गुरु से जग रुठे तो ठीक है, गुरु रुठे तो नहीं डोर : स्वामी वेद भारती
गुरु से जग रुठे तो ठीक है गुरु रुठे तो नहीं डोर किसी भक्त के मुख से गुरु का नाम निकले तो कोई बड़ी बात नहीं लेकिन अगर गुरु के मुख से किसी भक्त का नाम निकले तो भक्त के लिए इससे बड़ी कोई उपलब्धि नहीं।
संस, लुधियाना : गुरु से जग रुठे तो ठीक है, गुरु रुठे तो नहीं डोर, किसी भक्त के मुख से गुरु का नाम निकले तो कोई बड़ी बात नहीं, लेकिन अगर गुरु के मुख से किसी भक्त का नाम निकले तो भक्त के लिए इससे बड़ी कोई उपलब्धि नहीं। उक्त संदेश उत्तम देवी साधु आश्रम में विराजमान महामंडलेश्वर स्वामी वेद भारती महाराज ने आए भक्तों को दिया। उन्होंने कहा कि अरे भोले प्राणी। जरा विचार कर कि तेरे जीवन के ये सुनहरे दिन ज्ञान का सम्यक उदय नहीं होता है और वृद्धावस्था आ जाने पर फिर धर्माराधण की शक्ति नहीं रहती। इससे स्पष्ट है कि शैशव और वृद्धत्व के बीच का समय ही त्याग, तपस्या एवं धर्माराधण की अन्य क्रियाओं के लिए उपयुक्त होता है। इस काल में ही व्यक्ति इच्छानुसार शुभ कर्मों का संचय कर सकता है। इनके चले जाने पर पहले तो वृद्धावस्था आएगी या नहीं इसका क्या पता है और अगर आ भी गई तो उस स्थिति में क्या धर्म क्रियाएं या साधना करना संभव होगा? बुद्धि और विवेक से हीन मनुष्य अपने शरीर के प्रति रहे हुए मोह को कभी भी नहीं छोड़ता। संसार के अंसख्य जीवों को सदा मौत के मुंह में जाते देखकर भी वह अपने शरीर को इस प्रकार रखता है, जैसे यह सदा ही स्थिर रहने वाला है। बालक जिस समय जन्म लेता है, उसी क्षण से उसकी आयु घटती जाती है और युवावस्था के पश्चात तो शरीर क्षीण होता ही चला जाता है, कितु इस बीच में भी काल तो सदा ही मस्तक पर मंडराता रहता है। बचपन, जवानी या बुढ़ापे में जब भी दाव लगता है, झपट्टा मारकर जीव को ले जाता।