद कर पीड़ितों को माननीय कोर्ट के जरिए इंसाफ दिलाते हैं। बताया कि दलित समाज के साथ यदि कोई धक्का करता है तो वह उनके हकों के लिए पूरी तरह से खड़े हो जाते हैं।
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