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द्वितीय विश्व युद्ध में लापता सूबेदार ढिल्लों के आने की उम्मीद में परिजन

वर्ष 1941 के दूसरे विश्व युद्ध में लापता हुए सूबेदार संत सिंह ढिल्लों का आज भी परिवार को इंतजार है। तत्कालीन अंग्रेज सरकार एवं बाद में भारत सरकार ने उनकी कोई भी निशानी परिवार को उपलब्ध नहीं करवाई है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 16 Mar 2019 06:00 AM (IST)Updated: Sat, 16 Mar 2019 06:00 AM (IST)
द्वितीय विश्व युद्ध में लापता सूबेदार ढिल्लों के आने की उम्मीद में परिजन
द्वितीय विश्व युद्ध में लापता सूबेदार ढिल्लों के आने की उम्मीद में परिजन

धर्मेदर सचदेवा, समराला

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वर्ष 1941 के दूसरे विश्व युद्ध में लापता हुए सूबेदार संत सिंह ढिल्लों का आज भी परिवार को इंतजार है। तत्कालीन अंग्रेज सरकार एवं बाद में भारत सरकार ने उनकी कोई भी निशानी परिवार को उपलब्ध नहीं करवाई है। समराला के निवासी रिटायर्ड हेडमास्टर अमरजीत सिंह ढिल्लों ने बताया कि उन्हें अपने पिता के लौटने का आज भी इंतजार है। इस संबंध में हेडमास्टर अमरजीत ने अपने पुत्रों सुरिंदरपाल सिंह, परमिदर सिंह और जसविदर सिंह ढिल्लों के साथ सेना को कई पत्र भी लिखे हैं। पर अभी तक उनकी कोई निशानी नहीं मिल सकी है।

गौरतलब है कि दूसरे विश्व युद्ध में हरियाणा के लापता हुए सैनिक रोहतक के नौगांव निवासी हरी सिंह भंगाल और दूसरे हिसार के नंगथला निवासी पल्लू राम के इटली की सरकार द्वारा वर्षो बाद उनके परिवार को मिट्टी सौंपने का पता चलते ही ढिल्लों परिवार की उम्मीद भी बढ़ गई है।

सूबेदार संत सिंह के पोते सुरिंदरपाल सिंह ढिल्लों को आज भी यकीन नहीं कि उनके दादा की मौत युद्ध के दौरान हो चुकी है। इंतजार करते-करते सूबेदार ढिल्लों की पत्नी बसंत कौर की 1997 में और उनकी इकलौती बेटी सुरजीत कौर की भी 6 वर्ष पहले पिता के इंतजार में मौत हो चुकी है। अब ढिल्लों परिवार के पास उनकी यादों को ताजा रखने के लिए उनकी कई निशानियां मौजूद हैं। सूबेदार संत सिंह के भाई स्वर्गीय जगनंदन सिंह ढिल्लों ने भी कई पत्र आर्मी मुख्यालय को लिखे थे। यहां से पत्र का जवाब दिया गया कि संत सिंह की लड़ाई मे मौत हो चुकी है, लेकिन आर्मी के सूबेदार संत सिंह ढिल्लों का शव व उनकी कोई निशानी देने में असमर्थता जताई। अंग्रेजी शासकों ने पीड़ित परिवार को मौत की सूचना देकर अपनी तलाश बंद कर दी है, लेकिन संत सिंह ढिल्लों के परिवार वाले इस बात को मानने के लिए आज तक तैयार नहीं हुए। परिवार के पास संत सिंह की कृपाण है मौजूद

इस समय परिवार के पास सूबेदार संत सिंह की कृपाण निशानी के तौर पर मौजूद है। यह सूबेदार ढिल्लों ने अपने पिता फुम्मन सिंह को युद्ध लड़ने के लिए जाते समय अंबाला रेलवे स्टेशन पर सौंपी थी। उस समय सूबेदार ढिल्लों के इकलौते बेटे अमरजीत सिंह ढिल्लों की उम्र करीब तीन वर्ष और बेटी सुरजीत कौर की उम्र सात वर्ष थी। अब पोते सुरिंदरपाल सिंह ढिल्लों और परिवार वालों ने सरकार से मांग की कि उनके दादा सूबेदार संत सिंह ढिल्लों के बारे में बताया जाए व किस हालत में हैं।


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