मन की गांठ खोले बिना धर्म का संचार नहीं हो सकता : राजेंद्र मुनि
एसएस जैन स्थानक किचलू नगर प्रवर्तक राजेंद्र मुनि व सुरेंद्र मुनि सुखसाता विराजमान है।
संस, लुधियाना :एसएस जैन स्थानक किचलू नगर प्रवर्तक राजेंद्र मुनि व सुरेंद्र मुनि सुखसाता विराजमान है। सभा में गुरुदेव राजेंद्र मुनि ने कहा मन और आत्मा में जब तक गांठ लगी है तब तक धर्म का संचार नहीं हो सकता। इसलिए भगवान महावीर स्वामी ने कहा कि वह आराधक भी नहीं हो सकता। जो कषाय का, क्रोध का उपशम नहीं करता, वह धर्म का आराधक नहीं है। और जो क्रोध करता है ,उसकी आराधना नहीं होती जो क्रोध आदि का उपशम करता है, खमत-खमाणा करता है वही आराधक होता। सुरेंद्र मुनि ने कहा कि कलह हो गया हो, किसी को कटुवचन कह दिया हो। किसी के दिल को ठेस पहुंचाई हो तो उसी समय उसमें क्षमाचायना करनी चाहिए, क्षमा मांगनी चाहिए और जो क्षमा मांगता है, उसे क्षमा देनी चाहिए। स्वयं को शान्त होना चाहिए और प्रतिपक्षी सामने खड़ा है। उसे भी उपशान्त होने का अवसर देना चाहिए, क्योंकि जो उपशान्त होता है उसकी ही धर्माराधना सफल होती है, जो उपशान्त नहीं होता, उसकी सब धर्माराधना व्यर्थ जाती है। क्षमा दान का आध्यात्मिक जीवन में तो बहुत अधिक महत्व है कि व्यावहारिक जीवन में भी बहुत महत्व है। जब तक क्षमा दान नहीं दिया जाता, हृदय की गांठ नहीं खुलती। भक्ति करते-करते एक दिन भक्त ही भगवान बन सकता है : रमेश मुनि
लुधियाना : एसएस जैन स्थानक 39 सेक्टर में मुनि मायाराम परंपरा के संघशास्ता श्री राम कृष्ण म., राष्ट्र संत आचार्य प्रवर श्री सुभद्र मुनि म. के आज्ञानुवर्ति रमेश मुनि, मुकेश मुनि के सानिध्य में तरुण तपस्वी मुदित जैन म. का चातुर्मास काल से चल रही आयम्बिल तप आराधना का 37वां दिन हो चुका है। अभी उनकी आयम्बिल तप साधना की कड़ी निरंतर आगे बढ़ रही है।
जैन स्थानक भवन में आयोजित प्रार्थना सभा में रमेश मुनि म. ने आज भक्ताम्वर स्त्रोत का संपूर्ण जाप प्रारंभ हुआ। भक्ति के महत्व का वर्णन करते हुए मुकेश मुनि ने कहा कि भक्ति करते-करते एक दिन भक्त ही भगवान बन सकता है। भक्ति में ऐसी शक्ति विद्यमान है। सेवा और भक्ति से ही हनुमान जगत पूजनीय बन जाते हैं। महासती सीता ने भक्ति के बल ही अग्नि को भी पानी के कुंड के रूप में बदला था, तो सति सीता ने सर्प के फूल की माला बना डाला था। भक्ति के महत्व के बारे में प्रकाश डालते हुए आगे कहा धर्म ऋषियों ने राजा भोज देव के कान भर दिए। तो राजा ने आचार्य मानतुंग से कहा-अगर आप के धर्म में आपकी साधना में शक्ति है तो बिना चाबी या किसी औजार के प्रयोग किए बिना इन 48 तालों से मुक्त हो जाए।