जैसी हमारी दृष्टि, वैसी ही हमारे लिए सृष्टि : प्रदीप रश्मि
जैन धर्म में सम्यक दृष्टि पर बहुत जोर दिया गया है।
संवाद सूत्र, मलोट (श्री मुक्तसर साहिब) : जैन धर्म में सम्यक दृष्टि पर बहुत जोर दिया गया है क्योंकि हमारी ²ष्टि सुधरने पर ही जीवन की सृष्टि सुधरती है। जब तक हमारी ²ष्टि सम्यक नहीं होती तब तक हम न तो सम्यक देख पाते हैं, न ही सम्यक बोल पाते हैं और न सम्यक ग्रहण कर पाते हैं। हमारी ²ष्टि ही हमारे जीवन का फैलाव होती है। यह विचार पंजाब सिंहनी प्रदीप रश्मि जी महाराज जी ने एसएस जैन सभा के प्रांगण में श्रद्धालुओं को प्रवचन देते हुए कहे। उन्होंने कहा कि जब तक हमारी ²ष्टि सम्यक नहीं होती तब तक जो कचरा है वह हमें बहुमूल्य नजर आता है और जो बहुमूल्य है वह आसार नजर आता है।
सम्यक ²ष्टि का मिलना मतलब हंस ²ष्टि को उपलब्ध होना है। जैसे हंस के सामने पानी मिश्रित दूध रख दिया जाए तो वह पानी व दूध को अलग कर देता है, वैसा ही सम्यक ²ष्टि का भी सामर्थ्य होता है कि वह अविभक्त जीव अजीव को भी विभक्त रूप में देख लेती है। असार को असार, सार को सार, सत्य को सत्य, असत्य को असत्य देखना सम्यक ²ष्टि के प्रभाव से ही संभव होता है।
सम्यक ²ष्टि तीसरी आंख है जिसके माध्यम से सत्य को जाना जाता है। राग के वशीभूत होकर हम गुण देखते हैं और द्वेष के वशीभूत होकर हम अवगुण देखते हैं। इस राग द्वेष के कारण ही हमारी ²ष्टि असम्यक हो जाती है इसलिए वीतराग की ²ष्टि सम्यक होती है। सम्यक ²ष्टि वाला ही धर्म अधर्म, गुरु, अगुरु, संसार मोक्ष, साधु और असाधु, सत्य-असत्य को पहचान पाता है। इस मौके पर एसएस जैन सभा के प्रधान प्रवीण जैन, कोषाध्यक्ष रमेश जैन, धर्मवीर जैन, विजय कुमार जैन, बिहारी लाल जैन, राजन जैन, लाली गगनेजा, विजय कुमार, सुनील गोयल व सुनील गर्ग मौजूद रहे।