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कूड़ा बीनने वाले हाथों में किताब थमा संवारी जिंदगी, खुद का काम छोड़ बांट रहीं ज्ञान Ludhiana News

कुलविंदर कौर बताती हैं कि इस वक्त उनकी अकादमी में नर्सरी से तीसरी कक्षा तक 85 बच्चे पढ़ रहे हैं। जो स्लम बस्तियों में रहते हैं। सभी बच्चों को निशुल्क शिक्षा दी जा रही है।

By Sat PaulEdited By: Published: Thu, 03 Oct 2019 10:48 AM (IST)Updated: Thu, 03 Oct 2019 10:48 AM (IST)
कूड़ा बीनने वाले हाथों में किताब थमा संवारी जिंदगी, खुद का काम छोड़ बांट रहीं ज्ञान Ludhiana News
कूड़ा बीनने वाले हाथों में किताब थमा संवारी जिंदगी, खुद का काम छोड़ बांट रहीं ज्ञान Ludhiana News

लुधियाना, [आशा मेहता]। शिक्षा के व्यवसायीकरण के बीच और प्रतिस्पर्धा के इस दौरे में बेहतरीन करियर और सुख सुविधाओं की चाह रखते हैं। लेकिन इसके विपरीत कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो जिंदगी को बिलकुल अलग नजरिए से देखते हैं और दूसरों के लिए जीते हैं। ऐसी ही एक शख्सियत हैं, पंजाबी लेखिका व गांव भोरा निवासी कुलविंदर कौर मिन्हास। जिन्होंने ऐसे बच्चों को शिक्षित करने का बीड़ा उठा रखा है, जो कभी स्कूल नहीं गए। जो सिर्फ भूख मिटाने के लिए सड़कों के किनारे कूड़ा बीनने या भीख मांगने को मजबूर होते हैं। कुलविंदर कौर पिछले छह सालों से ऐसे हाथों में किताब थमा कर उनकी जिंदगी संवार रही है।

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बच्चों को कूड़ा बीनते देखा तो करियर छोड़, खोली अकादमी

कुलविंदर कौर मिन्हास के समर्पण का इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि उन्होंने गरीब बच्चों को शिक्षित करने के लिए अपना शानदार करियर तक छोड़ दिया। बीएड, एमए इंगलिश, एमए पंजाबी, पंजाबी में पीएचडी तक उच्च शिक्षा प्राप्त कुलविंदर मिन्हास करीब 18 वर्षों तक सरगोधा नेशनल पब्लिक सीसे स्कूल में पढ़ा चुकी है। अकाल सहाय कांवेंट स्कूल में दो साल तक प्रिंसिपल भी रही। इसके बाद लेखन के क्षेत्र में कदम रखा। वे अलग-अलग विषयों पर 17 किताबें लिख चुकी हैं। इनकी जिंदगी बड़े आराम से बीत रही थी।

वर्ष 2013 में एक दिन वह दाना मंडी के पास से गुजर रही थीं। इस दौरान देखा कि सात आठ की उम्र के चार पांच बच्चे पीठ पर बोरी रखकर कचरे के ढेर से पॉलीथिन, प्लास्टिक की बोतलें व अन्य सामान बीन रहे थे। कुलविंदर कहती हैं कि बच्चों की हाथों में किताब की जगह कूड़ा और पीठ पर स्कूल बैग की जगह कचरे से भरी बोरी देखकर उनकी आंखे भर आईं। लेकिन पूरे दिन वह उन बच्चों के बारे में सोचती रहीं। अगली सुबह उठीं तो उन्होंने प्रण लिया कि वह गरीब बच्चों के लिए स्कूल खोलेंगी। उन्होंने चार साल तक दाना मंडी में झुग्गियों के बीच स्कूल खोलकर बच्चों को पढ़ाया। इसके बाद जब मंडी बोर्ड ने उनका स्कूल बंद करवा दिया तो बच्चों को शिक्षित करने के लिए गांव भोरा में ज्ञान अंजन अकादमी खोली।

अकादमी में इस समय नि:शुल्क पढ़ रहे हैं अभी 85 बच्चे

कुलविंदर कौर बताती हैं कि इस वक्त उनकी अकादमी में नर्सरी से तीसरी कक्षा तक 85 बच्चे पढ़ रहे हैं। जो स्लम बस्तियों में रहते हैं। सभी बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा दी जा रही है। किसी से फीस नहीं ली जाती। बच्चों को यूनिफार्म, कापी, किताब, बैग व दूसरी पाठ्य सामग्री दी जाती है। जिससे कि अभिभावकों पर आथिक बोझ न पड़े। वहीं बच्चे रोज स्कूल पढऩे के लिए आते रहें, इसके लिए उन्हें फल, बिस्कुट आदि देती हैं। कुलविंदर बताती हैं कि वह खुद तो इन बच्चों को पढ़ाती हैं, इसके साथ ही एक टीचर भी रखी हैं।

आलोचना का भी करना पड़ता है सामना

कुलविंदर कहती हैं कि अगर कोई इंसान समाज के लिए निस्वार्थ कार्य करता है, तभी कुछ लोग आलोचना करने से बाज नहीं आते। उन पर भी संकीर्ण मानसिकता वाले लोग सवाल उठाते हैं। कहते हैं कि आप समाज सेवा कर रहे हो, कुछ तो फायदा होता होगा। बिना फायदा कोई झुग्गी-झोपड़ी वाले बच्चों को क्यों पढ़ाएगा। इस तरह की बातें करने वाले लोगों को मेरा एक ही जवाब होता है कि फायदा तो बहुत होता है। निस्वार्थ होकर समाज के लिए कुछ करने से उन्हें मानसिक शांति और आनंद की अनुभूति होती है। वे अपनी आत्मा व ईश्वर से जुड़ा हुआ महसूस करती हैं।

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