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शंकराचार्य माधवाश्रम महाराज ने लुधियाना को अध्यात्म के क्षेत्र में दिलाई पहचान; दिया गंगा, गाय, चोटी और बेटी का मंत्र

माधवाश्रम जी महाराज का जन्म उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के बेंजी गांव में हुआ। संन्यास लेने के बाद उन्होंने लुधियाना को अपनी तपस्थली बनाया। उन्होंने लुधियाना में गोशाला का निर्माण करवाया और 70 के दशक में संस्कृत महाविद्यालय स्थापित किया।

By Pankaj DwivediEdited By: Published: Tue, 25 Jan 2022 01:31 PM (IST)Updated: Tue, 25 Jan 2022 01:31 PM (IST)
शंकराचार्य माधवाश्रम महाराज ने लुधियाना को अध्यात्म के क्षेत्र में दिलाई पहचान; दिया गंगा, गाय, चोटी और बेटी का मंत्र
लुधियाना को सनातन संस्कृति के क्षेत्र में पहचान दिलाने में शंकराचार्य माधवाश्रम महाराज का विशेष योगदान है।

राजेश भट्ट, लुधियाना। महानगर की पहचान औद्योगिक नगर के तौर पर पूरे विश्व में है लेकिन इसे अध्यात्म व सनातन संस्कृति के क्षेत्र में पहचान दिलाने में शंकराचार्य माधवाश्रम महाराज का विशेष योगदान है। उन्होंने अपने संन्यास काल का अधिकतम समय लुधियाना में बिताया और सनातन संस्कृति से लोगों को जोड़ने में अहम भूमिका निभाई। लुधियाना से तपस्या शुरू करने वाले माधवाश्रम महाराज ने सनातन धर्म के शीर्ष पद शंकराचार्य को धारण किया। दंडी स्वामी जी महाराज की याद में उन्होंने 70 के दशक में शाहरपुर रोड पर संस्कृत महाविद्यालय स्थापित किया और बाद में इसे हैबोवाल में शिफ्ट कर दिया। उनका खोला गया यह संस्कृत विद्यालय आज भी संस्कृत भाषा और सनातन संस्कृति के प्रचार में अहम योगदान निभा रहा है। माधवाश्रम जी महाराज ने गो रक्षा के आंदोलन में भी अहम भूमिका निभाई और लुधियाना में गोशाला का निर्माण करवाया। उनके शिष्य स्वामी देवव्रत अब गोशाला व संस्कृत विद्यालय का प्रबंधन देख रहे हैं।

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माधवाश्रम जी महाराज का जन्म उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के बेंजी गांव में हुआ। संन्यास लेने के बाद उन्होंने लुधियाना को अपनी तपस्थली बनाया और दंडीस्वामी तपोवन में करपात्री जी महाराज के सानिध्य में तपस्या की। धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन कर महारत हासिल की। गो रक्षा आंदोलन के साथ उन्होंने संस्कृत विद्यालय स्थापित किया और आज भी इस विद्यालय में गुरु शिष्य परंपरा का निर्वहन किया जा रहा है।

इस विद्यालय से पढ़ने वाले विद्यार्थी देश विदेश में भागवत कथा करके सनातन संस्कृति का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं और लुधियाना को विशेष पहचान दिला रहे हैं। आचार्य त्रिलोचन, आचार्य बृजमोहन सेमवाल, डा. अनिल भट्ट भागवत कथा के जरिए देश के अलग-अलग कोने में अपना विशेष स्थान स्थापित कर चुके हैं। उन्होंने सनातन संस्कृति से लोगों को जोड़ने में भूमिका निभाई।

उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग में अस्पताल का निर्माण करवाया

शंकराचार्य माधवाश्रम जी महाराज ने उत्तराखंड के रूद्रप्रयाग जिले में एक बड़े अस्पताल का निर्माण करवाया। यहां पर लोगों का आधुनिक तरीके से उपचार किया जा रहा है। दो साल पहले शंकराचार्य माधवाश्रम जी का देहावसन भी रुद्रप्रयाग जिले के कोटेश्वर मंदिर में हुआ।

चार चीजों पर जोर देते थे शंकराचार्य

शंकराचार्य माधवाश्रम महाराज अपने शिष्यों को सनातन संस्कृति से जोड़ने पर विशेष जोर देते थे। इसके लिए वह शिष्यों को चार सूत्रीय मंत्र देते थे। गंगा, गाय, चोटी और बेटी। वह कहते थे कि गंगा को हमेशा स्वच्छ रखें, गाय की सेवा करें। हर सनातनी के सिर पर चोटी जरूर हो और बेटी को देवी का रूप माना जाए। वो जब भी कहीं धार्मिक समागम में जाते थे तो इन चार मंत्रों को जरूर कहते थे।


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