बठिंडा के ज्ञाना में जिस पानी को मानते थे अभिशाप, उसी से युवा हो गए मालामाल, झींगा फार्म से कमा रहे लाखों
बठिंडा के ज्ञाना गांव में नहर का पानी खारा है। लोग इसे अभिशाप मानते थे लेकिन अब यही पानी उनके लिए वरदान साबित हो रहा है। यहां युवा पारंपरिक खेती छोड़ खारे पानी वाली जमीन पर मछली पालन कर रहे हैं।
गुरप्रेम लहरी, बठिंडा। नहर के पानी की कमी और भूमिगत जल खारा होने के कारण पंजाब के बठिंडा जिले के कई गांवों की जमीन खेती के अनुकूल नहीं है। खारे पानी को यहां के किसान अभिशाप की तरह मानते हैं, लेकिन गांव ज्ञाना के युवाओं ने इस अभिशाप को वरदान में बदल दिया और अब लाखों रुपये की कमाई कर रहे हैं।
यहां अब खारे पानी में झींगा फार्म बनाकर युुवा मछली पालन से आय अर्जित कर रहे हैैं और दूसरों को राह भी दिखा रहे हैैं। झींगा पालन में केंद्र सरकार की तरफ से मिलने वाली सब्सिडी भी इन युवाओं के लिए सहायक साबित हुई है।
अब तक 40 एकड़ में बने फार्म
ज्ञाना गांव के सुरिंदर सिंह ढिल्लों ने सबसे पहले अपने खेत में तालाब बना कर झींगा मछली का पालन शुरू किया था। कमाई अच्छी हुई तो कई और लोगों ने इस व्यवसाय में हाथ आजमाया। अब ज्ञाना में 40 एकड़ क्षेत्र में झींंगा मछली के फार्म बन चुके हैं। ये युवा अब खारे पानी से लाखों रुपये कमाकर अपनी तकदीर बदलने में जुटे हैं।
पंजाब में बठिंडा के ज्ञाना गांव स्थित अपने झींगा फार्म मे जसविंदर सिंह ढिल्लों। जागरण
बंजर रह जाती थी जमीन
सुरिंदर सिंह ढिल्लों बताते हैं कि उनके गांव के अलावा आस पड़ोस के कई गांवों में काफी जमीन खारे पानी की अधिकता के कारण बंजर रह जाती है। वर्ष 2018 में उन्हें झींगा पालन के बारे में पता चला। केंद्र सरकार की योजना के अंतर्गत झींगा पालन के लिए एक एकड़ का तालाब बनाने में 40 प्रतिशत सब्सिडी मिलती है।
तालाब में पानी भरने के लिए ट्यूबवेल और पानी में आक्सीजन की मात्रा बनाए रखने के लिए विशेष मशीनें भी लगाई जाती हैं। एक एकड़ में तालाब बनाने, ट्यूबवेल लगाने, चारा आदि रखने को कमरों के निर्माण और आक्सीजन के लिए दो मशीनें लगाने में लगभग 10 लाख रुपये का खर्च आता है।
पंजाब में बठिंडा के ज्ञाना गांव स्थित अपने झींगा फार्म। जागरण
आठ से नौ माह में झींगा तैयार हो जाता है और पहले वर्ष ही एक एकड़ के झींगा फार्म से 12-13 लाख रुपये की कमाई हो जाती है। इसमें से तालाब निर्माण का खर्च निकाल दें तो सब्सिडी के चार लाख मिलाकर वर्ष में छह से सात लाख रुपये की कमाई हो जाती है। तालाब बनाने व अन्य संबंधित व्यवस्था का खर्च सिर्फ एक बार का है, इसलिए बाद में हर वर्ष खर्च निकाल कर आठ से दस लाख रुपये की कमाई होती है।
जो मजाक उड़ाते थे, वह भी जुड़े
