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संक्रमित रिश्ते, मोक्ष के लिए पराये बने फरिश्ते

कोरोना काल में अंतिम विदाई के दौरान जब अपने ही अपनों का साथ छोड़ रहे हैं।

By JagranEdited By: Published: Fri, 31 Jul 2020 05:15 AM (IST)Updated: Fri, 31 Jul 2020 05:15 AM (IST)
संक्रमित रिश्ते, मोक्ष के लिए पराये बने फरिश्ते
संक्रमित रिश्ते, मोक्ष के लिए पराये बने फरिश्ते

दिलबाग दानिश, लुधियाना कोरोना काल में अंतिम विदाई के दौरान जब अपने ही अपनों का साथ छोड़ रहे हैं। ऐसे समय में शहर के छह युवा वॉलंटियर अपनी जान की परवाह किए बिना कोरोना पॉजिटिव शवों का अंतिम संस्कार करने में लगे हैं। ये वालंटियर हैं रिशी नगर निवासी मनदीप केशव, प्रतीक वर्मा, प्रिंस कपूर, चरणजीत सिंह, गुरप्रीत सिंह, गोपाल सिंह और अमरजीत सिंह। अप्रैल से इस सेवा में जुटे इन सभी वालंटियरों का कहना है कि इस सेवा कार्य को करने के दौरान उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। अपनों का गुस्सा भी झेलना पड़ा। लेकिन वह अपने लिए गए फैसले पर अडिग रहे और लगातार सेवा करते रहे। सभी का कहना था कि वह आखिरी दम तक सेवा निभाते रहेंगे, चाहे उनके परिवार भी उनका साथ छोड़ दें।

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सभी ट्रैफिक मार्शल के तौर पर पुलिस के साथ जुड़े थे। इस दौरान लंगर बांटते हुए सभी दोस्त बने और उन्हें ये नेक काम करने का विचार आया। सभी अब तक ढोलेवाल के रामगढि़या श्मशानघाट में 70 शवों का संस्कार कर चुके हैं। उनका कहना था कि अगर किसी शव का अंतिम संस्कार करने उनका रिश्तेदार भी आता है तो वे उसे केवल शव को हाथ लगाने को कहते हैं। बाकी सारा किरया क्रम वह खुद ही करते हैं। इसलिए आया ये सेवा करने का ख्याल

अपनों ने ठुकराया तो युवाओं ने किया था महिला का संस्कार

प्रतीक वर्मा बताते हैं कि इसी साल 26 जनवरी को जिला प्रशासन ने ट्रैफिक मार्शल योजना लांच की गई थी। वह पुलिस का साथ देने के लिए जुड़े थे और शहर के चौराहों पर ट्रैफिक व्यवस्था करने में सहयोग दे रहे थे। मगर इसी दौरान कोरोना जैसी घातक बीमारी आ गई। पुलिस विभाग ने लंगर और राशन बांटना शुरू किया तो वह इसके लिए सेवा करने लगे। एक दिन इस खतरनाक बीमारी के कारण मौत का ग्रास बनी महिला के परिवार वालों ने उसका संस्कार करने से मना कर दिया तो वे आगे आए और उसका अंतिम संस्कार किया। इसके बाद ये सिलसिला अभी तक जारी है। बुरा दौर भी झेला

तीन की गई नौकरी फिर भी कर रहे सेवा

वालंटियर मनदीप केशव हैबावाल में रेस्टोरेंट चलाते हैं, प्रतीक वर्मा का मेडिकल हॉल है, गोपाल सिंह एडवोकेट हैं। वहीं, वालंटियर प्रिस कपूर, चरणजीत सिंह और गुरप्रीत सिंह सैनी जोकि प्राइवेट कंपनी में काम करते थे, ने कहा कि उनके इस कारण के कारण कंपनियों ने उन्हें काम से निकाल दिया। वह अब इसी सेवा में ही जुटे हुए हैं। मनदीप केशव ने प्रशासन से मांग की गई है कि वह काम से निकाले गए तीनों युवकों को दोबारा काम दिलाने में मदद करें। अपनों की नाराजगी भी झेली

रिश्तेदार देते हैं नीच काम करने के ताने

गोपाल सिंह के अनुसार उनकी इस सेवा से उनके रिश्तेदार और आस पड़ोस वाले उन्हें ताने मारते हैं। कई लोगों ने तो उनसे यह कहते हुए दूरी बना ली है कि वह नीच काम करते हैं और इससे उन्हें भी बीमारी हो सकती है। जबकि इन सभी को उनके अपने परिवार से पूरा सहयोग मिल रहा है। यही नहीं उनका हर सप्ताह टेस्ट भी होता है और वह अब तक कोरोना नेगेटिव पाए गए हैं।

चाहे कुछ भी हो, मरते दम तक जारी रहेगी सेवा

भले इस कार्य को लेकर सब कुछ लुट गया तब भी समाज सेवा करता रहूंगा। इससे मुझे आथाह शक्ति मिलती है और यह सेवा मरते दम तक करता रहूंगा।

मनदीप केशव। जारी रहेगी सेवा, लोगों का प्यार मिलता रहे

यह सेवा किसी भाग्यशाली व्यक्ति को ही मिलती है और यह आगे भी जारी रहेगी। बस लोगों का प्यार मिलता रहे, यही हमारी आगे बढ़ने का टॉनिक है।

प्रतीक वर्मा। नौकरी की चिता नहीं, सेवा करता रहूंगा

सेवा करते हुए नौकरी चली गई है, इसका गम जरूर है मगर इससे जिदगी थोड़ा न रुक गई है। मुझे इसकी चिता नहीं है, जब तक सांस है तो सेवा करता रहूंगा।

प्रिस कपूर। जब संस्कार से लोग पीछे हटते हैं तो दुख होता है

कई देखने को मिलता है कि लोग कोरोना पॉजिटिव शव के संस्कार के दौरान कार से ही नहीं उतरते हैं, मगर उन्हें यह सेवा करके मन को शांति मिलती है, इसीलिए सेवा करता रहूंगा।

चरणजीत सिंह यहां आकर पता चला दुनिया के रंग

मैं इससे पहले कभी इस शशानघाट में नहीं आया था, अब यहां आकर पता चला है कि दुनिया के कितने रंग हैं, इन ढाई माह में दुनिया को काफी नजदीक से देखा है, अब यह सेवा जारी रहेगी।

गुरप्रीत सिंह। कोरोना ने जीने का नया ढंग सिखाया

कोरोना बीमारी ने हमें जीने का नया ढंग सिखाया है, बीमारी से मरे लोगों को रिश्तेदारों ने दुत्कार दिया और हमारी सेवा से रिश्तेदारों ने दूरी बना ली। यह समझ लिया है कि सब मोह माया है।

एडवोकेट गोपाल सिंह यही लक्ष्य, लावारिस नहीं रहेगा कोई शव

अब जिदगी का लक्ष्य यही है कि कोई भी व्यक्ति लावारिस नहीं रहेगा। हम सभी दोस्त ऐसे शवों का संस्कार करते रहेंगे। भले इसमें कोई भी नुकसान क्यों न उठाना पड़े।

अमरजीत सिंह।


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