अलोचना से मिलती है सफलता : राजेंद्र मुनि
सएस जैन स्थानक किचलू नगर की प्रार्थना सभा में राजेंद्र मुनि ने कहा मनुष्य तू इस संसार में रह रहा है जीवन यात्राओं में चल रहा है।
संस, लुधियाना : एसएस जैन स्थानक किचलू नगर की प्रार्थना सभा में राजेंद्र मुनि ने कहा, मनुष्य तू इस संसार में रह रहा है, जीवन यात्राओं में चल रहा है। जब तू यात्रा करने निकला, साधु या श्रावक बनकर चला, लेकिन मार्ग में आने वाले शूलों और कंटीले झाड़-झखाड़ों से तुम्हारा यह जीवन क्षीद गया । वर्षभर की यात्रा के बाद आज तुझे कुछ देर के लिए पिछली यात्रा के बारे में सोचना चाहिए। आलोचना करनी चाहिए। कभी माता पिता, पति पत्नी या किसी साथी, पड़ोसी व अन्य किसी प्राणी के साथ लड़ाई झगड़ा या वैमनस्य में हिसा, चोरी, राग, द्वेष का कांटा लग गया हो, मन में कोई पाप चरण का कांटा या दोष लगा हो तो आज शांति से बैठकर सोच। उन कांटों को निकाल और मन को निर्मल बना। सुरेंद्र मुनि ने समझाते हुए कहा कि चाहे आप किसी भी क्षेत्र में रहे, पर इस यात्रा के लिए पूरी तैयारी करें, सावधान बने, जो भूले पहले हो गई, उन्हें यहीं समाप्त कर दें और आगे के लिए उन्हें न दोहराने की दृढ़ प्रतीज्ञा कर लें। इस प्रकार जीवन की उस महान मंजिल व परमात्मा पद को पाने के लिए आगे बढ़ना है और उस परम लक्ष्य को प्राप्त करना है, जो मकसद को हासिल करेगा, उसे जीवन में आनंद, मंगल, सुख शांति और प्रेम की लहरें प्राप्त होगी। वहीं मंगलवार को डॉ. राजेंद्र मुनि ने कहा, विचारशीलता मनुष्य का सहज धर्म व स्वाभाविक प्रवृति है। जो विचारशील नहीं, वह मनुष्य कहलाने का अधिकार नहीं रखता। मन तो दर्पण के समान है। दर्पण को किसी भी दिशा व कोण से रख दीजिए वह अपने समक्ष के दृश्य की प्रतिछवि अपने भीतर सहेज लेगा। विचार विहीन मन की कल्पना नहीं की जा सकती।