ट्रैक्टर पर खड़े होकर प्रचार और रात को ट्राली में डेरा
धर्मशाला के आंगन में अलाव जल रही है। ग्रामीण बैठे हैं।
सुभाष चंद्र/रणजीत गिल, दोदा (श्री मुक्तसर साहिब)
धर्मशाला के आंगन में अलाव जल रही है। ग्रामीण उसके इर्द-गिर्द बैठे हैं। इतने में ही ट्रैक्टर की आवाज सुनाई देती है तो सभी खड़े हो जाते है। ट्रैक्टर आकर धर्मशाला में रुक जाता है। ट्रैक्टर से सफेद कुर्ता पायजामा, जैकेट व गले में हरे रंग का परना पहने एक नौजवान उतरता है और सबको सत श्री अकाल बुलाते हुए अलाव की एक साइड में लगे हुए बैंच पर बैठ जाता है और आग पर अपने हाथ पांव सेंकने लगता। यह कोई और नहीं गिद्दड़बाहा हलके से संयुक्त समाज मोर्चा की ओर से चुनाव लड़ रहा प्रत्याशी गुरप्रीत सिंह कोटली है। ग्रामीण उसके लिए खाना लेकर आते हैं। वह खाना खाते हुए लोगों से बातें करने लगता है।
लोगों के साथ करीब डेढ़ घंटा बातें करता है और इसके उपरांत अपनी ट्राली में सोने के लिए चला जाता है। ट्राली में नींद लेने के लिए अच्छे बिस्तर लगाए हुए हैं और ठंड से बचाव के लिए ऊपर से अच्छी तरह कवर किया हुआ है। सुबह करीब साढ़े छह बजे गुरप्रीत उठता है। फ्रेश होने के बाद वह ग्रामीणों की ओर से लाए गए परांठे छकते हैं और साढ़े आठ बजे तक अपना प्रचार शुरू करने के लिए तैयार हो जाते हैं। गुरप्रीत का यह सिलसिला पिछले पांच दिन से चल रहा है। जबसे घर से निकले हैं, तबसे वापस नहीं गए। पांच दिनों में अब तक करीब 30 गांवों का दौरा कर लिया है। ट्रैक्टर पर ही निकलते हैं और जहां पर रात हो जाती है, वहीं गांव की धर्मशाला में अपनी ट्राली में सो जाते हैं।
करीब 33 वर्षीय और एमएससी फिजिक्स गुरप्रीत कोटली अपने परिवार के बारे में बताते हुए चुनाव लड़ने का उद्देश्य बताते हैं कि रिवायती पार्टियों ने आज तक लोगों का कुछ नहीं संवारा है और न ही भविष्य में उनसे कोई उम्मीद है। उन्हें संयुक्त मोर्चा के डा. स्वैमान सिंह की ओर से कहने पर ही चुनाव मैदान में उतरे हैं। कहा जाता है कि पैसे के बिना चुनाव नहीं लड़ा जा सकता। लेकिन किसानों ने तो बिना पैसे के कृषि आंदोलन जीत लिया है। यह चुनाव तो कुछ भी नहीं है।
गुरप्रीत कोटली वादा करते हैं कि वह अपनी तमाम घोषणाओं को लीगल डाक्यूमेंट बनाएंगे और इस नामांकन पत्र दाखिल करते समय हलफिया बयान के रूप में जमा करवाएंगे।