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इंसान को मोह और माया की नींद से जगाते हैं संत

दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान नवांशहर गांव नीलोवाल में गुरवाणी समागम का आयोजन कर रहा है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 10 Dec 2019 12:10 AM (IST)Updated: Tue, 10 Dec 2019 06:10 AM (IST)
इंसान को मोह और माया की नींद से जगाते हैं संत
इंसान को मोह और माया की नींद से जगाते हैं संत

जेएनएन, नवांशहर : दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान नवांशहर गांव नीलोवाल में गुरवाणी समागम का आयोजन कर रहा है। कार्यक्रम के दूसरे दिन की शुरुआत करते हुए भाई मंगल सिंह ने प्रवचन किए। उन्होंने कहा, हमारे संत अपनी वाणी में कहते हैं कि जो संत महापुरुष होते हैं वह समय-समय पर चौकीदार की तरह इंसान को मोह और माया की नींद से जगाते हैं। जो लोग उनकी वाणी को सुनकर जाग जाते है, वे अपने जीवन को बचा लेते हैं। जो नहीं जागते वह इस तन को काल के हाथों बेच देते है। यह जो संसार हम देख रहे हैं यह एक मझदार है। इसमें रहने वाले हर इंसान का लक्ष्य इसे पार करना है, लेकिन इसे ज्ञान रूपी नौका के बिना पार नहीं किया जा सकता। आज हम सभी को यह तो पता है कि यह संसार हमारा अपना घर नहीं है। हम इस संसार में किराए के मकान में रहते है, आखिर में हमें इसे छोड़ कर जाना ही पड़ेगा। लेकिन फिर भी इंसान इसी में लिप्त है। मानव तुम सत्य को पहचानों झूठ, कपट की चादर ओढ़ कर मत चलो, तुम्हारा लक्ष्य ईश्वर है। आज हम सभी ईश्वर की चौखट पर अवश्य जाते है, लेकिन ईश्वर की मांग न करके हम संसार की वस्तुओं की कामना अधिक करते है। हम वहीं चीजें अधिक मांगते है जो हमें ईश्वर की और नहीं बल्कि इस नश्वर संसार की लेकर जाती है। कभी ईश्वर के द्वार पर उस प्रभु को मांगना वह एक पल की देरी लगाए बिना ही आ जाता है। अकसर लोग यह भी कहते है कि ईश्वर के घर में देर है अंधेर नहीं। लेकिन संत कहते है कि न तो ईश्वर के घर देर न ही अंधेर है। देर है तो हमारे बुलाने में देर है, उसके आने में देर नहीं हो सकती। इसलिए इंसान को यदि प्रभु से कुछ मांगना है तो प्रार्थना करें कि प्रभु मुझे इस संसार के बंधनों से मुक्त कर दो। मुझे इस मझदार से पार लगा दो। मुझे अपने चरणों में स्थान दो प्रभु। ईश्वर की कृपा से ही पूर्ण संत का आगमन हमारे जीवन में होगा और वह संत ही हमारे भीतर बैठे ईश्वर का दर्शन करवा देगा। जब ईश्वर का दर्शन एक जीव आत्मा करती है तो वह भक्ति मार्ग पर चलते-चलते मोक्ष को प्राप्त होता है, इसलिए आवश्यकता है ब्रह्मज्ञान की, जो संत हमें प्रदान करें।

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