राष्ट्रपति बनने पर भी विद्यार्थियों से जुड़े रहे डॉ. राधा कृष्णन
संवाद सूत्र, नवांशहर भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. राधा कृष्णन के जन्म दिवस को शिक्षक दिवस क
संवाद सूत्र, नवांशहर
भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. राधा कृष्णन के जन्म दिवस को शिक्षक दिवस के रूप में मनाए जाने पर पूरे देश को गर्व है। डॉ. राधा कृष्णन ऐसे पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने भारत में अपनी शिक्षा पूरी करके विदेशों में जाकर पढ़ाया। उनसे किसी भी विषय को विस्तार से कहने और संक्षेप में कहने की अदभूत क्षमता थी।
मनुष्य और उसके ज्ञान से संबंधित ऐसा कोई विषय नहीं, जिस पर डॉ. राधा कृष्णन ने लिखा न हो या कुछ कहा न हो। शिक्षा के क्षेत्र में उनकी जो देन है, उसे भुलाया नहीं जा सकता। इस संबंध में क्षेत्र के कुछ शिक्षाविदों से बात हुई। फोटो--
डॉ.कृष्णन विद्यार्थियों को अच्छी तरह से पहचानते थे: रणजीत कौर
सरकारी सीनियर सेकेंडरी स्कूल की ¨प्रसिपल रणजीत कौर ने कहा कि एक शिक्षक के नाते डॉ. राधा कृष्णन कक्षा के हर एक विद्यार्थी को भली भांति पहचानते थे। किसी भी विषय पर व्याख्यान देने की उन्हें महारत हासिल थी। अंग्रेजी भाषा पर उनकी पकड़ बहुत मजबूत थी। जब ¨हदुस्तान गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था, उस समय भी डॉ. राधा कृष्णन का धोती पगड़ी पहनकर आक्सफोर्ड के मानचेस्टर कॉलेज में जीवन के संबध में भारतीय ²ष्टिकोण विषय पर व्याख्यान देना बहुत मायने रखता है। इससे उन्होंने यह बात सिद्ध कर दी कि भारतीय ऋषियों द्वारा दिया गया ज्ञान सारी दुनिया को रास्ता दिखाने का दमखम रखता है। फोटो--
राष्ट्रपति बनने के बाद भी विद्यार्थियों से संपर्क बनाए रखे: कृष्णा जोशी
एसडी सीनियर सेकेंडरी स्कूल की पूर्व ¨प्रसिपल कृष्णा जोशी ने बताया कि राष्ट्रपति का पद ग्रहण करने पर भी डॉ. राधा कृष्णन ने विद्यार्थियों से अपना संपर्क नहीं तोड़ा। अपने विद्यार्थियों के अंदर किसी भी प्रकार की जिज्ञासा को शांत करने के लिए और उनके सवालों का जवाब देने के लिए वह हमेशा तैयार रहते थे। कोई भी विद्यार्थी उनसे सहज भाव व प्यार भाव से मिलता है। फिलासफी जैसे गूढ़ विषयों को बड़े ही सरल ढंग से समझा देना उनकी खूबी थी। उनका विश्वास और नम्रता सभी के लिए बनी रहती थी। फोटो--
विद्यार्थियों के अंदर नैतिक ऊंचाइयां पैदा करते थे कृष्णन: बृज मोहन
भाषा विशेषज्ञ डॉ. बृज मोहन बड़थ्वाल ने कहा कि डॉ. राधा कृष्णन का मानना था कि एक अध्यापक को सिर्फ अपने विषय का मास्टर होकर ही नहीं रह जाना चाहिए। अपने विद्यार्थियों के अंदर नैतिक ऊंचाइयां पैदा करना भी एक योग्य शिक्षक का पहला फर्ज बनता है। अच्छी शिक्षा, अच्छी शिक्षण संस्थाओं द्वारा ही संभव है और शिक्षक का आदर्श भी ऊंचा रहना जरूरी है। स्वार्थीपन से यह काम नहीं हो सकता। मानसिक गंदगी तो बाहरी गंदगी से ज्यादा खतरनाक होती है। इसलिए हमें बुराई और अच्छाई, सही और गलत तथा प्रिय और अप्रिय में अंतर का पता होना चाहिए। फोटो-
अपने अंदर छिपी हुई अच्छाइयों पर पूरा विश्वास था: सतीश राजपाल
सरकारी सीनियर सेकेंडरी स्कूल भारटा कलां के पूर्व ¨प्रसिपल सतीश राजपाल ने कहा कि डॉ. राधा कृष्णन को मनुष्य के अंदर छिपी मूलभूत अच्छाइयों पर पूर्ण विश्वास था। उनके मुताबिक इंसान सिर्फ अपनी सहज प्रवृत्तियों और भावनाओं का ही समूह नहीं है, बल्कि उसके अंदर आत्मा का भी वास है। इसलिए ईश्वरत्व की प्राप्ति उसकी ताकत और हद से बाहर नहीं है। अगर सही शिक्षा के द्वारा उसका विकास हो तो वह आत्मसाक्षात्कार द्वारा अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। जब तक हम जीवन के चक्र और हीन बातों में फंसे हैं, तब तक हमें सही अंतर²ष्टि प्राप्त नहीं हो सकती। हम उस हद तक अपूर्ण हैं, जहां तक हमें अपने को अपनी भावनाओं का दास बना रखा है।
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शिक्षा को जीवन में सब दिन बताते रहे बहुत ही ज्यादा महत्व: अशोक
सरकार सीनियर सेकेंडरी स्कूल स्कूल हियाला के पूर्व ¨प्रसिपल अशोक ने बताया कि व्यक्ति के जीवन में शिक्षा का बहुत महत्व है। डा. राधा कृष्णन ने शिक्षा की परिभाषा देते हुए कहा कि था कि शिक्षा का वास्तविक लक्ष्य यही है कि मनुष्य का चरित्र तालबद्ध होना चाहिए और उसकी आत्मा सृजनात्मक होनी चाहिए। वह कहते थे कि विद्या ग्रहण करते समय सिर्फ अपनी बुद्धि को ही शिक्षित नहीं करना चाहिए, बल्कि मानव हृदय को भी सुंदरता से भर देना चाहिए। अच्छे साहित्य व अच्छी पुस्तकों के संपर्क में रहकर हम माननीय संवेदनाओं को ज्यादा अच्छी तरह से समक्ष सकेंगे।
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वे चाहते थे कि प्रादेशिक भाषा बने शिक्षा का माध्यम: सतनाम सिंह
पंजाबी भाषा के विशेषज्ञ मास्टर सतनाम ¨सह ने बताया कि डॉ. राधाकृष्णन का विचार था कि प्रादेशिक भाषा को शिक्षा का माध्यम होना चाहिए। जिस समय डा. राधा कृष्णन ने यह विचार व्यक्त किए थे, उस समय तक भाषा विवाद ने सियासी रूप धारण नहीं किया था। उस समय वर्तमान समय की भांति संदेह और घृणा की भावना नहीं थी। राधा कृष्णन के विचार से अंग्रेजी की शिक्षा ने भारत में दो प्रकार की संभ्यताओं को जन्म दिया है। इसने उच्च वर्ग और निम्न वर्ग के भेद को और गहरा कर दिया है। आज तो यह खाई बहुत ज्यादा बढ़ गई है। लोगों के दिलों को छूने का सही तरीका यही है कि प्रादेशिक भाषा को ज्ञान के प्रसार का माध्यम बनाया जाए।