झींगा मछली पालकों को घाटे से बचाएगी GADVASU लुधियाना की यह किट, सिर्फ दस मिनट में बीमारी की जांच
लुधियाना स्थित गुरु अंगद देव वेटरनरी एंड एनिमल साइंस यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने झींगा मछली में लगने वाली बीमारी अर्ली मोर्टेलिटी सिंड्रोम (ईएमएस) का पता लगाने वाली नई किट की खोज की है। इससे बीमारी का 10 मिनट में पता लगाया जा सकता है।
लुधियाना [आशा मेहता]। झींगा मछली पालन उद्योग से जुड़े लोगों के लिए राहत की खबर है। लुधियाना स्थित गुरु अंगद देव वेटरनरी एंड एनिमल साइंस यूनिवर्सिटी (Guru Angad Dev Veterinary and Animal Science University GADVASU ) के कालेज ऑफ फिशरीज के वैज्ञानिकों ने चार साल के गहन शोध के बाद झींगा मछली में लगने वाली बीमारी अर्ली मोर्टेलिटी सिंड्रोम (ईएमएस) का पता लगाने वाली नई किट की खोज की है। इस बीमारी से झींगा मछली विकसित होने पहले ही सात से 10 दिनों में ही बड़ी संख्या में मर जाती हैं।
दुनियाभर में इस बीमारी की वजह से झींगा पालन उद्योग को भारी घाटा हो रहा है। इस किट को गडवासू के कालेज आफ फिशरीज के वैज्ञानिक डॉ. नवीन कुमार और उनकी टीम ने तैयार किया है। उनका दावा है कि इस किट के जरिए आठ से दस मिनट में ही झींगा मछली में यह बीमारी पकड़ में आ जाएगी और समय रहते इसके बचाव के लिए कदम उठाए जा सकेंगे।
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वैज्ञानिक द्वारा तैयार की गई किट। जागरण
पंजाब में फाजिल्का, मानसा, मुक्तसर साहिब, बठिंडा व फरीदकोट में झींगा मछली का पालन हो रहा है। 2014 में 0.4 हेक्टेयर क्षेत्र में इसका पालन हो रहा था, जो 2020 में बढ़कर 158 हेक्टेयर हो गया। डॉ. नवीन कहते हैं कि हमने विशेष प्रकार का प्रोटीन (रिकांबिनेंट प्रोटीन) बनाया, जिससे एंटीबाडी विकसित की, जिससे यह किट तैयार की गई। जब ट्रायल किए गए, तो यह काफी प्रभावी पाया गया। डॉ. नवीन ने बताया कि किट में पांच तरह के अलग-अलग साल्यूशन हैं। एक किट मे 10 कैसेट होते हैं और एक कैसेट से चार से छह सैंपल टेस्ट किए जा सकते हैं।
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बीमारी का पता लगाने के लिए तैयार किट। जागरण
डॉ. नवीन कहते हैं कि ईएमएस बीमारी वर्ष 2009 से दुनिया के कई देशों जैसे चीन, वियतनाम, मलेशिया, थाईलैंड, मैक्सिको, यूएसएस में रिपोर्ट हुई थी। यह बीमारी अब तक करीब एक बिलियन यूएस डालर (100 करोड़) का नुकसान कर चुकी है। भारत में भी बड़े स्तर पर कई राज्यों में झींगा उत्पादन हो रहा है। ऐसे केंद्र सरकार के साइंस टेक्नोलाजी विभाग ने यह प्रोजेक्ट दिया था, ताकि बीमारी का समय पर पता लगाया जा सके और नुकसान से बचा जा सके।
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अभी क्या है बचाव का तरीका
डॉ. नवीन कहते हैं कि अभी हम विदेश से ब्रूडस्टाक झींगा (विशिष्ट रोगजनक मुक्त) ले रहे हैं। ब्रूडस्टाक को राजीव गांधी सेंटर फार एक्वाकल्चर में कुछ दिनों तक क्वारंटाइन रखते हैं। जहां टेस्टिंग होती है कि कहीं ब्रूडस्टाक में ईएमएस या कोई अन्य बीमारी तो नहीं है। टेस्टिंग में जब सुनिश्चित हो जाता है कि कोई बीमारी नहीं है, तो झींगा सीड उत्पादन करके मछली पालकों को दिया जाता है।
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