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तीन साल पराली को जमीन में मिलाकर करते हैं खेती

खेतीबाड़ी विभाग की प्रेरणा से ब्लाक गिद्दड़बाहा के किसा पराली नहीं जलाता।

By JagranEdited By: Published: Sat, 07 Nov 2020 03:06 PM (IST)Updated: Sat, 07 Nov 2020 05:53 PM (IST)
तीन साल पराली को जमीन में मिलाकर करते हैं खेती
तीन साल पराली को जमीन में मिलाकर करते हैं खेती

संवाद सूत्र, गिद्दड़बाहा (श्री मुक्तसर साहिब)

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खेतीबाड़ी विभाग की प्रेरणा से ब्लाक गिद्दड़बाहा के गांव हुस्नर के किसान चेत सिंह पुत्र नंद सिंह दस एकड़ जमीन पर खेती करता है। चेत सिंह 9.5 एकड़ में धान तथा गेहूं की बुआई करता है तथा बाकी रकबे में पशुओं के लिए हरे चारे की कास्त की जाती है।

चेत सिंह खेतीबाड़ी और किसान भलाई विभाग के साथ पिछले 12 सालों से जुड़ा हुआ है। उसने पिछले तीन सालों से वातावरण को साफ सुथरा रखने लिए पराली विभिन्न तरीकों से प्रबंधन कर गेहूं की बुआई कर रहा है। पराली प्रबंधन के लिए पराली को मिट्टी में ही दबाकर चौपर चलाया जाता है। तीन साल से वह द्वारा पराली को संभालने लिए गांठे तैयार कर रहा है। उसने आजतक अपने खेतों में पराली को आग नहीं लगाई। जबसे उसने पराली को अपने खेतों में संभालना शुरू किया है यूरिया का प्रयोग प्रति एकड़ आधी रह गया है। गेहूं की फसल में नदीन की समस्या बहुत कम आती है और गेहूं की फसल में खाद का प्रयोग भी बहुत कम करना पड़ता है। यह किसान अन्य पराली को आग न लगाकर वातावरण को साफ सुथरा रखने में अपने अहम योगदान डालता है। किसान ने अन्य किसानों को पराली को आग न लगाने लिए प्रेरित किया। उसने बताया कि पराली को खाद बनाकर खेती करने से काफी फायदे हैं। इससे खेती की उर्वरा शक्ति भी बढ़ती है और कृषि लागत भी कम होती है। सबसे बड़ा फायदा यह है कि पराली न जलाने से पर्यावरण को काफी हद तक संभाला जा करता है।


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