इस साल किसानों ने खेतों में दोगुनी जलाई पराली, धुएं से घुटने लगा लोगों का दम
पराली जलाने के मामलों से प्रदूषण का स्तर बढ़ा है। जिससे जिले में सांस की तकलीफ के मरीजों की संख्या दोगुनी से भी ज्यादा हो चुकी है। जहां पहले सांस के तकलीफ मरीजों की संख्या 15 थी वो अब बढ़ कर रोजाना 35 तक हो गई है।
नवांशहर, सुशील पांडे। सरकार व प्रशासन की ओर से बेशक पराली को जलाने को लेकर सख्ती की गई है, फिर भी पराली जलाने के 53 मामले अभी तक सामने आ चुके हैं। प्रशासन की ओर से की गई सख्ती का किसानों पर कोई असर नहीं हो रहा है। पराली जलाने के मामलों से प्रदूषण का स्तर बढ़ा है। जिससे जिले में सांस की तकलीफ के मरीजों की संख्या दोगुनी से भी ज्यादा हो चुकी है। जहां पहले सांस के तकलीफ मरीजों की संख्या 15 थी वो अब बढ़ कर रोजाना 35 तक हो गई है।
सोमवार को यह आंकड़ा बढ़ कर 50 तक हो गया है। प्रदूषण का स्तर बढ़ने से सबसे ज्यादा समस्या समस्या पहले से ही दमा से पीड़ित लोगों को हो रही है। प्रदूषण ने बढ़ाई कोरोना की सैंप¨लग पराली के कारण प्रदूषण बढ़ रहा है और हवा में घुल रही पराली की जहरीली हवा के कारण लोगों को सांस लेने में दिक्कत आ रही है। वहीं कोरोना की बीमारी में सबसे मुख्य लक्षण सांस लेने में दिक्कत का होना ही है। जिसके कारण प्रदूषण के कारण सांस लेने की समस्या को लेकर अगर कोई सरकारी अस्पताल में जाता है तो उसका सबसे पहले कोरोना का टैस्ट ही किया जाता है। जिसके कारण कोरोना के सैंपलिंग में बढ़ोतरी हो रही है। इस बार नहीं बनाया विशेष वार्ड पिछले साल अक्कूटबर में ही पराली को जलाने के कारण प्रदूषण से सांस की बीमारी से ग्रस्त होने वाले लोगों के लिए नवांशहर के सरकारी अस्पताल में एक विशेष वार्ड बनाया गया था, लेकिन इस बार जिले के किसी अस्पताल में विशेष कमरा नहीं बनाया गया है।
पिछले वर्ष सरकार के आदेशों के मिलने के बाद ही यह सांस के मरीजों के लिए अस्पताल में विशेष कमरा बनाया गया था। इस कमरे में सात बेड और रेसपिरेटरी से जुड़ी सभी दवाइयां व अन्य सामान मुहैया करवाया गया था। पराली जलाने से 15 फीसद अधिक बढ़ा प्रदूषण आम दिनों में प्रदूषण का स्तर 70 एक्यूआइ रहता है जो नवांशहर में अब 150 के पार पहुंच चुका है। इसके और बढ़ने की संभावना है। अब तक जिले में पराली जलाने के 51 मामले सामने आ चुके हैं। इनमें से 45 हजार रुपये के चालान किए गए हैं।
पराली जलाने से 15 प्रतिशत तक प्रदूषण बढ़ा रहा है। वर्ष 2018 में पराली को आग लगाने के 251 मामले सामने आए थे। वहीं 2019 में 200 से एक टन पराली जलाने से 1513 किलोग्राम कार्बन डाइआक्साइड, 92 किलो कार्बन मोनोआक्साइड, 3.83 किलो नाइट्रस आक्साइड, 0.4 किलो सल्फर डाइऑक्साइड और 2.7 किलोग्राम मीथेन हवा में घुलती है। इस कारण सांस लेने में तकलीफ शुरू हो जाती है।
जहां एक महीना पहले सांस की तकलीफों के 18 से 20 मरीज प्रतिदिन आते थे वहीं अब इनकी संख्या बढ़ कर 35 पर पहुंच चुकी है। पराली की आग का धूंआ बेहद खतरनाक होता है। आंखों के अलावा फेफड़ों में सांस के जरिए इसके अंदर जाने से बड़ा नुकसान कर सकता है।
डा. राजिंदर प्रसाद भाटिया, सिविल सर्जन।