गणपति दूर करते हैं भक्तों के विघ्न
संवाद सूत्र, नवांशहर : पंचाली बाजार बंगा सेवा सोसाइटी ने वार्षिक गणेश उत्सव मनाया गया। इस धार्मिक का
संवाद सूत्र, नवांशहर : पंचाली बाजार बंगा सेवा सोसाइटी ने वार्षिक गणेश उत्सव मनाया गया। इस धार्मिक कार्यक्रम में प्रवचन करते हुए दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की साध्वी त्रिपदा भारती ने श्री लंबोदर गणपति जी के आप्त तथा उदात चरित्र को प्रतियादित करते हुए गणेशोत्पति कथा को प्रसारित किया। पुराणों में वर्णित है कि मां पार्वती ने स्नान के समय अपने शरीर की मैल या उबटन से एक पुतला निर्मित कर उसमें प्राण प्रतिष्ठित किए।
इस प्रकार से गणेश जी का अवतरण हुआ। आज का बुद्धिजीवी वर्ग इस गाथा को कपोल कल्पित बताता है। दूसरी ओर ईश्वर को मानने वाले लोग इस कथा को ज्यों का त्यों ही रट लेते हैं। एक वर्ग बुद्बि व तर्क से जानना चाहता है दूसरा वर्ग धर्माधि हो, इसे रटन प्रकिया तक ही रखना चाहता है। परंतु ये कथा संकेतिक है। पार्वती मां जीवात्मा का प्रतीक है। स्नान सत्संग का तथा मैल जन्म जन्मांतरों के बुरे कर्मो का द्योतक है। जब जीव पूर्ण संत की शरण में जाता है तो जन्मों की कालिमा परिमार्जित हो जाती है। जिस प्रकार मोबाइल का कार्ड रिचार्ज करवाने से हम उसका प्रयोग कर सकते हैं, भाव दूसरों से बात कर सकते है। ठीक ऐसे गुरु आत्मा को ब्रह्माज्ञान प्रदान कर रिचार्ज करता है। उसका संबंध आत्मा से जोड़ता है। भगवान गणेश जी के सिर उच्छेदन के पश्चात भगवान महादेव ने गजमुख लगा दिया। ऐसा करने के पीछे बहुत विराट रहस्य छिपा हुआ है। यह हमारे वैदिक विज्ञान उत्कृष्टता का प्रमाण है। शीश प्रत्यारोपण करने में हमारा पुरातन ऋषि विज्ञान उत्थान के प्रकाश मे स्वछंद उडान भर रहा था। दूसरा गज (हाथी) को अध्यात्मिकता का प्रतीक माना गया है।
भगवान बुद्ध के जन्म से पूर्व उनकी माता मायादेवी को श्वेत गज के दर्शन स्वप्न में हुए थे। तीसरा कारण यह है कि गणेश जी को विवेक प्रदाता कहा गया है। वह बुद्धि नहीं सद्बुद्धि प्रदान करते हैं। लोग कहते हैं कि हमारी दशा ठीक नहीं है। जब सदबुद्धि के अभाव में दिशा उचित नहीं होगी तो दशा सुधर नहीं सकती। मानव अज्ञानतावश गलत एवं अनुचित कर्म कर रहा है। आज एक ओर मानवता सहमी खड़ी है और दूसरी ओर सर्वनाश दस्तक दे रहा है। हमारे समस्त आर्षग्रंथ उस विवेक को प्राप्त करने की शिक्षा दे रहें है। यह सदबुद्धि मात्र ब्रह्माज्ञान की प्राप्ति से ही संभव है। इस अवसर पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु मौजूद थे। साध्वी बहनों ने सुमधुर भजनों का गायन किया कथा का समापन विधिवत प्रभु की पावन आरती से किया गया।