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लुधियाना में शहीद मेजर भूपेंद्र सिंह की प्रतिमा रोज गार्डन में स्थापित, प्रतिमा व टैंक का तीसरी बार बदला ठिकाना

पुल का निर्माण होने के कारण नगर निगम की ओर से प्रतिमा का स्थान बदला गया है। दरअसल 1965 के युद्ध में मेजर भूपेंद्र सिंह योद्धा के तौर पर सामने आए थे और दुश्मनों को अपने टैंक से मार गिराया था।

By Vipin KumarEdited By: Published: Fri, 25 Sep 2020 08:47 AM (IST)Updated: Fri, 25 Sep 2020 08:47 AM (IST)
लुधियाना में शहीद मेजर भूपेंद्र सिंह की प्रतिमा रोज गार्डन में स्थापित, प्रतिमा व टैंक का तीसरी बार बदला ठिकाना
शहीद मेजर भूपिंदर सिंह की प्रतिमा को हटाने के दौरान काम कर रहे मजदूर। फोटो कुलदीप काला

लुधियाना, [दिलबाग दानिश]। 1965 में भारत-पाकिस्तान के युद्ध में दुश्मनों को लोहे के चने चबाने वाले शहीद मेजर भूपेंद्र सिंह की प्रतिमा और पेंटून टैंक की अब जगह बदलते हुए रोज गार्डन में स्थापित किया गया है। तीसरी बार उनका स्थान बदला गया है। यह टैंक और प्रतिमा इससे पहले सरकारी कॉलेज के बाहर सड़क के किनारे स्थापित थे।

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यहां पर पुल का निर्माण होने के कारण इसे अब तबदील किया गया है। इसके लिए जगह नगर निगम की ओर से दी गई है और इसे स्थापित भी निगम ही कर रहा है। दरअसल, 1965 के युद्ध में मेजर भूपेंद्र सिंह योद्धा के तौर पर सामने आए थे और दुश्मनों को अपने टैंक से मार गिराया था।

सरकारी  कन्या कॉलेज  भारत नगर के पास लगे शहीद मेजर भूपिंदर सिंह  की प्रतिमा हटाए जाने के बाद पड़ा मलबा और मौके पर पड़ा पेटून टैंक। यह तस्वीर 21 सितंबर को खींचा गया। कुलदीप काला 

सबसे पहले जालंधर बाईपास पर लगाई थी प्रतिमा
शहीद भूपेंद्र की प्रतिमा और पेंटून टैंक जालंधर बाईपास पर सबसे पहले स्थापित किया गया था। नेशनल हाईवे को चौड़ा करने के दौरान इसे भारत नगर चौक के बीच में स्थापित कर दिया गया। इसका नवीनीकरण करने के दौरान वहां से बदलकर यहां से कुछ ही दूर स्थित सरकारी कॉलेज के बाहर लगा दिया गया था। अब यहां पर पुल का निर्माण किया जाना है तो इसे यहां से हटाकर रोज गार्डन में स्थापित कर दिया गया है।

नेहरू  रोज गार्डन के बाहर स्थापित किए गए शहीद मेजर भूपिंदर सिंह की प्रतिमा और पेटून टैंक। यह तस्वीर 24 सितंबर की है। कुलदीप काला 

1965 की जंग में 65 टैंक बर्बाद किए थे मेजर ने
10 सितंबर 1965 को पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध के दौरान मेजर भूपेंद्र ङ्क्षसह वहां पर दुश्मन का सामना करने वाली बटालियन के मेजर थे और उनकी ओर से बहादुरी से दुश्मन का सामना किया गया था। इस दौरान उन्होंने दुश्मन के 65 टैंक नष्ट कर दिए थे और खुद भी घायल हुए थे। उन्हें इलाज के लिए मिलिट्री अस्पताल में दाखिल करवाया गया था। यहां पर 3 अक्टूबर 1965 को वह वीरगति को प्राप्त हुए थे। अब उनकी शहादत पर हर साल प्रतिमा पर फूलमालाएं पहनाकर उन्हें याद किया जाता है।

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