नोटबंदी कोई आर्थिक फैसला नहीं, बल्कि सियासी खेल : अर्थशास्त्री
जाने-माने अर्थशास्त्री सेवानिवृत प्रोफेसर अरुण कुमार का कहना है कि नगदी रहित अर्थव्यवस्था की बात करना बेमानी है। कैशलेस इकोनॉमी को लागू करने के लिए बहुत तैयारी की जरूरत है।
जेएनएन, लुधियाना। नोटबंदी के फैसले से जहां समाज के हर वर्ग के लोगो को बेतहाशा परेशानी हुई, वही देश की आर्थिक प्रगति पर भी ब्रेक लग गई। उद्योग, व्यापार, कृषि, औद्योगिक मजदूर, पेशन लेने वाले बुजुर्ग इससे प्रभावित हुए। सबसे अधिक मार तो गरीबो खासतौर पर गैर संगठित क्षेत्र मे लगे मजदूरो पर पड़ी। आर्थिकता को हुए इस भारी नुकसान को पूरा करने मे बहुत समय लगेगा। अगर सीधे तौर पर यह कहा जाए कि नोटबंदी कोई आर्थिक फैसला नही, बल्कि सियासी खेल था तो गलत नही होगा।
यह कहना है देश के जाने-माने अर्थशास्त्री और जवाहरलाल नेहरू विश्र्वविद्यालय के सेवानिवृत प्रोफेसर अरुण कुमार का। वह रविवार को सोशल थिंकर्ज फोरम की ओर से आयोजित सेमिनार मे मुख्य वक्ता के तौर पर पहुंचे थे। 'ब्लैक इकॉनमी इन इडिया' नामक किताब लिख चुके प्रोफेसर अरुण कुमार ने कहा कि नोटबंदी का फैसला केवल राजनीतिक था और इस बात पर आधारित था कि प्रधानमंत्री की छवि रोबिन हुड की तरह बनाई जाए, जो कि अमीरो व चोरो को लूटता है और गरीबो मे बांटता है।
बदकिस्मती से सरकार का यह दांव उल्टा पड़ गया। क्योकि नोटबंदी की वजह से वह लोग परेशान हुए, जिनके पास काला धन नही था। जबकि जिनके पास काला धन था, उन्होने सिस्टम की कमजोरी की वजह से इसे सफेद करने के तरीके ढूंढ लिए जैसे ही सरकार को इस बात का अहसास हुआ, तो सरकार को समझ आई कि नोटबंदी से काला धन समाप्त कर पाना मुमकिन नही था, तो उसने बड़ी चालाकी से अचानक मुद्दा बदला और कैशलेस इकनॉमी की बाते शुरू कर दी।
वह भी तब जब हमारे देश मे 98 प्रतिशत लेन देन नकदी के रूप मे होता है व ज्यादातर आबादी के पास न तो बैक की सुविधा है और न ही स्मार्ट फोन। इसके अलावा देश मे सबसे ज्यादा लोग असगठित क्षेत्र से हैं, जहा तीन सौ से चार सौ रुपये की दिहाड़ी वाले मजदूर है तो वह व्यक्ति कितना डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड , कितना पेटीएम इस्तेमाल करेगा। इसलिए नगदी रहित अर्थ व्यवस्था की बात करना भी बेमानी है। उन्होने कहा कि कैशलेस इकोनॉमी को लागू करने के लिए बहुत तैयारी की जरूरत है।
उधर, सेमिनार के दौरान फोरम के कन्वीनर डॉ. अरूण मित्रा ने कहा कि नोटबंदी के कारण लुधियाना का उद्योग व इससे संबंधित व्यापार बुरी स्थिति मे आ गए। बिक्री मे कमी आने के कारण पैदावार भी घटी है। इस दौरान प्रोफेसर जगमोहन, डीपी मौड़, डॉ.गुरचरण कोचर, डॉ.गुलजार पंधेर, प्रो.सुखपाल ने भी नोटबंदी के फैसले पर अपनी राय रखी।