मरम्मत के नाम पर उजाड़ दिए दर्जनों के घर
पिछले पांच सालों में शहरवासियों को जख्म देती खस्ताहाल सड़कें व बिल्डिग ब्रांच में मकान के नक्शे के नाम पर भ्रष्टाचार का बोलबाला रहा
सत्येन ओझा, मोगा
पिछले पांच सालों में शहरवासियों को जख्म देती खस्ताहाल सड़कें व बिल्डिग ब्रांच में मकान के नक्शे के नाम पर भ्रष्टाचार का बोलबाला रहा, लेकिन पूरे पांच साल में 50 सदस्यों वाला नगर निगम बोर्ड के सिर्फ एक पार्षद में और एक समाजसेवी के रूप में सिर्फ दो चेहरे ही सामने आए थे, जिन्होंने इन समस्याओं को लेकर आवाज बुलंद की थी। एक गुरप्रीत सिंह सचदेवा ने दुकानदारों के साथ मिलकर बूट पालिश कर निगम की पोल खोली थी। दूसरे गौ सेवक दिलीप सिंह उर्फ सोनू अरोड़ा ने निगम के गेट पर ढोल बजाया था। इनमें से गुरप्रीत सिंह सचदेवा अब आजाद प्रत्याशी हैं जबकि दूसरे दिलीप सिंह उर्फ सोनू अरोड़ा वार्ड-20 से भाजपा के प्रत्याशी हैं, बाकी 49 पार्षदों में से किसी ने न सदन में न सड़क पर आकर जनता की आवाज को बुलंद किया।
हैरानी की बात है कि निगम चुनावों को लेकर सभी पार्टियों के प्रत्याशी वोटरों के बीच जाकर फिर से सपने दिखा रहे हैं। इनमें से तमाम वो चेहरे हैं तो उससे पहले नगर निगम का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं, लेकिन तब उन्होंने कभी जनता की समस्या को समझा ही नहीं, यहां तक कि केन्द्र सरकार की जरूरतमंदों को घर की मदद के लिए डेढ़-डेढ़ लाख रुपये की राशि देने के नाम पर कई लोगों के घर भले ही खस्ताहाल थे, लेकिन गुजर बसर के लायक थे, उन्हें ये कहकर ध्वस्त करा दिया कि पहले वे दोबारा नींव भरकर फोटो भेजें फिर पहली किश्त मिलेगी, बाद में लेंटर डलने पर दूसरी किश्त।
पैसे भी ले लिए किस्त भी नहीं दी
पुराना घल्लकलां रोड पर पिछले ढाई साल पहले योजना में आवेदन करने वाली सीता देवी दो साल तक निगम के चक्कर लगवाते रहे। बाद में उनका कच्चा घर तुड़वा दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि रिश्वत भी ले ली, फिर भी पहली किश्त भी नहीं मिली। ये एक मामला नहीं है, ऐसे सौ से ज्यादा लोग हैं जिनके घर की मरम्मत के नाम पर पहले से बने मकान ही तुड़वा दिए, मिला कुछ नहीं।
नक्शे के लिए 150 से अधिक लोग छह साल से लगा रहे चक्कर
बिल्डिग ब्रांच आनलाइन हो गई है, आवेदन करने वाले का नक्शा एक महीने में बनाकर देने का प्रावधान है, लेकिन 150 से ज्यादा लोग छह से लेकर एक साल तक से चक्कर लगा रहे हैं, लेकिन पार्षदों ने इसके खिलाफ आवाद बुलंद करने के बजाय कुछ ने तो 'सेटिग' का खेल शुरू कर दिया था, जिनसे सैटिग हो जाती थी, उनके नक्शे बन जाते थे। सेटिग कराने वाले फिर चुनाव मैदान में हैं। जनता से फिर लुभावने वादे कर रहे हैं, लेकिन वोटरों को अब उन पर विश्वास करना मुश्किल हो रहा है।