माता-पिता की सेवा ही सबसे उत्तम सेवा: सत्य प्रकाश
पर्यूषण पर्व के पांचवें दिन जैन सभा पुराना बाजार में प्रवचन के दौरान सत्य प्रकाश मुनि ने कहा कि माता-पिता की सेवा सबसे उत्तम सेवा है।
संसू, सरदूलगढ़: जैन सभा में संत शिरोमणि स्वामी फूलचंद महाराज व पंडित रतन रण सिंह महाराज के सुशिष्य गुरुदेव सुमति मुनि महाराज ज्योतिष आचार्य गुरुदेव सत्य प्रकाश महाराज व सेवाभावी समर्थ मुनि जी महाराज ठाणे 3 चातुर्मास हेतु विराजमान हैं। बुधवार को पर्यूषण पर्व के पांचवें दिन जैन सभा पुराना बाजार में प्रवचन के दौरान सत्य प्रकाश मुनि ने कहा कि माता-पिता की सेवा सबसे उत्तम सेवा है।
श्री अनंतगढ़ सूत्र के तीसरे अध्याय का वर्णन सुनाते हुए साध्वी ने कहा कि श्री कृष्ण भगवान जी ने अपनी माता की आज्ञा का पूरी तरह पालन किया। अपनी इतनी ज्यादा व्यस्त जिदगी में भी कभी भी अपनी माता-पिता की आज्ञा का निरादर नहीं किया। हमें भगवान कृष्ण की माता-पिता के प्रति सेवा को अपने जीवन में अपनाना चाहिए और अपने माता-पिता की सेवा करनी चाहिए। आज की प्रभावना मदनलाल जगदीश राय गोठी व ज्ञान चंद सुरेंद्र कुमार जैन परिवार की ओर से बांटी गई। यहां जैन सभा के अध्यक्ष अभय कुमार जैन, उपाध्यक्ष अशोक जैन, महामंत्री बरिदर जैन, कोषाध्यक्ष सोहनलाल जैन, महिला मंडल के अध्यक्ष सीमा जैन, युवक संघ के अध्यक्ष पंकज जैन आदि मौजूद थे। भगवान महावीर की शिक्षा को जीवन में अपनाएं: डा. राजेंद्र मुनि जैन सभा के प्रवचन हाल में पर्यूषण पर्व के पांचवें दिन भगवान महावीर के जन्मोत्सव पर डाक्टर राजेंद्र मुनि ने महावीर के अनंत उपकारों का वर्णन किया। उन्होने कहा कि अहिसा, सत्य, क्षमा, शाकाहार, दया, दान, पुण्य, अनेकांत वाद आदि ये सभी शिक्षाएं हमें महावीर की बदौलत प्राप्त हुई हैं। यधपी महावीर का जन्म चेत सुदी तेरस के दिवस हुआ फिर भी आज के दिन भी उनको स्मरण वंदन किया जाता है। महावीर वाणी को ही आगम वाणी कहा जाता है। इन आगमों का पठन पाठन ही वस्तुत: स्वाध्याय सामायिक कहा जाता है। महावीर के तप धर्म का विवेचन करते हुए मुनि जी ने जैन धर्म का दूसरा नाम तप धर्म बतलाया, जो कठोर तप, जप, ध्यान, साधना, प्रभु वीर ने की वो बेमिसाल है।
उन्होंने कहा कि संपूर्ण जगत जैन धर्म के इस अखंड तप से अचंभित है। एक दिन के उपवास से लेकर सेकंड़ों दिवस गर्म पानी के आधार पर कई भक्तजन आज भी दृढ़ संकल्प से इस तप को पूर्ण करते हैं। पूर्व समय में राजा जन भी पौषध व बेले तेले तप की अराधनाएं कर के सफलता प्राप्त करते थे। जो कर्मों का क्षय कर देता है। जो शरीर के साथ मन को भी तपा देता है। जिससे आत्मा परिशुद्ध होती है। जो नाना प्रकार के सदगुणों को जीवन में प्रकट करता है। जिससे अशुभ विचार शुभ में परिणत हो जाते हैं। वही तप का सच्चा स्वरूप है।
सभा में साहित्यकार सुरेंद्र मुनि द्वारा अंतगढ़ सूत्र के स्वाध्याय के द्वारा सभी को धर्म अराधना की प्रेरणा दी गई। अंत में महामंत्री उमेश जैन ने सभी को हार्दिक बधाइयां व सूचनाएं प्रदान कीं।