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माता-पिता से मिले संस्कारों का नतीजा है सोनू का व्यवहार : मालविका

मोगा कोरोना संक्रमण काल में मुंबई में रील के बाहर भी रीयल लाइफ के हीरो बनकर उभरे शहर के बॉलीवुड स्टार सोनू सूद को सम्मान देने के लिए द लर्निंग फील्ड ए ग्लोबल स्कूल ने उनकी छोटी बहन मालविका सूद सच्चर को स्कूल में बुलाकर उनके साथ संवाद किया। मोगा की गलियों से निकलकर मुंबई तक के सफर पर विस्तार से चर्चा की।

By JagranEdited By: Published: Fri, 05 Jun 2020 11:57 PM (IST)Updated: Sat, 06 Jun 2020 06:16 AM (IST)
माता-पिता से मिले संस्कारों का नतीजा है सोनू का व्यवहार : मालविका

संवाद सहयोगी, मोगा

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कोरोना संक्रमण काल में मुंबई में रील के बाहर भी रीयल लाइफ के हीरो बनकर उभरे शहर के बॉलीवुड स्टार सोनू सूद को सम्मान देने के लिए द लर्निंग फील्ड ए ग्लोबल स्कूल ने उनकी छोटी बहन मालविका सूद सच्चर को स्कूल में बुलाकर उनके साथ संवाद किया। मोगा की गलियों से निकलकर मुंबई तक के सफर पर विस्तार से चर्चा की।

इस संवाद में यह जानने का प्रयास किया गया कि आखिर परिवार से माता-पिता से उन्हें ऐसे कौन से संस्कार मिले, जिनके चलते सोनू को न तो मुंबई की चकाचौंध भ्रमित कर पाई और न ही अभिनय की ऊंचाइयां छूने के बावजूद जमीन पर ही बने रहने का सलीका उनसे छीन सकी। स्कूल पहुंचने पर चेयरमैन इंजीनियर जनेश गर्ग, प्रिसिपल सुनीता बाबू, एकेडमिक डीन परमिदर तूर ने सोनू सूद की छोटी बहन मालविका सूद सच्चर का स्कूल कैंपस में जोशीला स्वागत किया। हालांकि संक्रमण काल को देखते हुए प्रशासन की हिदायतों का भी पालन किया।

इस मौके पर प्रिसिपल सुनीता बाबू व एकेडमिक डीन परमिदर तूर के साथ सोनू के जीवन से संबंधित तमाम पहलुओं पर चर्चा करते हुए मालविका सूद ने बताया कि डीएम कॉलेज में अंग्रेजी विभाग की विभागाध्यक्ष रह चुकीं मां प्रो. सरोज सूद गरीबी के कारण स्कूल छोड़ चुके बच्चों को घर से बुलाती थीं। उनकी फीस भी जमा कराती थीं, उन्हें पढ़ाती भी थीं। वह जानती थीं कि किसी भी समाज का भला शिक्षा से ही हो सकता है। यही गुण पिता शक्ति सागर सूद का था। कोई भी व्यक्ति उनके संपर्क में आता था और उसे किसी भी प्रकार की मदद की जरूरत है, तो वे उसके कहने से पहले उसकी मदद करते थे। सोनू भी इन्हीं संस्कारों में पले बड़े हुए हैं।

हॉलीवुड इंग्लिश एकेडमी संचालित कर रहीं व मोटीवेटर मालविका सूद ने बताया कि इन्हीं संस्कारों को लेकर सोनू मोगा से मुंबई पहुंचे थे। हालांकि परिवार की आर्थिक स्थिति बुरी नहीं थी, लेकिन सोनू ने पिता के दिए एक-एक पैसे का सम्मान किया और मुंबई जाकर उन पैसों को होटल में रहने या एसी बसों या ट्रैन में सफर करने में खर्च नहीं किया। सोनू ने मुंबई में संघर्ष कर रहे लाखों कलाकारों की तरह लोकल ट्रेन में सफर किया। भीड़ के धक्के खाए। माया नगरी के असली जीवन को जिया, ताकि ये अहसास हो सके कि पैसे कमाने की क्या कीमत होती है। उसी संघर्ष को करते हुए सोनू अभिनय की बुलंदियों पर पहुंचे हैं।

स्वाभाविक रूप से जब टीवी पर पूरा देश देख रहा था कि किस प्रकार से मजदूर हजारों मील दूर पैदल जा रहे हैं और रास्ते में हादसों का शिकार हो रहे हैं, तो ये सब देख सोनू के अंदर वही संघर्ष के दिनों की इंसानियत जाग उठी। माता-पिता के संस्कार सोनू को रात में सोने नहीं देते थे। वे उसे प्रेरित करते थे कि मानवता की पुकार है, सोनू कुछ करो। आज जो कुछ सोनू कर रहे हैं, इसी का नतीजा है।


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