चार दशक के बाद बेटी की किलकारी सुनी तो बैंड बाजों से घर लेकर आए
चार दशक के बाद गांव डाला के एक परिवार ने जब बेटी की किलकारी सुनी तो परिवार के सभी लोग बैंड बाजों के साथ उसे घर लेकर आए।
सत्येन ओझा, मोगा : चार दशक के बाद गांव डाला के एक परिवार ने जब बेटी की किलकारी सुनी तो परिवार के सभी लोग बैंड बाजों के साथ उसे घर लेकर आए। गांव में ये माहौल देखकर धीरे-धीरे लोग भी बड़ी संख्या में बेटी के जन्म के उत्सव में शामिल हो गए। इस खास उत्सव की सिर्फ गांव डाला में ही नहीं, बल्कि आसपास के गांवों में भी खास चर्चा है। खासकर भ्रूण में ही बेटियों की हत्या करने वालों के लिए यह सराहनीय कदम उदाहरण बन गया है। दरअसल, एक इंश्योरेंस कंपनी में जॉब करने वाले गुरप्रीत सिंह के घर में 22 अगस्त को पहली संतान के रूप में बेटी ने जन्म लिया। जन्म अस्पताल में हुआ, लेकिन पहली संतान बेटी के रूप में लक्ष्मी आने की बात सुन पूरे परिवार में खुशी का माहौल व्याप्त हो गया। परिवार ही नहीं, बल्कि रिश्तेदार भी एक दूसरे को बधाई देते नजर आए। फिर क्या था एक निजी कंपनी में चालक के रूप में काम करने वाले नवजन्मी बेटी के दादा बसंत सिंह सफरी ने अपनी पौत्री के लिए विशेष योजना तैयार कर ली। 27 अगस्त को सरकारी अस्पताल से नवजन्मी बेटी को मां संदीप कौर के साथ बैंड बाजों की मधुर ध्वनि के साथ घर ले जाया गया। गांव में जिसने भी ये दृश्य देखा वह इस विशेष उत्सव में शामिल होते गए। घर तक पहुंचते-पहुंचते बेटी की इस खुशी में गांव के सैकड़ों लोग शामिल हो गए। सूचना मिलने पर खुद गांव की सरपंच कुलदीप कौर भी बधाई देने जा पहुंची। गांव के डेरा सैदोआना के प्रमुख संत बाबा दर्शन सिंह ने भी बधाई संदेश बसंत सिह सफरी के घर भिजवाया। पूरे घर में पिछले तीन दिन से उत्सव का माहौल बना हुआ है। नवजन्मी बेटी के दादा बसंत सिंह सफरी बताते हैं कि उनके दो बेटे थे, कोई बेटी नहीं थी। उनके एक भाई को भी संतान के रूप में कोई बेटी नहीं मिली। जब उनके अपने घर में लगभग चालीस साल के बाद बेटी की किलकारी गूंजी तो हर किसी का चेहरा खिल गया। सभी ने बेटी के जन्म को बड़े उत्सव के रूप में मनाने का फैसला लिया।