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सत्संग में होती है आत्मिक शुद्धि: स्वामी नंदगिरी

श्रीमद् भागवत कथा के तीसरे दिन ज्योति प्रचंड करने की रस्म राज कुमार बांसल व दीप चंद ने निभाई।

By JagranEdited By: Published: Thu, 23 Sep 2021 09:26 PM (IST)Updated: Thu, 23 Sep 2021 09:26 PM (IST)
सत्संग में होती है आत्मिक शुद्धि: स्वामी नंदगिरी
सत्संग में होती है आत्मिक शुद्धि: स्वामी नंदगिरी

संसू, मानसा: अखंड परमधाम सेवा समिति मानसा की ओर से गोशाला भवन में करवाई जा रही श्रीमद् भागवत कथा के तीसरे दिन ज्योति प्रचंड करने की रस्म राज कुमार बांसल व दीप चंद ने निभाई।

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कथाव्यास महामंडलेश्वर स्वामी ज्योतिरमय नंद गिरी ने कहा कि आत्मिक शुद्धि सत्संग में आने से होती है। सत्संग इंसानी जीवन व जीव के लिए अमूल्य है। मगर आज कलयुग में किसी के पास सत्संग में जाकर परमात्मा का नाम सुनने का समय नहीं है। सभी धन कमाने में लगे हुए हैं। अंत में आरती जीवन सिगला, मनोज सिगला व डा. विजय सिगला ने की। इस मौके पर प्रेम जोगा, महेश अतला, सतीश गोयल, पवन कुमार, विजय मूसा, सुनील गुप्ता आदि उपस्थित थे। धर्म की आराधना से मिलता है सुख: डा. सुनीता जैन स्थानक में साध्वी डा. सुनीता ने कहा कि संसार में धर्म की आराधना श्रेष्ठ है। धर्म की आराधना से व्यक्ति का जीवन सुखी-समृद्ध होता है। धर्म को धारण करने वाले व्यक्ति का कर्म और जीवन दोनों पवित्र हो जाते हैं। व्यक्ति सुख एवं समृद्धि का पात्र बनकर सामाजिक प्रतिष्ठा को प्राप्त करता है।

उन्होंने कहा कि उदारता और परोपकार ही मानवता के आभूषण हैं, जिससे व्यक्ति महान बनता है जबकि स्वार्थी व्यक्ति का जीवन नीरस हो जाता है। सबका सम्मान और सभी का कल्याण चाहने की दीक्षाएं देने के कारण ही धर्म आज संपूर्ण विश्व में विशेष स्थान प्राप्त कर रहा है। जिस धर्म में स्त्री को देवी और लक्ष्मी का स्वरूप मानकर और पिता को भगवान का दर्जा देकर पूजा जाता हो उसे महान बनने से कोई रोक नहीं सकता। धर्म और संस्कृति में राष्ट्र और समाज के लिए उपयोगी सभी वस्तुओं का भगवान का स्वरूप मानकर पूजा जाता है यही कारण है कि सनातन धर्म के अनुयायी सदा सुखी स्वस्थ एवं समृद्धिशाली रहते हैं।

साध्वी शुभिता ने कहा कि मनुष्य को कभी झूठ का सहारा जीवन में नहीं लेना चाहिए। सत्य प्रताड़ित हो सकता है, लेकिन परास्त नहीं हो सकता है। सत्य की जीत होती है, लेकिन उसमें कुछ समय लग जाता है। असत्य कुछ दिन ही सत्य पर भारी पड़ सकता है, लेकिन अंत में सत्य की असत्य पर जीत होती है। साध्वी ने कहा कि असत्य बोलने से गूगापन, अज्ञानता मुख में रोग, विवेक शून्यता आती है। सत्य ईश्वर की आत्मा है और प्रकाश उसका शरीर है। असत्य बोलने वाले का कोई विश्वास नहीं करता है। सत्य निष्ठ व्यक्ति के पास सरस्वती का वास होता है। सत्य तो सत्य है दवाई की तरह है ना मीठा है ना कड़वा है। सत्य बोलने से वचन सिद्धि हो जाती है। सत्य की हमेशा जीत होती है। रिश्तों की बगिया में एक रिश्ता नीम के पेड़ जैसा भी रखना जो सीख भले ही कड़वी देता हो पर तकलीफ में मरहम भी बनता है। धर्म पवित्र हृदय में ही बसता है।


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