महाव्रतों का पालन करने वाला सच्चा साधु
साधु का लक्ष्य केवल साधु बनना ही नहीं होता है बल्कि साधना से होता है।
संवाद सूत्र, मलोट (श्री मुक्तसर साहिब)
साधु का लक्ष्य केवल साधु बनना ही नहीं होता है बल्कि साधना कर सिद्ध बनना होता है। केवल वस्त्र बदल लेने से कोई साधु नहीं होता है अपितु जो अहिसा, सत्य, अस्तेय ब्रह्मचर्य अपरिग्रह इन पांच महाव्रतों का पालन करता है वही सच्चा साधु होता है। वही साधु सिद्ध बनता है जो सिद्ध बनने के लक्ष्य को अपनी आंखों के सामने रखता है। जो साधक इधर-उधर आगे पीछे दूसरों को देखते हुए चलता है वह सिद्ध नहीं बन सकता है। यह विचार पंजाब सिंहनी प्रदीप रश्मि ने श्रद्धालुओं से कहें। उन्होंने बताया कि कर्म गति बड़ी गहन है। समस्त जीवों पर कर्म का ही प्रभाव है। कर्म से ही व्यक्ति सुख दुख लाभ हानि उत्थान पतन प्राप्त करता है कर्म बहुत शक्तिशाली है। प्रभु बताते हैं यह कर्म बंधते कैसे हैं। कौन इसे बांधता है यह कर्म किसी परमात्मा के द्वारा लिख करके नहीं दिए जाते हैं। जीव स्वयं ही अपनी राग द्वेष की प्रवृत्ति के द्वारा इन कर्मों को बांधता है और स्वयं ही इन कर्मों को भोगता है।
जैसे आग में तपा हुआ लोहे का गोला लाल हो जाता है और उसे पानी में छोड़ दिया जाता है तो वह चारों और से पानी को अपनी तरफ खींचता है इसी प्रकार कषायों की आग में तपती हुई आत्मा चारों ओर से कर्म को अपनी ओर आकर्षित करती है। इस अवसर पर एसएस जैन सभा के प्रधान प्रवीण जैन, कोषाध्यक्र्ष्र रमेश जैन, धर्मवीर जैन, सुरेश जैन, अमन जैन, सिद्धार्थ जैन, बिहारी लाल जैन, जसपाल जैन, लाली गगनेजा, उमेश नागपाल व मक्खन लाल अरोड़ा भी उपस्थित थे।