अच्छे विचारों के साथ ही जीवन जीयो: साध्वी शुभिता
साध्वी शुभिता ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा जो भूमिका हवेली की स्थिरता में नींव की होती है।
जासं,मौड़ मंडी: जैन भारती सुशील कुमारी महाराज की सुशिया साध्वी शुभिता ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा जो भूमिका हवेली की स्थिरता में नींव की होती है वही उपयोगिता जीवन में धर्म की होती हैं, जो आपके जीवन में स्थिरता लाती है। धर्म हमें जीवन जीने की कला सिखाता है। जिसके पास जीवन जीने की कला होती है वह जीवन में सब कुछ पा जाता हैं।
उन्होंने कहा कि ज्यादातर लोग धर्म इसलिये करते हैं कि धर्म करेंगे तो संकट टलेगा, पुण्य मिलेगा, जीवन रूपांतरित होगा। कुछ लोग तो परंपराओं के चलते धर्म कर रहे हैं। संकट धर्मी पर ही आते हैं, पापियों पर नहीं। जितने भी भगवान हुए हैं उनके जीवन चरित्र में बाल्यकाल से लेकर उनके बड़े होने तक अनेक संकट आए, लेकिन वह सभी संकटों से निकल कर अपने कर्म करते चले गए। धर्मी व्यक्ति पर जब संकट आता है तो वह उन संकटों से टूटता नही है, वह उन संकटों से उपसर्गो को सहता है और उन संकटों से उभर जाता है, जबकि पापी व्यक्ति संकट से टूट जाता है। जो व्यक्ति धर्म को ठोकर मारता है उसे धर्म भी नहीं स्वीकारता। संसार आदिकाल से चलता आ रहा है व अनंतकाल तक चलता रहेगा। संसार में जो व्यक्ति धर्म का सहारा लेगा वह दुखी नहीं होगा। विषमता को छोड़कर समता को धारण करना ही जैन धर्म: डा. राजेंद्र मुनि पर्यूषण पर्व के छठे दिन जैन स्थानक बठिडा में प्रवचन करते हुए डा. राजेंद्र मुनि ने जैन धर्म के अनुयायी श्रावक के 12 व्रतों पर प्रकाश डाला एवं नवमा सामायिक का महत्व बतलाया।
उन्होंने कहा कि जीवन मे समता विषमता के भाव आते-जाते रहते हैं। विषमता के वातावरण मे समता भाव को बनाए रखना ही धर्म का स्वरूप है। प्रात:काल से हमारी दैनिक जीवनचर्या प्रारम्भ होती है। दिन भर कई कार्यों के लिए कई लोगों से मिलना-जुलना, घर, परिवार, समाज और व्यापार में नाना भांति के लोगों से मिलना। उन तमाम गतिविधियों में मन को समता भाव से बनाए रखना, इसके अलावा आत्म साधना हेतु सामायिक की साधना का वर्णन आगमो में आया है। इसके अंतर्गत मन, वचनस काया के तमाम कार्यों का परित्याग कर आत्म चितन मनन किरते हुए परम शुद्ध अवस्था प्राप्त हो जाए तो केवल ज्ञान की प्राप्ति कर समस्त कर्मों का नाश हो जाता है।
उन्होंने कहा कि ऐसी उत्कृष्ट साधना भगवान महावीर ने स्वयं की एवं अपने अनुयाइओ से कराई। वही परम्परा वर्तमान में भी चल रही है। जैन श्रावक को एक सामायिक करना प्रतिदिन आवश्यक है, जिसमें एक घंटे का समय अपनी धर्म आराधना साधना में व्यतीत करना होता है। यद्यपी यह परम्परा अभी भी गतिमान है किन्तु इसमें ऊंचे भावों की कमी आने के कारण उतना लाभ नहीं मिल पाता। समस्त राग द्वेष को समाप्त करने के लिए सामायिक आवश्यक है।
सभा में साहित्यकार सुरेन्द्र मुनि ने अंतगढ़ सूत्र के माध्यम से उन पवित्र जीवों का वर्णन विवेचन किया, जिन्होंने केवल ज्ञान को प्राप्त कर लिया। जैन धर्म में उत्कृष्ट तप का, त्याग का, दान का, ब्रह्मचर्य का, सत्य, अहिसा, शाकाहार, रात्रि भोजन के परित्याग का व जीवदया तथा मानव मात्र की भलाई का विशेष वर्णन विधान है। सभा मे महामंत्री उमेश जैन ने तपस्वीओ का स्वागत किया।