किसान हरभजन सिंह ने सहायक धंधों से बढ़ाई आय
किसान हरभजन सिंह ने सहायक धंधे अपना कर अपनी आय में बढ़ौतरी की है।
जासं, मानसा: एक तरफ जहां पंजाब भर में कृषि में हुए नुकसान से आहत किसान आत्महत्या कर रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ एक ऐसा किसान भी है जो सहायक धंधे अपना कर संपन्न हो गया है। किसान की सूझबूझ, सफलता और आमदनी देख कर न सिर्फ दूसरे किसान प्रेरित हुए हैं बल्कि खुद किसान के एमबीए पास बेटे ने कृषि को प्रोफेशन बनाने की सोच ली है। वहीं, छोटा बेटा भी बारहवीं के बाद से ही कृषि के गुर पिता से सीखने लगा है। इतना ही नहीं खुद पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल किसान हरभजन के फार्म का दौरा करके उसे शाबाशी दे चुके हैं।
यह किस्सा जिले के गांव मलकपुर ख्याला के किसान हरभजन सिंह का है, जो सिर्फ सात एकड़ भूमि का मालिक है। इसपर वह कपास और धान की खेती कर रहा था। लेकिन पिछले कुछ सालों से उसने सहायक धंधों को अपनाया। नतीजतन किसान हरभजन ने सहायक धंधों से 19 लाख रुपये प्रति वर्ष कमाए हैं। सहायक धंधों में हरभजन ने मछली पालन, सूअर पालन, बकरी पालन, मुर्गीपालन आदि शुरू किए हैं। किसान हरभजन की सूझबूझ कुछ ऐसी है कि एक सहायक धंधे का वेस्ट मटीरियल दूसरे सहायक धंधे में खुराक बन जाता है। इससे सहायक धंधों पर लागत काफी घट जाती है। ऐसी तकनीकों और सूझबूझ से ही उसे न सिर्फ पैसे की बचत हो रही है वहीं वेस्ट मैनेजमेंट भी हो रहा है। हरभजन ने राज्य सरकार की सब्सिडी से साल 1989 में अपनी पांच एकड़ •ामीन में मछली पालन की शुरुआत की थी। वह कहता है कि उस समय वह मछली पालन के वैज्ञानिक तरीके से अच्छी तरह जानकार नहीं था। जब पंजाब सरकार ने उसे भुवनेश्वर प्रशिक्षण के लिए भेजा जिसमें उसे कम लागत पर ज्यादा उत्पादन के साथ मछली पालन के सबसे बढि़या तरीकों बारे शिक्षा मिली। आज वह 10 एकड़ क्षेत्रफल में मछली की काश्त करता है और हर 15 दिनों में सात से आठ क्विटल मछली बेचता है। इसके इलावा वह मछली का बीज तैयार करता है और इसे व्यापारिक तौर पर बेचता है। वह मछली की उच्च पौष्टिक ़खुराक भी तैयार करता है, जो उसके फार्म में उपयोग होती है और साथ ही दूसरे किसानों को बेची जाती है। साल 2007 में उसने मछली की काश्त की लागत को कम करने के उद्देश्य से सूअर फार्म लगाया। सूअरों का मल पेशाब मछली के तालाब की तरफ जाता है, जो मछली के लिए ़खुराक का काम करते हैं। उसके पास 85 सूअर हैं। वह अपने फार्म पर जानवरों का मीट तैयार कर बेचता है। सूअर का ़खून मु़र्गी और मछली के लिए फीड के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है।फीड के रूप में सूअरों के मल पेशाब का प्रयोग के साथ मछली की ़खुराक लागत 50 प्रतिशत कम हो गई है। हरभजन के पास लगभग 100 मु़र्गे और मुíगयां, तकरीबन 100 बकरियां और कई बटेर हैं। एमबीए पास बेटा भी करने लगा खेती
किसान हरभजन सिंह की सफलता को देखकर न सिर्फ सूबे भर के किसान प्रेरित हुए हैं बल्कि इसका प्रभाव उसके खुद के बेटों पर भी हुआ है। हरभजन का बड़ा बेटा एमबीए पास है। लेकिन किसी कंपनी में नौकरी करने की बजाए अब वह भी कृषि को अपना प्रोफेशन बनाने में जुट गया है। वहीं छोटा बेटा बारहवीं पास है, जो अभी से कृषि और सहायक धंधों के गुर पिता से सीखने लगा है। हर धंधा है एक-दूजे का सहायक
हरभजन सिंह द्वारा अपनाया गया हर सहायक धंधा किसी दूसरे सहायक धंधे की लागत घटाने में सहायक है। किसान ने सूअर पालन इसलिए शुरू किया क्योंकि सूअरों का मल व पेशाब मछलियों के लिए खुराक होता है। ऐसे में मछली पालन में खुराक का खर्च कम हो गया। वहीं, सूअरों के स्नान के लिए इस्तेमाल पानी को मछली के तालाब में प्रयोग किया जाता है। मछलियों के तालाब से निकलने वाला कूड़ा खेत के लिए जैविक खाद बन जाता है। धान की खेती के बाद फसल की छंटाई के दौरान निकलने वाले छिलके भी मछलियों के लिए खुराक बनते हैं। खुद बना दीं मशीनें
इतना ही नहीं किसान ने अंडों से चूजे बनाने (हैचिग) के लिए एक मशीन भी खुद तैयार कर दी जोकि 21 दिनों में चार हजार अंडों को चूजे बना देती है। यह मशीन सिर्फ 40 हजार रुपए से बनी है, जबकि बाजार में यह 2.5 लाख रुपये कीमत में उपलब्ध है। इसी तरह उसने मछली बीज की गोलियां बनाने के लिए एक देसी मशीन सिर्फ 40 हजार रुपए में तैयार की है, जिसका मार्केट में मूल्य 1.5 लाख रुपए है। हरभजन बोले, खुद करें काम, खर्च पर लगेगी लगाम
पंजाब के किसानों को संदेश देते हुए हरभजन कहते हैं कि किसानों को खुद काम करने की आदत बनानी होगी। मजदूरों पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। यह भी कृषि लागत को कम करने की एक तकनीक है। जहां खुद काम करने से किसान हर प्रकार के तथ्य को बारीकी से समझ सकेंगे, तो वहीं मजूदरी पर होने वाले खर्च पर भी लगाम लगेगी। किसान हरभजन सिंह का कहना है कि मौजूदा समय में सिर्फ खेतीबाड़ी करके ही सक्षम नहीं बना जा सकता है। कृषि करके अधिक लाभ नहीं कमाया जा सकता है। सहायक धंधे जहां आमदन बढ़ाते हैं तो वहीं कई प्रकार के संसाधन भी पैदा करके कृषि लागत को कम कर देते हैं। किसानों को यह धंधे जरूर अपनाने चाहिए।