अभिनव की तैयार जैविक खाद निगल रही पंजाब की धरती का जहर
अंधाधुंध रासायनिक खादों से पंजाब की धरती की जैविक शक्ति घटकर .33 प्रतिशत रह गई है।
सत्येन ओझा.मोगा
अंधाधुंध रासायनिक खादों से पंजाब की धरती की जैविक शक्ति घटकर .33 प्रतिशत तक रह गई है। कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो एक प्रतिशत उपजाऊ शक्ति अच्छी होती है। लेकिन लगातार जहरीली होती जा रही पंजाब की धरती के जहर को अपने अभिनव ढंग से खत्म करने का काम किया है बरनाला के युवा इंजीनियर अभिनव सिगला ने। मूल रूप से व्यवसायी परिवार से संबंधित अभिनव बंसल ने साल 2014 से बरनाला में ही एक प्लांट लगाकर गोबर में बैक्टीरियल विधि से खाद बनाकर धरती की उपजाई शक्ति को 1.77 प्रतिशत के रिकार्ड लेवल तक लेकर आए हैं, उनके इस प्रयास को भारत सरकार ने सराहा है, उनके जैविक खाद बनाने के सिद्धांत को आधिकारिक रूप से मान्यता देने की प्रक्रिया विचाराधीन है। मेले में लगाया स्टाल
बरनाला के 27 साल के इंजीनियर अभिनव सिगला ने शनिवार को मोगा के गांव खोसा कोटला में पंजाब के पहले पंजाब स्तर के वातावरण संरक्षण मेले में अपनी जैविक खाद का स्टाल लगाया था। अभिनव बताते हैं कि उन्होंने सिविल में बीटेक किया है, उनकी शिक्षा का खेती से कोई संबंध नहीं था, उनके बड़े भाई ने गोबर से सीएनजी बनाने का एक प्रोजेक्ट साल 2014 में शुरू किया था, बस तभी से भाई की प्रेरणा से ही उन्होंने इसी गोबर में रासायनिक खाद से जहरीली होकर अपनी बंजरता की ओर बढ़ रही धरती को फिर से उसके मूल रूप में वापस लाने का सपना बुन लिया। बस उनके अंदर के इंजीनियर ने कुछ अलग कर दिखाने के जज्बे के साथ वो कर दिखाया जिसका लोहा आज पंजाब ही नहीं बल्कि गुजरात प्रदेश भी मान रहा है। अभिनव के प्लांट तैयार जैविक खाद गुजरात तक किसानों की फसल को लहलहा रही है, फसल भी अच्छी हो रही है। बैक्टीरिया युक्त जैविक खाद से धरती की ऊपजाई शक्ति भी तेजी के साथ बढ़ रही है। इंजीनियर ने गोबर की खाद को बनाया करियर
अभिनव बताते हैं कि बीटेक करने के बाद उनका मन भी विदेश में जाकर अपना करियर बनाने का किया था लेकिन मन के किसी कोने में अपने ही देश के बिगड़े हालातों को सुधारने का जज्बा भी पल रहा था। बस उसी जज्बे ने गोबर से खाद को ही उनका करियर बना दिया हालांकि अभिनव इस बात से दुखी भी हैं कि जो काम वे कर रहे हैं, उसकी देश को आज सबसे बड़ी जरूरत है लेकिन सरकारों से कोई सहयोग नहीं मिल रहा है। बहरहाल अभिनव की जैविक खाद से आज पंजाब के किन्नू, धान, गेहूं ही नहीं बल्कि गुजरात की फसलें भी लहलहा रही हैं। अभिनव बताते हैं कि उनकी खाद को जिस किसान ने भी एक बार भी प्रयोग कर लिया वह फिर उसे छोड़ ही नहीं पाता है। 75 साल की उम्र में जिदादिली
विरासत को जिदा रखा है 75 साल के बलदेव सिंह देवा ने। वे अपने जीवन में किसानों के लिए बैलगाड़ियां बनाने का काम किया करते थे। तकनीकी क्रांति ने बैलगाड़ियों के दौर को निगल लिया। अब खेती बैलगाड़ियों से नहीं, प्रदूषित करने वाले मैकेनिकल वाहनों से होती है, मशीनों का युग लौट आया है। 60 साल के बाद सरकारें भी व्यक्ति को रिटायर मान लेती हैं, लेकिन 65 साल की उम्र के बाद बलदेव सिंह के अंदर की जवानी ने तकनीक के दौर में गुम होती बैलगाड़ियां व अन्य विरासत के उपकरणों को अपनी कला से नया रूप देना शुरू किया तो पंजाबी विरसे के शौकीनों के लिए उनके बनाये लकड़ी के विरासती सामान बड़ी बड़ी कोठियों के लिए सजावट के साथ विरासत को याद रखने की वजह बनते गए। बैलगाड़ी को बलदेव सिंह ने टेबल का खूबसूरत रूप ही नहीं दिया है, बल्कि सूत कातने वाले पंजाब के गांवों की पहचान बलदेव के हाथों से बना चरखा हर कोई अपने ड्राइंग रूम की शोभा बढ़ाना चाहता है। उन्होंने पंजाबी विरसे से जुड़े हर सामान को अरनी कलाकारी से मोहक अंदाज में प्रस्तुत किया है। शनिवार को खोसा कोटला गांव में बलदेव सिंह देवा मरम्मत की गई बैलगाड़ी के साथ तो युवा पीढ़ी के लोग बड़ी संख्या में सेल्फी लेते हुए दिखे।
बलदेव सिंह बताते हैं कि बढ़ती उम्र के कारण अब वे उतना सामान तो नहीं बना पाते हैं जितनी डिमांड है लेकिन जितना बना लेते हैं, लोग हाथों हाथ ले लेते हैं, उन्हें संतोष है कि उनके इस काम से पंजाब की विरासत नई पीढ़ी तक पहुंच रही है।