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दूध के कारोबार से बनाई अलग पहचान, 2300 से अधिक परिवारों को मिला रोजगार

अकेले लुधियाना जिले में 39 लाख लीटर दुग्ध की सहभागिता है। जिसमें 37.5 प्रतिशत निजी मिल्क प्लांट 18 प्रतिशत सहकारी मिल्क प्लांट और 4.5 प्रतिशत डेयरी संचालक एकत्र कर रहे हैं।

By Sat PaulEdited By: Published: Mon, 01 Jun 2020 12:17 PM (IST)Updated: Mon, 01 Jun 2020 12:17 PM (IST)
दूध के कारोबार से बनाई अलग पहचान, 2300 से अधिक परिवारों को मिला रोजगार
दूध के कारोबार से बनाई अलग पहचान, 2300 से अधिक परिवारों को मिला रोजगार

जगराओं, [बिदु उप्पल]। पंजाब में हर रोज 340 लाख लीटर दुग्ध उत्पादन होता है। इसमें अकेले लुधियाना जिले में 39 लाख लीटर दुग्ध की सहभागिता है। जिसमें 37.5 प्रतिशत निजी मिल्क प्लांट, 18 प्रतिशत सहकारी मिल्क प्लांट और 4.5 प्रतिशत डेयरी संचालक एकत्र कर रहे हैं। 40 प्रतिशत घरेलू खपत हो रही है। विश्व दुग्ध दिवस पर डिप्टी डायरेक्टर डेयरी व जिले के सफल पशु पालकों से बातचीत की जिन्होंने छोटे स्तर से काम शुरू कर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई है। डेयरी उद्योग से जिले के 2300 से अधिक परिवारों को रोजगार मिला हुआ है। डेयरी उद्योग से जुड़े पशु पालक रखते है।

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आगे बढ़ने की सोच: दिलबाग सिंह

डिप्टी डायरेक्टर डेयरी दिलबाग सिंह हंस के अनुसार जिले में पांच लाख भैंसें और एक लाख से अधिक एच एफ गाय हैं। जिले के पशु पालक आगे बढ़ने की सोच, नई तकनीक रुचि और विभिन्न मिल्क प्लाटों , शहर में दुग्ध की खपत अधिक होने के कारण जिले में डेयरी फार्मिग उन्नति पर है। वर्ष 2019-20 में स्वरोजगार स्कीम तहत जिला लुधियाना के 412 प्रतिभागियों को दो सप्ताह, डेयरी व्यवसाय तहत जिले के 64 विद्यार्थियों ने चार सप्ताह का प्रशिक्षण लिया। डिप्टी डायरेक्टर दिलबाग सिंह ने बताया कि डेयरी विकास विभाग की ओर से इसे बढ़ावा देने के लिए कई डेयरी विकास विभाग कई योजनाएं चला रहा है।

100 गायों से शुरू कर बनी अंतरराष्ट्रीय पहचान: दलजीत सिंह

गांव सदरपुरा के रहने वाले प्रोग्रेसिव डेयरी पशु पालक दलजीत सिंह सदरपुरा किसी पहचान का मोहताज नहीं है। उन्होंने वर्ष 1997 में सौं गायों से डेयरी व्यवसाय शुरू किया था। आज उनके पास छोटी बड़ी एचएफ व जर्सी नस्ल के 500 से अधिक पशु हैं। उनके पास सबसे अधिक दूध देने वाली एचएफ नस्ल की गाय है जोकि एक दिन में 71 लीटर और औसत 40 से 60 लीटर दूध देने वाले पशु हैं। उन्होंने सतलुज डेयरी फार्म बनाया है। इतना ही पीएयू में वर्ष 1972 में कैप्टन कवंलजीत सिंह द्वारा बनाई पीडीएफए को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने वाले दलजीत सिंह ही हैं। प्रोग्रेसिव डेयरी फार्मर एसोसिएशन के बैनर तले पंजाब, हरियाणा, राजस्थान व हिमाचल के 7000 बड़े डेयरी पशु पालक व 23 हजार छोटे डेयरी पशु पालक जुड़े हैं। पीडीएफए बैनर तले डेयरी पशु पालक वर्ष 2002 में दलजीत सिंह सदरपुरा के प्रधान बनने के बाद एक छत के नीचे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर डेयरी व्यवसाय में तकनीकी व पशु नस्ल सुधार, दुग्ध उत्पादन सहित अन्य क्षेत्रों में डेयरी उद्योग चला रहे हैं।

पशुओं के लिए न्यूट्रीशियन का रखते हैं ख्याल : राजपाल सिंह

गांव कुलार के डेयरी पशु पालक राजपाल सिंह कुलार के पास 245 एचएफ व जर्सी गायें हैं। दस गायों से रोजगार शुरू करने वाले राजपाल सिंह कुलार ने बताया कि डेयरी व्यवसाय कारगार तभी होगा जब हम पशुओं के लिए अच्छी खुराक, हीट-मैनेजमेंट, चारा व अन्य सुविधाओं का ख्याल रखेंगे। उनके पास कई ऐसी गायें हैं जो रोजाना 67 लीटर देती हैं।

गाय जीत चुकी है अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहला स्थान

गांव चीमना के पशु पालक अमरजीत सिंह की गाय ने वर्ष 2019 में बटाला में हुए अंतरराष्ट्रीय डेयरी एक्सपो में 68 लीटर 800 ग्राम दुग्ध देकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहला स्थान पाया था। वहीं माछीवाड़ा के पशु पालक की भैंस ने 31 किलो दुग्ध देकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहला स्थान पाया था। पशु पालक अमरजीत सिंह ने बताया कि 20 गायों से कारोबार शुरू किया था। अब उनके पास 135 एचएफ व जर्सीं नस्ल की गायें हैं। इन गायों से 16 क्विटल दुग्ध उत्पादन करते हैं। यह दूध वह नेस्ले इंडिया मोगा को देते हैं। इसके अलावा हर साल 20 से 30 पशु बेचते भी हैं। उन्होंने कहा कि यह मेहनत का व्यवसाय है। जो मेहनत करेगा वो सफल होगा।

कोरोना ने डेयरी संचालकों की बढ़ाई थी चिंता

पशुपालकों का कहना है कि मार्च में लॉकडाउन लगने के साथ ही दुग्ध की कीमतों में पांच से सात रुपए कम हो गई। इसके अलावा होटल, रेस्टोरेंट व शादि-व्याह जैसे अन्य कार्यक्रमों पर रोक लगने से दुग्ध की मांग में 30 प्रतिशत से अधिक गिरावट आई थी। लॉकडाउन दौरान मिल्क पाउडर व घी के दाम भी कम हुए थे। इससे उनके माथे पर शिकन आ गया था। पशु पालक ने ही किसानों की मक्की की 50 प्रतिशत फसल को पशुओं के लिए आचार के रूप में रखने के लिए खड़ी फसल को सुरक्षित रखकर कृषि के सहायक धंधों को बढ़ावा दिया। 

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