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भगवान विष्णु की चार प्रदक्षिणा का अर्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष सिद्ध करना

श्रीराम भवन में चल रहे वार्षिक कार्तिक महोत्सव कमलानंद गिरि ने प्रवचन किए।

By JagranEdited By: Published: Mon, 23 Nov 2020 03:04 PM (IST)Updated: Mon, 23 Nov 2020 05:48 PM (IST)
भगवान विष्णु की चार प्रदक्षिणा का अर्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष सिद्ध करना
भगवान विष्णु की चार प्रदक्षिणा का अर्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष सिद्ध करना

संवाद सूत्र, श्री मुक्तसर साहिब

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श्रीराम भवन में चल रहे वार्षिक कार्तिक महोत्सव तहत प्रवचनों की अमृतवर्षा करते हुए देवभूमि हरिद्वार के महामंडलेश्वर स्वामी कमलानंद गिरि ने कहा कि जगत जननी मां दुर्गा की एक प्रदक्षिणा (परिक्रमा) करनी चाहिए। यज्ञ के बाद अग्नि के हवन कुंड की व यज्ञशाला की सात प्रदक्षिणा होनी चाहिए। भगवान विष्णु की चार प्रदक्षिणा की जाती है। चार प्रदक्षिणा का अर्थ है धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष सिद्ध करना। भगवान की और भगवान के मंदिर की प्रदक्षिणा जीवन की सभी परीक्षाओं में पास कराने वाली होती है।

स्वामी जी ने भरत की महिमा सुनाते हुए बताया कि जिसमें भरत जैसा तप, भरत जैसा त्याग और भरत जैसी निष्काम भावना है। उसको भगवान विशेष प्यार देते हैं, उसके ऊपर हमेशा अपना वरदहस्त बनाए रखते हैं। उन्होंने बताया कि श्री भरत और श्री राम कोई खेल खेलने जाते तो श्रीराम जी दौड़े-दौड़े मां सुमित्रा जी के पास आकर अपने भाई भरत की प्रशंसा करते की मां आज मेरे भाई भरत ने मुझे खेल में हरा दिया है। मेरा भाई भरत बलवान है। ऐसे ही भरत जी मां कौशल्या के पास भारी मन से जाते और निवेदन करते की मां राम भैया को समझाओ कि मेरा मान बढ़ाने के लिए मेरी इज्जत और प्रतिष्ठा को ऊंचा उठाने के लिए जान-बूझकर खेल में हारने की लीला करते हैं। स्वामी ने आगे बताया कि जिस घर में अयोध्या का जैसा परिवार हो। बड़ा भाई छोटे भाई को सही मार्गदर्शन करे। छोटे भाई बड़े भाई का भरत, लक्ष्मण, शत्रुघ्न बनके इज्जत बढ़ाएं तो हमारे अपने हृदय में ही रामराज्य स्थापित हो सकता है। रामराज्य की बात करना बहुत आसान है लेकिन राम राज्य को अपने हृदय में उतार कर उस पर अमल करना कठिन काम है।

उन्होंने बताया कि 14 वर्षों तक पत्नी का त्याग, भोजन का त्याग और निद्रा का त्याग ऐसे कार्य तो केवल लक्ष्मण जैसे यति ही कर सकते हैं। अयोध्या का नाम इसीलिए अयोध्या रखा गया कि वहां कोई लड़ाई, झगड़ा या कोई युद्ध कभी भी नहीं होता। राम जी ने वन में जाकर कठोर तपस्या की। लखन लाल जी ने उनकी सेवा से और श्री भरत जी ने अवध में रहकर प्रभु की चरण पादुकाओं की सेवा द्वारा बराबर की तपस्या की। पदार्थों के अभाव में तपस्या अपने आप हो जाती है। इनसेट

आंवला नवमी मनाई

कार्तिक महोत्सव के तहत श्री राम भवन में आंवला नवमी धूमधाम व हर्षोल्लास के साथ मनाई गई। स्वामी कमलानंद जी ने आंवला नवमी का महत्व बताया। स्वामी जी ने कहा कि आज के दिन आंवला का स्पर्श करना और आंवला सेवन करना बहुत अच्छा बताया गया है। श्रद्धालुओं ने मंदिर में आंवला का पूजन भी किया। साथ ही श्रद्धालुओं को आंवला प्रसाद भी वितरित किया गया।


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