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पतंगबाजी के शौकीन आज भी मांजे वाली डोर के हैं दीवाने

दीवाली के बाद से दरेसी ग्राउंड में डोर सूतने के लिए कारीगरों के अड्डे सज जाते थे।

By JagranEdited By: Published: Sun, 12 Jan 2020 06:45 AM (IST)Updated: Sun, 12 Jan 2020 06:45 AM (IST)
पतंगबाजी के शौकीन आज भी मांजे वाली डोर के हैं दीवाने
पतंगबाजी के शौकीन आज भी मांजे वाली डोर के हैं दीवाने

जासं, लुधियाना : दीवाली के बाद से दरेसी ग्राउंड में डोर सूतने के लिए कारीगरों के अड्डे सज जाते थे। प्लास्टिक डोर का प्रचलन बढ़ा तो लोगों ने मांजे वाली डोर से किनारा करना शुरू कर दिया। जिस दरेसी ग्राउंड में डोर सूतने के लिए कभी 12 से अधिक अड्डे सजते थे, वहां अब सिर्फ दो ही अड्डे रह गए हैं। जैसे-जैसे प्लास्टिक डोर के दुष्परिणाम सामने आने लगे तो लुधियानवियों को फिर से मांजे वाली डोर भाने लगी है। वह अब फिर से इस मांजा डोर के दीवाने हो गए हैं और इसकी ही खरीदारी करने लगे हैं। डोर सूतने वालों की मानें तो पतंगबाजी के शौकीन कभी भी प्लास्टिक डोर को अहमियत नहीं देते, क्योंकि प्लास्टिक की डोर से बड़े पतंग उड़ाने में दिक्कत होती है। कई बार तो पतंग उड़ाने वाले की अंगुलियां कट जाती हैं। ऐसे में पतंगबाजी के शौकीन छज्ज उड़ाने के लिए मांजे वाली डोर को तरजीह देते हैं।

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पिता से मिली विरासत

70 साल से डोर सूत रहे सुरिदर कुमार

दरेसी ग्राउंड में 70 साल से अड्डा लगाने वाले सुरिदर कुमार का कहना है कि उनके पिता पहले पाकिस्तान स्थित लाहौर में डोर सूतकर बेचते थे। बंटवारे के बाद दरेसी में अपना अड्डा लगाया। पिता की मौत के बाद फिर उन्होंने भी इस काम को जारी रखा। उनका कहना है कि पिछले कुछ सालों में प्लास्टिक डोर का प्रचलन जरूर बढ़ा लेकिन जो पर्यावरण प्रेमी और पतंगबाजी के शौकीन हैं, वह आज भी मांजे वाली डोर को ही प्राथमिकता देते हैं। उन्होंने कहा कि मांजे वाली डोर 16 डोरियों की भी बनाई जाती है जिसे प्लास्टिक डोर भी नहीं काट सकती। इससे छज्ज को यानि बड़े पतंग को आसानी से उड़ाया जा सकता है। उन्होंने बताया कि जो पढ़े-लिखे लोग हैं, वह हमेशा मांजे वाली डोर ही खरीदते रहे हैं।

दरेसी में 40 साल से मांजा डोर बेच रहे सुरजीत सिंह

दरेसी ग्राउंड में 40 साल से डोर सूतने वाले कारीगर सुरजीत सिंह का कहना है कि अब बाजार में प्लास्टिक डोर के अलावा धागे वाली रेडिमेड डोर भी आग गई। जो लोग शुरू से डोर सूतकर ले जाते थे, वह आज भी इसी डोर को पसंद करते हैं। वे काफी जागरुक हैं और वे लोहड़ी से पहले हमेशा मांजे वाली डोर ही खरीदकर ले जाते हैं। क्योंकि वे चाइनीज डोर के दुष्प्रभावों से भलीभांति वाकिफ हैं।

लोहड़ी के लिए दरेसी में सज गई पतंग मार्केट

ल धियाना की सबसे बड़ी पतंग मार्केट दरेसी लोहड़ी के पूरे रंग में रंग चुकी है। डोर के अलावा रंग-बिरंगी पतंगों से मार्केट सज चुकी है। लोहड़ी से पहले शनिवार को मार्केट में खूब चहल-पहल रही और बच्चे अपने अभिभावकों के साथ पतंग खरीदने पहुंचे। दुकानदारों की मानें तो लोग पतंगों की जमकर खरीदारी कर रहे हैं। उम्मीद है कि रविवार को इससे भी ज्यादा लोग पतंग खरीदने के लिए आएंगे।

प्लास्टिक डोर से बेहद नफरत

जब प्लास्टिक डोर आई थी, तब एक बार ही ली। जब उसके दुष्परिणाम देखे तो इससे बहुत नफर हो गई। इसलिए कई सालों से दरेसी से मांजे वाली डोर खरीदकर ही पतंग उड़ाता हूं।

-साहिल, स्टूडेंट एससीडी गवर्नमेंट कॉलेज

हम सभी दोस्त कई सालों से प्लास्टिक डोर से दूरी बना चुके हैं। प्लास्टिक डोर के खिलाफ पुलिस की सख्ती सराहनीय है। लोगों को भी इसके प्रति जागरूक होना चाहिए। अब लोग फिर से मांजा डोर खरीद रहे हैं।

-अमन, किदवई नगर निवासी

प्लास्टिक डोर की बजाय मांजे वाली डोर से पतंग उड़ाने में ही मजा आता है। लोग अब प्लास्टिक डोर से परहेज करने लगे हैं और उन्हें समझ आ गया है कि यह जानलेवा है। यह बेहद अच्छी बात है।

-दमन बोरा, जमालपुर निवासी

मैं तो शुरू से मांजे वाली डोर से पतंग उड़ा रहा हूं। प्लास्टिक डोर से हमने कभी भी पतंग नहीं उड़ाई। मांजे वाली डोर ही बेहतर है। हम कई सालों से दरेसी मैदान से डोर सूतवाकर इस्तेमाल करते आ रहे हैं।

-धीरज शर्मा, जमालपुर निवासी


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