बॉलीवुड स्टार सोनू सूद बोले- मैं मसीहा नहीं, ये मां से मिले संस्कार हैं, जिन्होंने जमीन से जोड़े रखा
Bollywood star Sonu Sood बॉलीवुड स्टार सोनू सूद को संकट में फंसे लाेगों की मदद करने के लिए पूरे देश में सराहना मिल रही है। उन्हें मसीहा कहा जा रहा है। दूसरी ओर साेनू का कहते हैं मैं मसीहा नहीं ये मां से मिले संस्कार हैं।
मोगा, [सत्येन ओझा]। फिल्म अभिनेता सोनू सूद ने कोरोना काल में जिस तरह मानवता की सेवा की, लोग उन्हें मसीहा कहने लगे। कई जगह उनकी मूर्तियां भी स्थापित की गई, लेकिन सोनू सूद कहते हैं, वह मसीहा नहीं हैं। उन्होंने अपनी आत्मकथा 'मैं मसीहा नहीं.. में लिखते हैं, 'मैं साधारण आदमी हूं, मसीहा नहीं। ये मां से मिले संस्कार हैं, जिन्होंने पीडि़तों की सेवा के लिए प्रेरित किया और बुलंदी पर भी जमीन से जोड़े रखा।' सोनू की पुस्तक को टीवी शो 'कौन बनेगा करोड़पति' के सेट पर महानायक अमिताभ बच्चन ने रिलीज किया।
अभिनेता सोनू सूद ने जागरण के साथ साझा किए अपनी आत्मकथा 'मैं मसीहा नहीं..' के महत्वपूर्ण अंश
सोनू ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि ' कोरोना काल में मैंने जो कुछ भी किया वह अपनी मां प्रो. सरोज सूद से मिले संस्कारों के कारण हो सका। अंग्रेजी भाषा में लिखी पुस्तक में सोनू सूद ने अपने बचपन की कई बातों का जिक्र किया है।'
बता दें कि दो दिन पहले ही कांग्रेस विधायक डा. हरजोत कमल की पहल पर मोगा की मेन बाजार से लेकर अकालसर रोड को जोड़ने वाली सड़क को सोनू सूद की मां प्रो. सरोज सूद रोड का नाम दिया गया, तो सोनू भावुक हो गए। उन्होंने इसे सबसे बड़ी उपलब्धि बताया। सोनू ने इसकी तस्वीर ट्वीट की और लिखा, 'यह उनके जीवन की अब तक की सबसे बड़ी उपलब्धि है। मेरी मां के नाम पर एक रोड समर्पित किया गया है।'
सोनू ने बताया कि शुरुआती दिनों में जब वह मोगा में पढ़ाई कर रहे थे, तब मां को कई ऐसे बच्चों को घर पर पढ़ाते देखा था जो फीस जमा न कर पाने के कारण पढ़ाई छोड़ बैठे थे। मां उनकी फीस भरती थीं, खुद पढ़ाती थीं, क्योंकि वे मानती थीं कि शिक्षा से ही किसी का जीवन बदल सकता है। वे किसी को तकलीफ में नहीं देख सकती थीं, तत्काल मदद के लिए आगे आती थीं।
प्रेरित करने के लिए कविताएं लिखकर भेजती थीं मां
सोनू सूद ने पुस्तक में उन पलों का जिक्र किया है जब वह माया नगरी में काम की तलाश में आए थे। इंजीनियरिंग करने के बाद अकेले बेटे होने के नाते रिश्तेदार मां प्रो. सरोज सूद को कहते थे कि यह कौन सा हीरो बन जाएगा, इंजीनियरिंग कर ली है, घर बुला लो, कोई अच्छी नौकरी मिल जाएगी। लेकिन, मां प्रो. सरोज सूद तब सोनू को अंग्रेजी में प्रेरक कविताएं लिखकर भेजती थीं और उन्हें प्रोत्साहित करती थीं कि सोनू तू खुदा का बंदा है, जिस मकसद से गया है, जरूर पूरा होगा।
सोनू बताते हैं कि मां की इसी प्रेरणा ने उन्हें बुलंदियों को छूने का जज्बा ही नहीं दिया, बल्कि जमीन से जुड़े रहने का आधार भी दिया। यही वजह थी कि पहली बार पिता शक्ति सागर सूद जब मुंबई जाने के लिए लुधियाना तक छोड़ने आए थे, तब उतने ही पैसे दिए थे जितने से गुजारा हो सकता है। मुंबई में शुरुआती दिन उन्होंने लोकल ट्रेन में सफर करते हुए संघर्ष किया।
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