सुरिंदर के बड़े भाई जसविंदर सिंह ढिल्लों के अनुसार जब उन्होंने झींगा फार्म बनाया तो लोग हमारा मजाक उड़ाने लगे, लेकिन एक साल बाद वही लोग फार्म बनाने के बारे में पूछने लगे। कई लोगों ने अपने फार्म शुरू किए। एक अन्य किसान अमरीक सिंह ढिल्लों ने बताया कि हरियाणा की सीमा से लगते बठिंडा जिले के गांवों के सभी किसान शुरू से ही मुख्य रूप से नरमा (कपास), धान, गेहूं की खेती करते रहे हैं, लेकिन पानी ज्यादा खराब होने के कारण धान की खेती बंद हो गई। नरमे की फसल भी फायदेमंद नहीं रही।
पारंपरिक खेती को अपनाने से इस क्षेत्र में कुछ स्थानों पर भूजल काफी नीचे चला गया। हजारों एकड़ भूमि बंजर हो गई। मछली पालन विभाग के पूर्व उप निदेशक अजीत सिंह के मुताबिक खारे पानी में झींगा मछली ही हो सकती है। झींगा को पोटेशियम की ज्यादा जरूरत होती है और खारे पानी में पोटेशियम काफी होता है। इसलिए इन लोगों ने झींगा पालन को अपनाकर समझदारी की है।
आंध्र प्रदेश से लाते हैं बीज
युवा किसान संदीप सिंह ढिल्लों ने बताया कि वह झींगा मछली का बीज आंध्र प्रदेश से लेकर आते हैं। बाद में वहीं के व्यापारी यहां आकर इसे खरीद लेते हैं। उन्होंने पिछले साल तीन एकड़ मेें झींगा फार्म बनाया था। इसे बनाने में 30 लाख रुपये खर्च हो गए, लेकिन एक साल के अंदर ही उन्हें इससे 36.50 लाख रुपये की कमाई हुई।
तालाब निर्माण पर खर्च हुए 30 लाख निकाल दें तो साढ़े छह लाख रुपये बचत रही। इसके अलावा सरकार से 40 प्रतिशत सब्सिडी भी मिल गई। एक वर्ष में तीन एकड़ से साढ़े ग्यारह लाख की बचत रही। अब इस वर्ष लागत कम हो जाएगी और मुनाफा बढ़ जाएगा।
550 रुपये प्रति किलो तक मिलता दाम
युवा किसान संदीप सिंह ढिल्लों ने बताया कि झींगा का एक फायदा यह है कि हमें इसको लेकर मंडी में बेचने नहीं जाना पड़ता। जब झींगा तैयार हो जाता है तो खरीदने वाली फर्मों को सूचना भेज दी जाती है। उनके कर्मचारी फार्म पर ही आ जाते हैैं और वहीं से झींगा खरीद कर ले जाते हैं।
उन्होंने बताया कि एक एकड़ में करीब तीन साढ़े तीन टन झींगा तैयार हो जाता है । झींगा के आकार के हिसाब से दाम तय होता है। साढ़े चार सौ से साढ़े पांच सौ रुपये प्रति किलो तक यह बिक जाता है। अगर एक किलो में 20-22 झींगा आते हैं तो दाम ज्यादा मिलता है और 30 से ज्यादा झींगा चढ़ते हैं तो दाम कम हो जाता है।
ठेके पर जमीन देने पर मिलते सिर्फ 32 हजार
संदीप ने बताया कि उनके गांव में फसल कम होने के कारण जमीन का ठेका सिर्फ 32 हजार रुपये प्रति एकड़ प्रति वर्ष के हिसाब से मिलता है। ऐसे में अगर तीन एकड़ जमीन ठेके पर देते तो सिर्फ 96 हजार रुपये ही उनको मिल पाते। अगर तीन एकड़ में धान या गेहूं की खेती की जाए तो भी सिर्फ ढाई लाख रुपये की बचत होती है। कपास की खेती में महज दो लाख रुपये बचते हैं।