निगम चुनाव : पहली बार सियासी पिच पर नहीं दिखेगा जोगिंदर पाल जैन का करिश्मा
।पिछले 25 साल से राजनीति की हर दिशा अपने इशारों पर मोड़ने वाले पूर्व विधायक जोगिदर पाल जैन पहली बार नगर निगम चुनाव में स्वास्थ्य कारणों से शहर की राजनीति से दूर रहेंगे।
सत्येन ओझा.मोगा
पिछले 25 साल से राजनीति की हर दिशा अपने इशारों पर मोड़ने वाले पूर्व विधायक जोगिदर पाल जैन पहली बार नगर निगम चुनाव में स्वास्थ्य कारणों से शहर की राजनीति से दूर रहेंगे।
हालांकि जैन ने साल 2017 के विधानसभा चुनाव भी स्वास्थ्य कारणों से न लड़ने का फैसला लिया था। लेकिन उस समय भले ही वे चुनाव से दूर रहे, लेकिन पर्दे के पीछे से उन्होंने जो सियासी गोटियां फिट की थीं, उसमें उनके विरोधी चित हो गए थे। तब उन पर कांग्रेस विधायक डा.हरजोत कमल के लिए काम करने के आरोप लगे थे।
जोगिदर पाल जैन पहली बार साल 2007 में कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़कर शिअद के पूर्व मंत्री जत्थेदार तोता सिंह को पराजित कर विधानसभा में पहुंचे थे। विधायक बनने से पहले जैन नगर कौंसिल के अध्यक्ष थे। खुद विधायक बन जाने के बाद तमाम विरोधों के बावजूद उन्होंने अपनी पत्नी स्वर्णलता जैन को नगर कौंसिल का अध्यक्ष बनवा दिया था।
जोगिदर पाल जैन सियासी पिच पर जिस प्रकार के दांव-पेच चलते थे, उनके विरोधी चित हो जाते थे। यही वजह थी कि साल 2012 के चुनाव में जोगिदर पाल जैन ने फिर से जब चुनाव मैदान में ताल ठोकी तो जत्थेदार तोता सिंह ने अपनी चुनावी पिच ही बदल दी। वे धर्मकोट चले गए। 2012 में जैन ने लगातार दूसरी बार शिअद प्रत्याशी पूर्व डीजीपी पीएस गिल को हराया और विधानसभा में पहुंचे। सत्ता अकाली दल के हाथ में आई। पहले ही पांच साल सत्ता से दूर रहे जैन इस बार सत्ता से दूरी बनाकर नहीं रखना चाहते थे। दिसंबर 2012 में उन्होंने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिया और अकाली दल में शामिल हो गए। 23 फरवरी 2013 के उपचुनाव में जैन ने कांग्रेस प्रत्याशी विजय कुमार साथी को हराकर तीसरी बार विधानसभा में प्रवेश किया।
साल 2014 के नगर निगम चुनावों में उन्होंने एक बार फिर अपने सभी राजनीतिक दुश्मनों को पटकनी देते हुए अपनी बेटे अक्षित जैन को मेयर बनवाने में अहम भूमिका निभाई। जत्थेदार तोता सिंह गुट ने जैन का हर स्तर पर विरोध किया लेकिन उनकी दाल नहीं गली।
जैन के लिए दल मायने नहीं रखता था, वह जिस पार्टी में भी रहे, राजनीति की दिशा अपने हिसाब से सेट करते थे और जीतते थे। नगर कौंसिल प्रधान बनने से पहले वह भाजपा की तरफ से तीन बार इंप्रूवमेंट ट्रस्ट के अध्यक्ष रहे।
पर्दे के पीछे चुनावी गोटियां फिट करते रहे
साल 2017 में जैन ने गिरते स्वास्थ्य के चलते 2017 का चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया था। भले ही जैन 2017 के चुनाव से अलग हो गए थे, लेकिन पर्दे के पीछे से वे चुनावी गोटियां फिट करते रहे। उस समय के चुनाव में जैन पर आरोप लगे कि उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी डा.हरजोत कमल के लिए काम किया। इसी कारण अकाली प्रत्याशी बरजिदर सिंह बराड़ विधानसभा में नहीं पहुंच सके। कांग्रेस के डा.हरजोत कमल तक पहली बार विधायक बने। ये पहला मौका है स्वास्थ्य ज्यादा खराब होने के कारण जैन न तो सक्रिय राजनीति में दिखेंगे न ही पर्दे के पीछे बहुत ज्यादा गोटियां फिट कर पाएंगे, लेकिन 25 साल में जैन शहर की राजनीति का ऐसा इतिहास बना गए, जो हर राजनेता के बस की बात नहीं।