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म्यांंमार में हिंदी-संस्कृत से सिखा रहे संस्कार, भारतीय चला रहे सनातन धर्म सेवा सदन स्कूल

म्यांमार के चौतगा में जड़ों से जोडऩे के लिए भारतीय लोग अपने बच्चों को हिंदी व संस्कृत पढ़ाकर संस्कार दे रहे हैं। मिनी इंडिया के नाम से मशहूर चौतगा शहर में भारतीयों द्वारा सनातन धर्म सेवा सदन स्कूल चलाया जा रहा है।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Sun, 10 Jan 2021 10:50 AM (IST)Updated: Sun, 10 Jan 2021 10:50 AM (IST)
म्यांंमार में हिंदी-संस्कृत से सिखा रहे संस्कार, भारतीय चला रहे सनातन धर्म सेवा सदन स्कूल
म्यांमार के चौतगा में सनातन धर्म सेवा सदन संस्कृत विद्यालय में चल रहा शिक्षण कार्य।

बठिंडा [गुरप्रेम लहरी। म्यांमार के छोटे से शहर चौतगा में स्थित सनातन धर्म सेवा सदन संस्कृत विद्यालय में दिन की शुरुआत संस्कृत के श्लोकों और हिंदी की प्रार्थना के साथ होती है। इस शहर को यहां 'मिनी इंडिया' कहा जाता है। यहां की ज्यादातर आबादी भारतीय मूल के लोगों की है। इनमें से ज्यादातर की जड़ें बिहार, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में हैं।

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चौतगा के कुछ परिवारों का संबंध पंजाब से भी है। हालांकि, इन्हेंं अब यह मालूम नहीं कि इसके पूर्वज किस शहर से यहां आए थे, लेकिन पूर्वजों के साथ जो एक चीज साथ आई वो थी हिंदी भाषा, जो यहां आज भी जिंदा है। नई पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़े रखने के लिए इस स्कूल में बच्चों को नि:शुल्क हिंदी सिखाई जा रही है। इसके साथ ही उन्हेंं भारतीय संस्कार भी सिखाए जा रहे हैं।

स्कूल के मुख्य अध्यापक केतन वर्मा बताते हैं कि उनके पूर्वज बिहार से आए थे। वे परिवार की चौथी पीढ़ी से हैं। उनको अपने गांव या जिले की कोई जानकारी नहीं है, लेकिन हिंदी शुरू से ही परिवार में चल रही है। यह स्कूल सनातन धर्म स्वंयसेवक संघ यंगून की ओर से चलाया जा रहा है। इसकी देखरेख जन कल्याण समिति करती है। यहां भारतीय मूल के 160 विद्यार्थियों को हिंदी व संस्कृत पढ़ाई जा रही है। उत्तराखंड के पिथौरागढ़ से संबंधित रोहन पंत कहते हैं, 'हमारे दादा भारत से आए थे। इसके बाद यहीं बस गए। हम बीच-बीच में पिथौरागढ़ जाते रहते हैं। मैंने इसी स्कूल से हिंदी भाषा सीखी है। पिथौरागढ़ जाता हूं तो बातचीत में आसानी होती है। भारत जाकर कभी ऐसा महसूस नहीं होता कि हम म्यांमार में नागरिक हैं। यह हिंदी भाषा ही है, जो हमको जोड़े हुए है।'

1972 से चल रहा स्कूल

केतन वर्मा के अनुसार इस स्कूल की शुरुआत 1972 से की गई थी और यह सफलतापूर्वक चल रहा है। इस स्कूल को शुरू करने में राम प्रकाश धीर की अहम भूमिका रही। तब यहां विद्यार्थियों की संख्या बहुत कम थी। अब यह 160 हो गई है। यहां 12 शिक्षक हैं। वे सभी इसी स्कूल से पढ़े हैं। ज्यादातर शिक्षक सेवा भाव से ही पढ़ा रहे हैं। समिति की ओर से उनको सम्मान योग्य मानदेय भी दिया जा रहा है।

बारहवीं तक पढ़ाई जाती है हिंदी

मुख्य अध्यापक केतन शर्मा ने बताते हैं कि इस स्कूल में बारहवीं तक हिंदी पढ़ाई जाती है और इसके बाद विद्यार्थी कालेजों में आगे की पढ़ाई के लिए चले जाते हैं। स्कूल में बर्मीज (म्यांमार की आधिकारिक भाषा) भी पढ़ाई जाती है, ताकि विद्यार्थी प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए भी तैयार हों। पंजाब की सोनिया पंजाबी, उत्तराखंड के भुवन पंत और बिहार के श्याम बिहारी कहते हैं कि हम अपने बच्चों को इस स्कूल में इसलिए भेजते हैं कि भाषा के साथ-साथ वे भारतीय संस्कार भी सीख सकें।


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