तन, मन एवं धन का समन्वय ही यज्ञ है : दिवाकर भारती
आर्य समाज मोगा के वैदिक प्रवक्ता पंडित दिवाकर भारती आर्य ने वेद मंत्र की व्याख्या करते हुए कहा कि तनमन एवं उपार्जित धन का एकीकरण करते हुए समस्तजनों एवं प्राणियों की आवश्यकता की पूर्ति करना ही यज्ञ है।
संवाद सहयोगी, मोगा : आर्य समाज मोगा के वैदिक प्रवक्ता पंडित दिवाकर भारती आर्य ने वेद मंत्र की व्याख्या करते हुए कहा कि तन,मन एवं उपार्जित धन का एकीकरण करते हुए समस्तजनों एवं प्राणियों की आवश्यकता की पूर्ति करना ही यज्ञ है। भगवान की अन्य असंख्य अभाव ग्रस्त संतानों को अन्न, वस्त्र, गो, विद्या, औषधि एवं सत्परामर्श आदि का दान कर सदा भरण-पोषण करते रहना चाहिए। वास्तव में उन्हीं का तन, मन एवं धन सफल होता है। परोपकार की भावना भी उस मनुष्य में स्वाभाविक ही होती है, जो सब जीवों को अपने जैसा (आत्मवत) समझता है। उसे दूसरे के अभाव देखकर अपना स्मरण हो आता है और वह दूसरों के अभाव, दुख दूर करने के लिए अत्यंत व्याकुल हो जाता है। दूसरों का अभाव दूर करके उसकी व्याकुलता (बेचैनी)दूर हो जाती है। उन्होंने कहा कि शास्त्रों में परोपकार का फल अन्त:करण की शुद्धि लिखा है। इसलिए अंत:करण की शुद्धि के लिए परोपकार सदा करते रहना चाहिए।इसी को ²ष्टि में रखते हुए वर्तमान में महामारी के भयावह काल में आर्य समाज मोगा ने •ारूरतमंद लोगों में अपने सामर्थ्य अनुसार राशन वितरित किया।