भाकियू कादियां ने केंद्र सरकार के खिलाफ जताया रोष
मोगा भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) कादियां जिला मोगा द्वारा जिलाध्यक्ष निर्मल सिंह मानूके व जिला महासचिव गुलजार सिंह घलकलां के नेतृत्व में मोगा में केंद्र व पंजाब सरकार के खिलाफ रोष प्रकट करते हुए नारेबाजी की गई।
संवाद सहयोगी, मोगा
भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) कादियां जिला मोगा द्वारा जिलाध्यक्ष निर्मल सिंह मानूके व जिला महासचिव गुलजार सिंह घलकलां के नेतृत्व में मोगा में केंद्र व पंजाब सरकार के खिलाफ रोष प्रकट करते हुए नारेबाजी की गई। इस मौके पर किसान नेताओं ने कहा कि किसानों के लिए केंद्र सरकार द्वारा लाया गया अध्यादेश खेती के खिलाफ सहित लोक विरोधी है।
उन्होंने कहा कि जरूरी वस्तुएं संशोधन अध्यादेश, कांट्रैक्ट खेती अध्यादेश तथा किसान खेती व्यापार के बारे में अध्यादेश जारी करने के बाद इसके पक्ष में सरकार के नुमाइंदे केंद्र का बचाव करने में लगे हैं। जबकि उक्त कानून बनने से किसानी पर बड़ा हमला हुआ है।
उन्होंने बताया कि इन अध्यादेशों के बिना 2003 के बिजली कानून एक्ट में संशोधन करने के लिए बिल आने वाले मानसून सत्र में लंबित पड़ा है। इसके लागू होने से राज्यों में बिजली प्रबंधन में केंद्र सरकार की दखलअंदाजी बढ़ जाएगी। बिजली रेगुलेटरी की नियुक्ति का अधिकार भी राज्यों से छीन जाएगा। स्टेट अपने तौर पर ट्यूबवेल व पिछड़े वर्गो को सब्सिडी नहीं दे सकेगा।
वित्त सचिव सुखजिदर सिंह ने कहा कि मोदी सरकार की ओर से पहली सरकार बनने के समय चुनाव घोषणा पत्र में किसानों के सारे कर्जे माफ करने का वादा किया था। जिसका अब तक कहीं भी जिक्र नहीं किया गया। जबकि किसान कर्जा माफी का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं।
मंदरजीत सिंह मनावां व जसवीर सिंह मंदर ने कहा कि केंद्र सरकार ने किसानी को राहत देने की बजाय पेट्रोल व डीजल के रेट बढ़ाकर नया बोझ डाल दिया है, जिसे जनता उठाने योग्य नहीं है। इस कारण लोगों का गुस्सा कभी भी किसी रूप में सामने आ सकता है।
किसान नेताओं ने कहा कि देश में अनाज की कमी खत्म करने में मौजूदा मंडी सिस्टम की सीमा, एफसीआइ द्वारा निश्चित खरीद तथा खेती फसलों के समर्थन मूल्य के यकीन ने बड़ा योगदान डाला है। देश में अनाज की बहुतायत होने पर और फसलें बीजने का सुझाव दिया गया। जिसके तहत आज कल 23 फसलों के मूल्य घोषित किए जाते हैं। मगर गेहूं, धान के अलावा और फसलों का खरीद प्रबंध न होने कारण किसानों को इन फसलों का सरकार द्वारा घोषित निर्धारित समर्थन मूल्य नहीं मिलता है। यह कारण है कि इन फसलों की खरीद एफसीआइ की ओर से नहीं की जाती है। इन फसलों को व्यापारी हमेशा ही समर्थन मूल्य से कम मूल्य पर ही खरीदते है। जिन राज्यों में एफसीआइ की खरीद नहीं की जाती, वहां इन फसलों के भाव किसानों को 300 से 400 रुपये प्रति क्विंटल कम मिलते हैं।
इस कारण खेती फसलों के समर्थन मूल्य हासिल करने के लिए दो शर्तो का होना जरूरी है। पहली शर्त है कि घोषित भाव पर सरकारी एजेंसियां फसल की खरीद को यकीनी बनाए तथा किसानों को बनती राशि की अदायगी समय पर की जाए। दूसरी शर्त समय पर अदायगी करने के लिए सरकारी मंडी सिस्टम बरकरार रहे।