Move to Jagran APP

रेल के पहिये थमने से खो गए जिदगी के हसीन पल

मोगा जिले में छोटी-छोटी मंडियां हैं। सामान्य दिनों में यहां से हर रोज बड़ी संख्या में व्यापारी रेल के माध्यम से लुधियाना या दिल्ली जाते थे और वहां से मनियारी इलेक्ट्रॉनिक्स आदि का सामान लेकर लौटते थे। व्यापार के इस सफर में कुछ पल जिदगी का आनंद देते थे। हर रोज के सफर के चलते कई दोस्त बन गए थे और उन्हीं के साथ ट्रेन का सफर ताश के पत्ते खेलते हुए या फिर क्षेत्र से लेकर राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर की राजनीति पर चर्चा में बीतता था। कोविड-19 के कारण ट्रेन का पहिया क्या थमा। इन यात्रियों की जिदगी की गाड़ी ही थम गई है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 18 Sep 2020 10:41 PM (IST)Updated: Fri, 18 Sep 2020 10:41 PM (IST)
रेल के पहिये थमने से खो गए जिदगी के हसीन पल
रेल के पहिये थमने से खो गए जिदगी के हसीन पल

तरलोक नरूला, मोगा

loksabha election banner

जिले में छोटी-छोटी मंडियां हैं। सामान्य दिनों में यहां से हर रोज बड़ी संख्या में व्यापारी रेल के माध्यम से लुधियाना या दिल्ली जाते थे और वहां से मनियारी, इलेक्ट्रॉनिक्स आदि का सामान लेकर लौटते थे। व्यापार के इस सफर में कुछ पल जिदगी का आनंद देते थे। हर रोज के सफर के चलते कई दोस्त बन गए थे और उन्हीं के साथ ट्रेन का सफर ताश के पत्ते खेलते हुए या फिर क्षेत्र से लेकर राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर की राजनीति पर चर्चा में बीतता था। कोविड-19 के कारण ट्रेन का पहिया क्या थमा। इन यात्रियों की जिदगी की गाड़ी ही थम गई है। सफर में जो कुछ पल दोस्तों के साथ गुजारने को मिलते थे और अगले दिन फिर से नई ऊर्जा के साथ जीने का मकसद दे जाते थे, अब वो पल दैनिक रेल यात्री रेल न चलने के कारण बहुत याद करते हैं। ऐसे में आजकल जब वे रेलवे स्टेशन के पास से गुजरते हैं तो रेल सफर की पुरानी यादें ताजा हो जाती हैं।

------------

ताश खेलने का उठाते थे लुत्फ

सुरेश गांधी का कहना है कि वह अपने व्यापार के कारण रोजाना लुधियाना रेल में जाते थे। इसके लिए वह सुबह पांच बजे उठकर नाश्ता कर अपनी रोटी पैक कर लेते थे। रेल में बैठते ही दूसरे यात्रियों के साथ ताश खेलते थे। वही दूसरे स्टेशनों से अपने साथियों के साथ संपर्क बनाए रखते थे। ऐसा ही सायं वापसी पर भी चलता था। मगर, कोरोना काल के चलते ट्रेन यात्रा अब स्वप्न बनकर रह गई है। जबसे बस सेवा बहाल हुई है, तबसे वह बस से जाते हैं। मगर, उसमें ट्रेन जैसी मौज नहीं मिलती।

--------------

रेल व काम दोनों ठप

नरेश बांसल ( लक्की) का कहना है कि वह लगभग 20 वर्षो से ट्रेन के माध्यम से रोजाना लुधियाना जाते थे। जिसके तहत वहां से मनियारी के सामान का ऑर्डर लेकर उसे सायं को सप्लाई करते थे। यह उनकी रोटी का जुगाड़ बना हुआ था। रेल का किराया बस से बहुत कम था। इसलिए रेल का पास भी बनवाया हुआ था। उनके जीवन में पहली बार हुआ है कि मार्च से कोविड के कारण रेल यात्रा बंद हुई है और काम भी ठप है। अब वह बस के द्वारा सामान लेने जाते हैं। मगर, उन्हें रेल यात्रा बहुत याद आती है।

------------

कारोबार हुआ अस्त-व्यस्त

अशोक कुमार का कहना है कि छोटे व्यापारियों के लिए ट्रेन बड़ी सहूलत का काम करती थी। वह रेल में सफर कर लुधियाना से साइकिल स्पेयर पा‌र्ट्स लाते थे। यह रोजगार का माध्यम था। मगर, कोरोना महामारी व रेल बंद होने के कारण सारा कारोबार ही अस्त-व्यस्त हो गया है।

--------------

दुर्गा प्रसाद का कहना है कि वह ट्रेन पर ही ज्यादा सफर करते हैं। मगर, कोरोना महामारी के कारण जबसे रेल बंद की गई है, तबसे लगता है कि रेल सफर को वर्षो बीत गए हैं। दूर जाना हो जा नजदीक, रेल में ही ज्यादातर जाते थे। रेल का सफर सस्ता और आरामदायक होता है। अपने परिवार के साथ जाते तो मनोरंजन के लिए कोई न कोई गेम साथ रख लेते थे। अगर अपने साथियों के साथ होते तो ताश की बाजी जमती थी।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.