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सरलता और त्याग की मूर्ति थे स्वामी फूलचंद महाराज

कस्बा सरदूलगढ़ में सिरसा मार्ग पर स्थित जैन संत स्वामी फूलचंद जी महाराज का समाधि स्थल इन दिनों श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है। दूर-दूर से चलकर लोग यहां अपनी मुरादें पूरी करते हैं।

By JagranEdited By: Published: Sun, 25 Apr 2021 12:34 AM (IST)Updated: Sun, 25 Apr 2021 12:34 AM (IST)
सरलता और त्याग की मूर्ति थे स्वामी फूलचंद महाराज
सरलता और त्याग की मूर्ति थे स्वामी फूलचंद महाराज

संसू, सरदूलगढ़ : कस्बा सरदूलगढ़ में सिरसा मार्ग पर स्थित जैन संत स्वामी फूलचंद जी महाराज का समाधि स्थल इन दिनों श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है। दूर-दूर से चलकर लोग यहां अपनी मुरादें पूरी करते हैं। समाधि स्थल पर पहुंचने वाले श्रद्धालुओं का कहना है कि वे सच्चे मन से जो भी मुराद मांगते हैैं वो यहां आकर उनकी हर मन्नत पूरी हो जाती है। श्रद्धा के इस अपार समंदर को देखकर लोग प्रभावित होकर लोग यहां पर पैदल ही पहुंच रहे हैं। कालांवाली से 35 किलोमीटर का पैदल सफर करते हुए स्वामी फूलचंद जी महाराज के समाधि स्थल पर पहुंचे श्रद्धालु संदीप जैन व मनोहर लाल जैन ने बताया कि वे हर वर्ष यहां पर पैदल पहुंचते हैं। उन्होंने कहा कि वे इस स्थल से पिछले कई वर्षो से आ रहें हैं और यहां पर आकर उन्हें आत्मिक शांति तो मिलती ही है साथ में हर इच्छा भी पूर्ण होती है। उन्होंने कहा कि यहां पर जो भी अपनी खाली झोली लेकर आता है वह भरी जाती है। स्वामी जी ने भगवान महावीर की वाणी का अनुसरण करते हुए अपना सारा जीवन तप-जप में लगाकर लोगों की भलाई के कार्य किए और उन्हें सच्चे राह पर चलने की शिक्षा दी इसलिए यहां पर हर रोज सैकड़ों लोग पहुंचते हैं। स्वामी जी का जन्म पांच अक्टूबर 1913 में राजस्थान के सीकर जिला के अंतर्गत तहसील नीम का थाना के पास गांव नाथा का नांगल, राजपूत बस्ती में माता अच्छना देवी व पिता बेरिसाल सिहं तंवर के घर पर हुआ। बचपन का नाम भीखा सिंह था। आपके मुनि बनने के बाद आपके गांव का नाम बदलकर मुनि फूलचंद नगर रखा गया। स्वामी फूलचंद जी महाराज अपने माता पिता की अकेली संतान थे और एक दिन अपने मित्र के साथ दिल्ली चले गए। वहां पर आपने संतों की सेवा की। आपने 1972 में पौष कृष्णा पंचमी को उत्तर प्रदेश के जिला मेरठ के बामनौली गांव में बहुसूत्री नत्थुलाल जी महाराज के शिष्य बने। 19 जनवरी 1983 में शांति स्वरूप जी महाराज ने मेरठ में इनको उपप्रवर्तक पद से अलंकृत किया। 22 जनवरी 1998 में रामकृष्ण जी महाराज ने दिल्ली में इन्हें संत शिरोमणि पद से विभूषित किया। 9 अप्रैल 1998 को महावीर जयंती के अवसर पर सरदूलगढ़ संघ ने संयम सूर्य की चादर इन्हें समर्पित की। स्वामी जी 25 अप्रैल 2001 को हरियाणा के रतिया जैन स्थानक में संथारा समाधि सहित देवलोक को प्राप्त हुए। स्वामी जी के पदचिन्हों पर चल रहे उनके शिष्य

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उनके शिष्यों में गरीबों के मसीहा सुमति मुनि जी महाराज व ज्योतिषाचार्य वचनसिद्ध सत्यप्रकाश जी महाराज तथा पोत्र शिष्य समर्थ मुनि जी महराज है जो उनके पद्चिन्हों पर चल रहे हैं। 25 अप्रैल को आगम ज्ञाता योगीराज युवा प्रेरक श्री अरुण मुनि जी महाराज ठाणे 6 के सानिध्य में सरदूलगढ़ में उनकी पुण्यतिथि श्रद्धा व तप त्याग से मनाई जाएगी।


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