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Tokyo Olympics 2020: फरीदकाेट के रूपिंदरपाल सिंह बने हाॅकी टीम की जीत के हीराे, मां बाेली-बेटे ने वादा किया पूरा

Tokyo Olympics 2020 सुखविंदर कौर ने कहा कि बेटा रियो में हुए 31वें ओलंपिक में भी खेलने गया था परंतु गत ओलिंपिक में भारत कोई मेडल नहीं मिला था जिसका उन्हें व बेटे को मलाल था। इस बार भारतीय टीम ने अच्छे खेल का प्रदर्शन किया।

By Vipin KumarEdited By: Published: Thu, 05 Aug 2021 11:42 AM (IST)Updated: Thu, 05 Aug 2021 02:38 PM (IST)
Tokyo Olympics 2020: फरीदकाेट के रूपिंदरपाल सिंह बने हाॅकी टीम की जीत के हीराे, मां बाेली-बेटे ने वादा किया पूरा
भारतीय टीम की जीत पर रूपिंदरपाल सिंह के घर जश्न का माहौल। (जागरण)

फरीदकोट, [प्रदीप कुमार सिंह]। Tokyo Olympics 2020: बेटे ने जो वादा किया था, वह पूरा किया। आज उसकी मेहनत रंग लाई, और अब अपने को गौरवांवित महसूस कर रहे है। भारतीय हाॅकी टीम भले ही गोल्ड व सिल्वर नहीं जीत पाई, परंतु उसने बेहतर खेल दिखाते हुए जर्मनी को 5-4 से हराकर तीसरे स्थान पर रहते हुए कांस्य पदक जीता। यह कहना है भारतीय टीम का हिस्सा रहे हाॅकी खिलाड़ी रूपिंदरपाल सिह की मां सुखविंदर कौर का।

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 सुखविंदर कौर ने कहा कि बेटा रियो में हुए 31वें ओलंपिक में भी खेलने गया था, परंतु गत ओलिंपिक में भारत कोई मेडल नहीं मिला था, जिसका उन्हें व बेटे को मलाल था, परंतु इस बार भारतीय टीम ने अच्छे खेल का प्रदर्शन किया और टीम को कांस्य के रूप में मेडल मिला। इससे उन्हें व उनके रिश्तेदारों व खेल प्रेमियों को बेहद खुशी है। हाॅकी कोच व जिला खेल अधिकारी फरीदकोट बलजिंदर सिंह ने कहा कि उन्हें शुरु से ही भारतीय टीम के इस बार मेडल जीतने की आशा था, टीम ने बेहतर खेल का प्रदर्शन किया और 41वें साल भारत की झोली में कांस्क के रूप में पदक डाल दिया। यह पदक भारतीय हाॅकी के भविष्य के लिए बड़ा अवसर लेकर आएगी।

बचपन से ही हाकी के प्रति रूपिंदर का था शाैकः पिता हरिंदर सिंह

रुपिंदर पाल सिंह के सबसे बड़े मार्गदर्शक पिता हरिंदर सिंह ने बताया कि स्कूल व काॅलेज के समय से ही वह भी हाॅकी खेलते थे। इसके अलावा फिरोजपुर रहते देश के प्रसिद्ध हाकी ओलिंपियन परिवार के सदस्य हरमीत सिंह, अजीत सिंह व गगन अजीत सिंह के साथ भी उनकी नजदीकी रिश्तेदारी थी। उनका भी सपना था कि उनके परिवार का कोई सदस्य इन रिश्तेदारों के नक्शे कदम पर चलते हुए तरक्की कर उनके परिवार का नाम रोशन करे। इसी प्रेरणा व उनके हाॅकी के साथ प्रेम ने उन्हें अपने बेटे को हाकी की ऊंचाइयों पर देखने का सपना दिखाया व बेटे ने सच कर दिखाया।

बचपन से ही रुपिंदर काे हाॅकी से थी लग्न

उन्होंने बताया कि हाकी के प्रति प्रेम रुपिंदर को बचपन से ही था, और छह वर्ष की आयु में उन्होंने उसे इस हाकी एकेडमी में प्रशिक्षण दिलवाना शुरू कर दिया। करीब छह वर्ष तक यहां मिले प्रशिक्षण ने उसमें हाकी के किसी मंजे हुए खिलाड़ी के गुण पैदा किए। वर्ष 2002 में उसका चयन चंडीगढ़ स्थित राज्य हाकी अकेडमी में हो गया। इसी दौरान जिला व राज्य स्तर पर अपनी प्रतिभा के बल पर 2006 में उसका चयन पहले राष्ट्रीय हाकी की जूनियर टीम में व वर्ष 2010 में देश की सीनियर टीम के लिए हो गया।


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