पांच लक्षणों को पहचानने वाला धर्म का रक्षक : स्वामी
स्वामी दिव्यानंद गिरि ने माघ महात्म्य कथा के दौरान प्रवचनों की अमृतवर्षा करते कहा कि धर्म की पांच बातें हमेशा ही याद रखनी चाहिएं।
संवाद सूत्र, श्री मुक्तसर साहिब : स्वामी दिव्यानंद गिरि ने माघ महात्म्य कथा के दौरान प्रवचनों की अमृतवर्षा करते कहा कि धर्म की पांच बातें हमेशा ही याद रखनी चाहिएं। जो धर्म के पांच लक्षणों को पहचानता है वो ही सही मायने में धर्म की रक्षा कर सकता है। स्वामी जी ने ये विचार श्री मोहन जगदीश्वर दिव्य आश्रम में माघ महात्म्य कथा के दौरान व्यक्त किए। स्वामी जी ने कहा कि धर्म का पहला लक्षण सत्य है। मनुष्य को कभी भी सत्य की राह नहीं छोड़नी चाहिए। चाहे मनुष्य पर कितनी भी विपदा आ जाए उसे हमेशा सत्य की राह पर चलते रहना चाहिए। सत्यवादी राजा हरीश चंद्र के जीवन में कितनी मुश्किलें, कठिनाइयां आईं मगर वो सत्य की राह पर चलते रहे। दूसरा लक्षण है दया। किसी को पीड़ा न पहुंचाना। कभी भी किसी को पीड़ा न पहुंचाएं। किसी को खुशी नहीं दे सकते तो उन्हें गम देने का अधिकार भी आपको नहीं है। इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं है। तीसरा लक्षण है पवित्रता। घर, मन व शरीर को हमेशा पवित्र रखें। जिस घर में जितनी पवित्रता होगी, वहां मां लक्ष्मी का वास होता है। जिस घर में जितनी ज्यादा गंदगी होगी, वहां दरिद्रता आती है। इसलिए हमेशा घर का आंगन स्वच्छ व साफ होना चाहिए। चौथा लक्षण है तपस्चर्या। मनुष्य का शरीर जितना साफ है मन उतना ही काला है। विचार उतने ही बुरे हैं। वाणी उतनी ही खराब है। शरीर के साथ-साथ वाणी व विचार पवित्र रखें। अमीर हो या गरीब दोनों को चोट लगने या लड़ाई में लगने पर तकलीफ एक समान होती है। पांचवां लक्षण है तितिक्षा। अर्थात भगवान जो भी दे उसे प्रसाद समझकर ग्रहण करें। चाहे वो दु:ख, संकट आदि हो क्यों न हो। हंसते हुए स्वीकार करें। भगवान कभी किसी का बुरा नहीं चाहते। भविष्य की चिता कर जीवन को नाहक ही मुश्किलों भरा न बनाएं
श्रीमद् भागवत कथा के दौरान स्वामी विवेकानंद ने कहा कि जीवन को हमेशा अच्छे व शांति से जीएं। कभी भूतकाल को पकड़ कर न बैठे रहें। हमेशा वर्तमान में जीएं। भविष्य की चिता कर जीवन को नाहक ही मुश्किलों से भरा न बनाएं। जो मनुष्य वर्तमान में जीता है उसके जैसा कोई मनुष्य नहीं। व्यक्ति कई बार भूतकाल में किसी के साथ हुई घटना को लेकर चिता में रहता है। अगर किसी ने गाली-गलौच कर दिया तो व्यर्थ ही चितित होता है और लड़ने-झगड़ने पर उतारू हो जाता है। मगर सोचने वाली बात है कि अगर किसी ने आपको गाली दी है तो वे गाली देने के लिए स्वतंत्र है। मगर आप भी तो गाली न लेने के लिए स्वतंत्र हैं। अहिसा पर चर्चा करते हुए स्वामी जी ने बताया कि यदि धीरज शांति भले-बुरे का ज्ञान की जानकारी चाहते हैं तो अंदर-बाहर से अहिसक बने। अहिसा निर्बल और डरपोक का नहीं वीरों का धर्म है। इस मौके बड़ी गिनती में श्रद्धालुओं ने पहुंचकर स्वामी दिव्यानंद गिरि जी महाराज एवं विवेकानंद जी महाराज से आशीर्वाद प्राप्त किया।