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जांच की व्यवस्था नहीं, अनफिट-खटाड़ा वाहन मौत बन सड़कों पर रहे दौड़

सड़कों पर दौड़ रहे वाहनों की उम्र मात्र 15 वर्ष होती है। 15 वर्ष से ऊपर का वाहन सड़क पर नहीं आ सकता है। पर इसके बावजूद सड़कों पर अपनी उम्र पार कर चुके वाहन दौड़ते हैं और इन्हें रोकने वाला कोई नहीं है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 25 Nov 2020 03:19 PM (IST)Updated: Thu, 26 Nov 2020 07:52 PM (IST)
जांच की व्यवस्था नहीं, अनफिट-खटाड़ा वाहन मौत बन सड़कों पर रहे दौड़
जांच की व्यवस्था नहीं, अनफिट-खटाड़ा वाहन मौत बन सड़कों पर रहे दौड़

सुशील पांडे,नवांशहर : सड़कों पर दौड़ रहे वाहनों की उम्र मात्र 15 वर्ष होती है। 15 वर्ष से ऊपर का वाहन सड़क पर नहीं आ सकता है। पर इसके बावजूद सड़कों पर अपनी उम्र पार कर चुके वाहन दौड़ते हैं और इन्हें रोकने वाला कोई नहीं है। प्रशासन और ट्रैफिक पुलिस की ओर से अपनी उम्र पार कर चुके वाहनों को चेक करने के लिए संसाधन ही नहीं है। जिला पुलिस की ओर से बेशक पिछले तीन माह में ही एक करोड़ 20 लाख रुपये से ज्यादा के चालान मास्क न पहनने वालों के किए गए हैं पर कोरोना से भी ज्यादा सड़क दुर्घटनाओं में मरने वाले लोगों को बचाने के लिए पुलिस के पास कोई योजना ही नहीं है। सड़क सुरक्षा अभियान चला कर पुलिस की ओर से खानापूर्ति कर ली जाती है, पर इसका परिणाम हमेशा ही शून्य ही रहता है।

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पुरानी और जर्जर हालत वाली गाड़ियों को मिल जाता प्रमाणपत्र

परिवहन विभाग की ओर से कई पुरानी और जर्जर हालत वाली गाड़ियों को प्रमाण पत्र दे दिया जाता है। सड़क पर चल रहे वाहनों को फिटनेस देने का काम परिवहन विभाग का है। विभाग के अफसर न तो सड़क पर दौड़ लगा रही गाड़ियों की नियमित रूप से जांच करते हैं और न ही जर्जर पुराने वाहनों को फिटनेस का सर्टिफिकेट दिखाने में सख्ती बरतते हैं।

स्कूल वाहन से लेकर ट्रैक्टरों के पास नहीं होता फिटनेस प्रमाण पत्र

सड़कों पर हजारों वाहन बिना फिटनेस के भी दौड़ते रहते हैं। यह अक्सर दुर्घटनाओं का कारण बनते हैं। इन वाहन चालकों के खिलाफ परिवहन विभाग व पुलिस की कार्रवाई भी चालान और जुर्माने तक ही सीमित है। अधिकारी बिना फिटनेस वाले वाहनों को मार्गों से हटाने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठा रहे हैं, जबकि ऐसे वाहनों को सड़कों पर दौड़ने की इजाजत नहीं देने का अधिकार सरकार ने उन्हें दे रखा है। अधिकारियों की मिलीभगत व अनदेखी के कारण बिना फिटनेस वाले वाहन कई लोगों की जानें लील रहे हैं। खासकर छोटे-छोटे स्कूल वाहन से लेकर ट्रैक्टर मालिक द्वारा न तो फिटनेस जांच कराई जाती है और न ही चालकों का ड्राइविग लाइसेंस बनाना जरूरी समझते हैं।

वाहन की ऐसी होनी चाहिए फिटनेस

वाहन में आगे पीछे रिफ्लेक्टर लगा हो, हाई सिक्योरिटी प्लेट और स्पीड गवर्नर लगा हो। वाहन की सभी खिड़कियों में शीशे लगे हो, वाहन का वैध पंजीकरण हो। मानक से अधिक गाड़ी धुआं न छोड़ रही हो। वाहन में सड़क सुरक्षा संबधी स्लोगन लिखा होना अनिवार्य होना चाहिए। इसके साथ ही फिटनेस में यह भी जांचा जाता है कि चालक नशे का सेवन न करता हो।

दावे व हकीकत

वायु प्रदूषण रोकने के लिए वाहनों का फिटनेस प्रमाण पत्र आरटीओ से जारी होता है। दशकों पुराने ऐसे वाहन भी सड़क पर चलते हैं जो मानक पर खरे नहीं उतरते हैं। विभाग इन्हें रोक पाने में फेल है। इसकी वजह से सड़कों पर प्रदूषण वाले वाहन दौड़ रहे हैं। विभाग के अधिकारी कहते हैं कि प्रति वर्ष चार पहिया वाहनों की फिटनेस की जांच होती है। तब प्रमाण पत्र जारी किया जाता है। फिटनेस जांच नियमित की जाती है, लेकिन हकीकत में ऐसा कुछ नही होता है।


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