Move to Jagran APP

मत्‍तेवाड़ा जंगल पर पैदा संकट पड़ेगा भारी, पंजाब के 'फेफड़े' को संक्रमण का खतरा

पंजाब के लुधियाना में एक हजार एकड़ में इंडस्ट्रियल पार्क बनेगा। इससे पंजाब के फेफड़े यानि मत्‍तेवाड़ा जंगल पर खतरा है। यह जंगल 2300 एकड़ में फैला हुआ है।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Thu, 23 Jul 2020 12:10 PM (IST)Updated: Thu, 23 Jul 2020 02:33 PM (IST)
मत्‍तेवाड़ा जंगल पर पैदा संकट पड़ेगा भारी, पंजाब के 'फेफड़े' को संक्रमण का खतरा
मत्‍तेवाड़ा जंगल पर पैदा संकट पड़ेगा भारी, पंजाब के 'फेफड़े' को संक्रमण का खतरा

इन्द्रप्रीत सिंह, मत्तेवाड़ा (लुधियाना)। पंजाब के 'फेफड़ों' को संक्रमण का खतरा पैदा हो गया है। यह बात सुनने में कुछ अजीब सी लगती है, लेकिन पंजाब के सबसे प्रदूषित शहर लुधियाना को अगर अब तक किसी ने सांस लेने योग्य बना रखा है तो वह है इसका निकटवर्ती मत्तेवाड़ा जंगल। इसे पंजाब के फेफड़े कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। अब इन फेफड़ों को इंडस्ट्री से होने वाले प्रदूषण का खतरा है, इस जंगल के लिए किसी कोरोना संक्रमण से कम नहीं होगा। इस जंगल को बचाने के लिए मुहिम शुरू हो गई है।

loksabha election banner

जानें मत्तेवाड़ा का मर्म :एक हजार एकड़ का इंडस्ट्रियल पार्क बनेगा 2300 एकड़ के जंगल से सटी जमीन पर

इस जंगल के साथ सटी 955.60 एकड़ जमीन पर राज्य सरकार ने इंडस्ट्रियल पार्क विकसित करने की योजना तैयार की है। इसे 8 जुलाई को ही कैबिनेट में मंजूरी दी है। पर्यावरणविदों को आशंका है कि सरकार के इस कदम से जंगल का बचना नामुमकिन है। इंडस्ट्री के प्रदूषण ने पहले लुधियाना के बीच से निकलने वाले बुड्ढा दरिया को नाले में बदल दिया है। अब यहां का वेस्ट पानी मत्तेवाड़ा जंगल के साथ बह रही सतलुज में बहाया जाएगा। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने शनिवार को अपने फेसबुक लाइव प्रोग्राम में पर्यावरणविदों की इन्हीं आशंकाओं को निर्मूल बताते हुए कहा कि मत्तेवाड़ा जंगल की एक इंच जमीन भी नहीं ली जाएगी।

ऑनलाइन अभियान शुरू

इस जंगल को बचाने के लिए लोगों ने ऑनलाइन याचिका के माध्यम से जंगल को बचाने का अभियान शुरू कर दिया है।  पर्यावरणविद रणजोध ङ्क्षसह इसकी अगुवाई कर रहे हैं। अब 1200 से ज्यादा लोग इस पर ऑनलाइन हस्ताक्षर कर सके है।

अजीब सी खुशबू है यहां की फिजाओं में

क्या इस जंगल में रहने वाले जीव जंतु, प्राकृतिक वनस्पति इस प्रदूषण को झेल पाएगी। इनके कारण ही इस क्षेत्र की आबोहवा में एक अजीब सी खुशबू है। लुधियाना की प्रदूषण से भरी आबोहवा से यहीं की प्रकृति सांस लेने भर के लिए ऑक्सीजन देती है। आसपास के खेत भी इस वातावरण का फायदा लेते हैं। इन्हीं के कारण इस क्षेत्र में भूजल स्तर आज भी ऊंचा है। यहां की शुद्ध हवा व पानी में जब उद्योगों के केमिकल वाला पानी और धुआं मिलेगा तो निश्चित तौर पर यहां की आबोहवा भी शहर जैसी हो जाएगी।

यहां कई तरह की दुर्लभ वनस्पति है, जो नष्ट हो जाएगी। यह सैकड़ों पशु-पक्षियों का आवास है। उद्योगों के प्रदूषण व शोरगुल से इन पर भी दुष्प्रभाव पड़ेगा। संभव है कि ये यहां से कहीं और पलायन कर जाएं। लोगों व गाडिय़ों की आवाजाही बढऩे से यहां की शांति तो भंग होगी ही मानव जनित कचरा भी कई गुणा बढ़ जाएगा। उद्योगों के केमिकल से जमीन का प्रदूषण स्तर बढऩे से भूजल भी प्रभावित होगा। केमिकलयुक्त पानी के सतलुज में गिरने से नदी में पल रहे विभिन्न जीवों को खतरा पैदा होगा। साथ ही कृषि की उत्पादकता भी प्रभावित होगी। इन तमाम बातों को देखते हुए लोगों की चिंता जायज लगती है। 

सरकार की योजना

- 955.6 एकड़ जमीन पर बनेगा इंडस्ट्रियल पार्क।

- 300 एकड़ आलू फार्म की जमीन व २०६ एकड़ पशुपालन विभाग के सीड फार्म की जमीन को मिलाकर इसे विकसित किया जाएगा।

- 416.1 एकड़ जमीन गांव सेखेवाला ग्राम पंचायत की है।

- 70 परिवार खेती कर रहे हैं अभी इस जमीन पर। इस साल सरकार ने इसको ठेके पर देने के लिए बोली नहीं करवाई है।

- 27.1 एकड़ ग्राम पंचायत सलेमपुर (आलू बीज फार्म) और २०.३ एकड़ ग्राम पंचायत सैलकलां की है।

-2300 एकड़ में फैला है मत्तेवाड़ा जंगल।

- छह लेन वाली सड़क बनाई जाएगी सतलुज नदी के साथ।

-1964 में गुरदासपुर व अमृतसर से आए लोगों ने आबाद की थी जमीन

-----

' इंडस्ट्री लगी तो जंगल को मरने से कोई नहीं बचा पाएगा'

'' मत्तेवाड़ा जंगल की एक इंच जमीन सरकार ले भी नहीं सकती, क्योंकि यह वन संरक्षित है। उसे लेने से पहले भारत सरकार की मंजूरी की जरूरत है। हमारी आशंका जंगल की जमीन को लेकर नहीं, इस जमीन के साथ लगाई जाने वाली इंडस्ट्री को लेकर है। सतलुज नदी के किनारे पर चार हजार एकड़ में फैले जंगल के साथ लगी 995 एकड़ जमीन पर टेक्सटाइल या डाइंग जैसे यूनिट लगाए जाएंगे तो जंगल को मरने से कोई नहीं बचा पाएगा। क्या ताजपुर रोड पर लगी इंडस्ट्री के बाद बुड्ढा नाला दरिया को नाले में बदलने का उदाहरण हमारे सामने नहीं है। बुड्ढा दरिया का पानी इतना साफ था कि हम यहां नहाया करते थे, आज यह गंदा नाला बन गया है, जो सतलुज नदी में गिरता है। इसमें मिले रासायनिक तत्वों के चलते ही पूरे मालवा को कैंसर की चपेट में ले लिया है। अब सरकार और क्या चाहती है?

                              - रणजोध सिंह, पर्यावरणविद् (रणजोध सिंह इस जंगल को बचाने की मुहिम में जुटे हैं।)


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.