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जब जिंदगी नहीं रही तो CM ने दी 4 लाख की मदद, मोगा में छत ढहने से मां-बेटी की मौत का मामला

मोगा में मां-बेटी की मौत के बाद अब मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने परिवार में बची एक मात्र बेटी की सहायता के लिए चार लाख रुपये की सहायता की घोषणा की है। उन्होंने डीसी को निर्देश दिए हैं कि परिवार को हरसंभव मदद दी जाए।

By Pankaj DwivediEdited By: Published: Wed, 05 May 2021 03:59 PM (IST)Updated: Wed, 05 May 2021 03:59 PM (IST)
जब जिंदगी नहीं रही तो CM ने दी 4 लाख की मदद, मोगा में छत ढहने से मां-बेटी की मौत का मामला
मंगलवार को मोगा में छत ढहने से मां-बेटी की मौत हो गई थी। फाइल फोटो

मोगा [सत्येन ओझा]। जब तक जिंदगी थी, तब तक सरकार शहरी आवास योजना के तहत खस्ताहाल मकान की मरम्मत के लिए मिलने वाली डेढ़ लाख रुपये की राशि नहीं दे सकी। अब मां बेटी की मौत के बाद मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने परिवार में बची एक मात्र बेटी की सहायता के लिए 4 लाख रुपये की सहायता की घोषणा की है। डीसी को निर्देश दिए हैं कि परिवार की हरसंभव मदद दें। ये मदद उस समय मिली है, जब परिवार में जीवित बची बेटी के लिए मोगा में मां व छोटी बहन की मौत के बाद अपना कोई नहीं बचा। न रात गुजारने के लिए छत, न सिर पर मां का हाथ। पिता की मौत पहले ही हो चुकी है। मां व छोटी बहन की मौत के बाद सुखदीप कौर को लुधियाना में अपनी नानी के घर जाकर सहारा लेना पड़ा है।

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मंगलवार को शहर के घनी आबादी वाले क्षेत्र रामगंज की गली नंबर तीन में स्थित स्व. गुरनाम सिंह का 70 साल पुराने मकान की दोनों मंजिलों की छत ध्वस्त होने से घर के अंदर मौजूद गुरनाम सिंह की पत्नी चरणजीत कौर व छोटी बेटी किरणदीप कौर मलबे में दब गई थीं। वार्ड-20 से निर्वाचित पार्षद मंजीत धम्मू व उनके कुछ साथियों ने तत्काल मलबे में दबी मां-बेटी को निकालने की कोशिश शुरू कर दी थी। करीब आधा घंटे के प्रयास के बाद 45 वर्षीय पत्नी चरणजीत कौर और किरणदीप कौर को निकाल लिया गया था। मथुरादास सिविल अस्पताल में इमरजेंसी ड्यूटी पर मौजूद स्टाफ ने दोनों को बचाने का पूरा प्रयास भी किया, लेकिन सफल नहीं हो सके।

मुख्यमंत्री ने बुधवार की सुबह ट्ववीट करके मां-बेटी के निधन पर शोक जताया, साथ ही परिवार में बची एक मात्र बेटी के लिए चार लाख रुपये की सहायता राशि देने का एलान किया। पार्षद मंजीत धम्मू का कहना है कि केंद्र सरकार की ओर से मिलने वाली आवासीय योजना की राशि को केंद्र सरकार की टीम मंजूर कर देती है, तब भी नगर निगम महीनों और वर्षों तक क्यों केस को लटकाकर रखता है। अगर सरकार की योजना में सिर्फ डेढ़ लाख मिलने थे। समय रहते कार्रवाई की होती तो आज सरकार को चार लाख नहीं देने पड़ते। मां-बेटी की मौत के बाद इन चार लाख रुपयों का कोई अर्थ नहीं रह जाता है।


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