नशे अाैर अपराधाें पर लगेगी लगाम, लुधियाना सेंट्रल जेल में ई-पर्स योजना से Online Payment करेंगे कैदी
जेलाें में नशीले पदार्थ मोबाइल व प्रतिबंधित वस्तुओं की उपलब्धता पर अब रोक लग सकेगी। इसका कारण यह है कि पुलिस ने किरकिरी के बाद बड़ा फैसला किया है।
लुधियाना, [राजन कैंथ]। लुधियाना सेंट्रल जेल और ब्रोस्टल जेलों में कैदियों के लिए ई-पर्स की सुविधा शुरू होने से जेल प्रबंधन व अधिकारी राहत में हैं। कारण इससे जेल में प्रतिबंधित नशा, मोबाइल व अन्य आपत्तिजनक सामान की उपलब्धता को रोकने में मदद मिलेगी।
पंजाब जेल विभाग ने यह सुविधा जुलाई अंत में सुविधा शुरू की है। इसके तहत जेल में बंद कैदियों के परिवार उन्हें ऑनलाइन पैसा भेज सकते हैं। इस योजना में प्रत्येक कैदी को स्मार्ट कार्ड और उसका पिन नंबर दिया जाता है। उस पिन का उपयोग करके कैदियों के घरवाले उन्हें पैसे ट्रांसफर कर सकते हैं।
इन पैसों का उपयोग कैदी टेलीफोन कॉल करने तथा कंटीन से सामान खरीदने के लिए कर सकते हैं। वैश्विक महामारी के मद्देनजर कैदियों, हवालातियों व उनके परिजनों को सुरक्षित रखने के लिए कैशलेस प्रणाली को शुरू किया गया। इसके जरिये जेल अधिकारियों की नजर कैदियों को मिलने वाले पैसे पर भी रहेगी।
जेल में शुरू हुई है ई-पर्स योजना
लुधियाना सेंट्रल जेल के सुपरिंटेंडेंट राजीव कुमार अरोड़ा ने कहा जेल में आने वाले हर कैदी से 10 लोगों की सूची ली जाती है। सूची वाले लोग ही उससे मिल सकते हैं और उन्हें ही कॉल कर सकता है। जेल में शुरू हुई ई-पर्स योजना के तहत कैदियों को सूची में शामिल लोग ही पैसे ट्रांसफर कर सकेंगे। खास बात है कि हर सप्ताह अधिकतम ढाई हजार रुपये ही ट्रांसफर किए जा सकते हैं। इसके लिए कैदियों के घरवालों को जेल की वेबसाइट पर जाना होगा। कैदी को जमानत मिलने पर जेल प्रबंधन उसके अकाउंट में बची हुई राशि का चेक बनाकर उन्हें दे देगा।
प्रतिबंधित सामान नहीं खरीदा जा सकेगा
इसी तरह लुधियाना ब्रोस्टल जेल सुपरिंटेंडेंट कुलवंत सिंह ने कहा कि अब कैदियों के पास उनके रिश्तेदारों अथवा जानकारों द्वारा भेजा गया वास्तविक पैसा ही होगा। उनके पास स्मार्ट कार्ड होगा, जिसे स्वाइप करके वे जेल कंटीन से सामान खरीद सकते हैं। अब इस माध्यम से प्रतिबंधित सामान तो खरीदा नहीं जा सकता। यह एक प्रभावी प्रणाली है, जिसका आने वाले दिनों में बेहतर प्रमाण देखने का मिलेगा।
पहले चलता था कूपन सिस्टम
इससे पहले जेल में लेन-देन के लिए कूपन सिस्टम चलता था। कैदियों को करंसी के बदले में कूपन दिया जाता था। इससे वो कैंटीन से सामान खरीदने के अलावा फोन कॉल कर सकते थे। मगर जेल में बंद कुख्यात तस्करों ने उन कूपनों को भी कारोबार का माध्यम बना डाला। वह कूपनों पर ही नशा बेचने लगे। इसके चलते जेल में तस्करी पर लगाम लगाना मुश्किल साबित हो रहा था। इसी को देखते हुए ये योजना बनाई गई।