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दूल्हे का लिबास पहन मौत से रचाई शादी, परिवार की ली जान

गाव नत्थूवाला गरबी में शनिवार सुबह तड़के गाव की हाइप्रोफाइल फैमिली में एक साथ छह लोगों की लाशें देख हर किसी का दिल दहल गया। घर का दृश्य देख इस बात ने सबके दिलों को झकझोर कर रख दिया कि संदीप सिंह शादी करने का इच्छुक नहीं था लेकिन परिवार के पाच सदस्यों को मारने से पहले उसने खुद दूल्हे का लिबास पहना और फिर मौत को महबूबा बना लिया।

By JagranEdited By: Published: Sat, 03 Aug 2019 10:28 PM (IST)Updated: Sat, 03 Aug 2019 10:28 PM (IST)
दूल्हे का लिबास पहन मौत से रचाई शादी, परिवार की ली जान

सत्येन ओझा/डॉ.दिनेश गुप्ता : गाव नत्थूवाला गरबी में शनिवार सुबह तड़के गाव की हाइप्रोफाइल फैमिली में एक साथ छह लोगों की लाशें देख हर किसी का दिल दहल गया। घर का दृश्य देख इस बात ने सबके दिलों को झकझोर कर रख दिया कि संदीप सिंह शादी करने का इच्छुक नहीं था, लेकिन परिवार के पाच सदस्यों को मारने से पहले उसने खुद दूल्हे का लिबास पहना और फिर मौत को महबूबा बना लिया।

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संदीप का परिवार आर्थिक रूप से काफी मजबूत था। 25 एकड़ जमीन के साथ गाव में आलीशान कोठी का मालिक था। परिवार हर साल आधी जमीन खेती के लिए ठेके पर देता था, आधी खुद करता था। संदीप शरीर से स्वस्थ था, लेकिन मानसिक रूप से वह इतना कमजोर हो सकता है, गाव में किसी को इसका अंदेशा नहीं था। हा गाव के लोग पिछले कुछ समय से ये बात जरूर महसूस कर रहे थे कि संदीप कटा-कटा रहता था, वह अपने आम में ही खोया रहता था, लेकिन उसके मन में खौफनाक साजिश चल रही है, इसका अंदेशा अभी भी लोगों को नहीं हो रहा है। एक ग्रामीण ने बताया कि संदीप शादी कराने का इच्छुक नहीं था, इसलिए ऐसा लगता था कि उसी वजह से वह गुमसुम रहता है।

ग्रामीणों ने बताया कि संदीप सिंह की शादी 12 सितंबर को होने वाली थी। जिस परिवार में शादी होने वाली थी, वहा रविवार को संधारा (सावन के महीने में होने वाली बहू को दिए जाने वाला शगन का सामान) लेकर जाना था। संधारा लेकर बहन को ले जाने की परंपरा है। इसी परंपरा के लिए वह फिरोजपुर के गाव शहजादी से एक दिन पहले ही अपनी बहन अमनजोत कौर व तीन साल की मासूम भाजी को लेकर आया था। कल तक परिवार में हंसी-खुशी का माहौल था, लेकिन संदीप के मन में तो कुछ और ही चल रहा था। क्रिटिकल मनोरोगी था संदीप

नत्थूवाला गरबी में 25 साल के युवक ने जिस प्रहार से परिवार के पाच सदस्यों की हत्या कर खुद मौत को गले लगाया, मनोविज्ञानी इसे क्रिटिकल मानसिक रोग की स्थिति बता रहे हैं। सिविल अस्पताल के साइकेटिस्ट डिपार्टमेंट के हेड डॉ.राजेश मित्तल ने बताया कि संदीप ने जो किया है वह साधारण बात नहीं है। उन्होंने बताया कि जिस प्रकार की बातें सामने आई हैं, उससे यही लगता है कि श्राप की बात उसके मन में इस कदर गहराई से पैठ कर गई थी कि उसी ने उसे इस अंजाम तक पहुंचा दिया। उसे ये लगने लगा था कि श्राप के कारण उसका वंश आगे नहीं बढ़ा तो वह नामर्द कहलाया जा सकता है, जिससे उसकी ही नहीं उसके पूरे परिवार का अपमान होगा, बस उसकी इसी सोच ने बड़े हत्याकाड के रूप में बदल डाला। डॉ.मित्तल बताते हैं कि इस प्रकार के लोग समाज से कटने लगते हैं, लोगों से दूर-दूर अपने आप में खोये रहते हैं, ऐसी स्थिति होने पर परिवार के लोगों को तत्काल चिकित्सकों की राय लेनी चाहिए, ये स्थिति किसी भी व्यक्ति में तभी आती है जब उसकी मानसिक स्थिति में कोई बदलाव आ रहा होता है।

राजदीप मैंनूं माफ करीं.

संदीप ने अपने सुसाइड नोट में अपने होने वाली पत्‍‌नी राजदीप कौर से माफी भी मागी है। पंजाबी भाषा में लाल स्याही से लिखे पत्र में संदीप ने लिखा है-राजदीप मैंनू माफ करी.मैं तेरा सबतों बडा गुनहगार हा, पर मैं मजबूर हा, तेरी जिंदगी, खराब नहीं कर सकता सी।

----- मातम में बदली शादी की खुशियां, गांव में शोक का माहौल

दविंदर पाल सिंह, मोगा : गाव के बड़े जमींदार मनजीत सिंह की कोठी में एक दिन पहले तक खुशी का माहौल था, परिवार के इकलौटे बेटे की शादी की तैयारिया जोर-शोर से चल रही थीं। बहन को संधारा में ले जाने के लिए अपनी होने वाली भाभी के लिए कपड़े पसंद करने भी जाना था, लेकिन मन में बैठ चुके श्राप के भय के चलते संदीप ने वो पल ही नहीं आने दिया, जब एक नए रिश्ते की रस्मों में खुशिया भरी जान थीं। जमींदार मनजीत सिंह के परिवार में घर के बाहर जुटीं महिलाएं बता रही थीं कि शुक्त्रवार देर शाम तक संदीप की बहन अमनजोत काफी खुश थी, उसने गाव की अपनी सहेलियों व अन्य महिलाओं से चर्चा भी की थी वह अपनी भाभी के लिए किस प्रकार के कपड़े पसंद करेगी, लेकिन किसी ने सोचा भी नहीं था कि परिवार में कोई नया रिश्ता जन्म लेने से पहले ही सभी रिश्तों का कत्ल हो जाएगा। संदीप की एक बहन विदेश में रहती है, शायद उसकी जिंदगी इसीलिए बच गई कि वह यहा नहीं थी। इस दर्दनाक हादसे ने पूरे गाव को ही झकझोर कर दिया। भले ही कोई खुलकर कुछ बोलने को तैयार नहीं था, लेकिन मनजीत सिंह के परिवार का दर्द गाव के हर व्यक्ति के चेहरे पर साफ तौर पर लिखा था।

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