मासूमों की जिंदगी से खेल रहे सेफ वाहन पॉलिसी को न मानने वाले
पूरे देश में सुप्रीम कोर्ट की ओर से लागू की गई सेफ स्कूल वाहन पॉलिसी को जिले के अधिकांश स्कूल नहीं मान रहे हैं।
सुशील पांडे, नवांशहर : पूरे देश में सुप्रीम कोर्ट की ओर से लागू की गई सेफ स्कूल वाहन पॉलिसी को जिले के अधिकांश स्कूल नहीं मान रहे हैं। स्कूल लगने के समय व छुट्टी होने के समय स्कूल के वाहन आम तौर पर नियमों को तोड़ते हुए देखे जाते हैं। क्षेत्र में ऐसी कई दुघर्टनाएं हो चुकी हैं लेकिन स्कूल प्रबंधन इसे गंभीरता से लेने को तैयार नही है। नियमों तो तोड़ते हुए स्कूल वाहन चालक शहर के मेन चौकों से भी गुजरते हैं। ट्रैफिक पुलिस के अधिकारियों व कर्मचारियों को नियम उल्लंघन दिखाई नही देते। कई स्कूलों में दिल्ली, यूपी, हरियाणा या अन्य राज्यों से कंडम बसें लाकर इस्तेमाल की जा रही हैं। इन बसों का दुर्घटना होने की सूरत में कोई क्लेम नहीं मिलता। विभाग भी सिर्फ पंजाब नंबर वाली गाड़ियों को ही इस पॉलिसी के तहत पास करता है और वह भी स्कूल मुखी से लिखित लेने के बाद। जिले में 1000 के करीब स्कूल वैन चल रही हैं। ऐसे में मासूमों की जिदगी से खेलने वालों के खिलाफ सख्त से सख्त कारवाई करनी चाहिए।
सेफ वाहन पॉलिसी के तहत ये नियम
बसों के लिए
1. बस गोल्डन पीले रंग की होनी चाहिए।
2. टैंपर प्रूफ स्पीड गवर्नर लगे हों, अधिकतम स्पीड 50 किमी. प्रति घंटा।
3. बस का फिटनेस और इंश्योरेंस सर्टिफिकेट हो।
4. बसों की विडो में ग्रिल लगी होनी चाहिए, भीतर कोई पर्दा नहीं हो।
5. बस में स्कूल का नाम लिखा पीछे हेल्पलाइन नंबर व स्कूल का नंबर हो। स्कूल ऑटो के लिए
1. आरटीए से मान्यता प्राप्त ऑटो में 5 से अधिक बच्चे न बैठे हों। दोनों ओर ग्रिल्स लगी होनी चाहिए।
2. एक महिला वार्डन छोटे बच्चों की निगरानी के लिए हो।
3. सीसीटीवी कैमरा लगा होना चाहिए।
4. समय-समय पर ड्राइवर की मेडिकल जांच होनी चाहिए।
क्षेत्र में स्कूल वाहन हो चुके हैं दुघर्टना का शिकार
सेफ वाहन पालिसी की पालन न होने से जिले में कई दुघर्टनाएं हो चुकी हैं। हाल ही में बलाचौर के मेहंदीपुर रोड पर एक निजी स्कूल के ऑटो की टक्कर होने के कारण मोटरसाइकिल सवार की मौके पर ही मौत हो गई थी। स्कूल ऑटो को सिर्फ पीला रंग किया गया था पर उस पर स्कूल का नाम नही लिखा था। इसके साथ ही एक स्कूल वैन से शराब की बोतल भी बरामद की गई थी। छह माह पहले पोजेवाल क्षेत्र में एक निजी स्कूल का ऑटो ओवरलोड होने के कारण खेत में पलट गया था जिससे बच्चों का बचाव हो गया था। वहीं कुछ माह पहले बंगा के करियाम रोड पर एक 16 साल के छात्र को अभिभावकों ने स्कूल की बड़ी बस को चलाते हुए पकड़ा हुआ था।
सेफ स्कूल वाहन पॉलिसी के तहत हर माह होगी मीटिंग : एसडीएम
नवांशहर के एसडीएम जगदीश सिंह जौहल का कहना है कि सेफ स्कूल वाहन पॉलिसी के तहत स्कूलों, आरटीए और ट्रैफिक पुलिस की जिम्मेदारी तय की गई है। पॉलिसी में स्कूल बसों की गुणवत्ता पर फोकस किया गया है और यह हिदायत है कि कंडम बसें इस्तेमाल न की जाएं। इसमें बस ऑपरेटर को 30 दिन का रिकॉर्ड रखने को निर्देश दिया गया है। साथ ही बसों के रूट के बारे में भी पूरा रिकॉर्ड रखा जाना अनिवार्य है। वहीं, स्कूल मैनेजमेंट अपने एक फैकल्टी या स्टाफ मैंबर को ट्रांसपोर्ट मैनेजर के तौर पर अप्वाइंट करेगी। इसकी जानकारी आरटीए को देनी होगी। सभी स्कूली बसों में प्राथमिक उपचार के लिए बॉक्स रखना जरूरी है। इसमें फायर सेफ्टी उपकरण रखे जाने चाहिए। स्कूल लैवल पर ट्रांसपोर्ट कमेटी बनी हुई है। इसके हेड प्रिसिपल या हेडमास्टर होंगे। कमेटी की महीने में एक मीटिग जरूर होगी। नियमों का पालन न करने वालों के काटे जाते हैं चालान : ट्रैफिक इंचार्ज
इस बारे में ट्रैफिक इंचार्ज नवांशहर रत्न सिंह का कहना है कि सेफ स्कूल वाहन पालिसी के नियमों का पालन न करने वालों के चालान काटे जाते हैं। उन्होंने कहा कि चालान बुक में एक स्पेशल हिस्सा सेफ स्कूल वाहन पॉलिसी का है जिसके तहत चालान काटे जाते हैं। उन्होंने कहा कि सेफ स्कूल वाहन पॉलिसी के तहत कंडम बसों को स्कूलों के लिए प्रयोग करने और दुर्घटना होने पर चालक पर आईपीसी की धारा 307 या आईपीसी की धारा 302 के तहत पर्चा दर्ज किए जाने का प्रावधान है।